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Written by जनसत्ता: आर्थिक क्षेत्र के ज्यादातर जानकारों का यही मानना है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था पूरे विश्व के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन कर रही है। मगर हकीकत में तो ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा। जीएसटी संग्रह में जरूर वृद्धि हो रही है, मगर उसका कारण महंगाई और जीएसटी के दायरे को बढ़ाना भी हो सकता है। डालर के मुकाबले रुपए की कीमत रिकार्ड निचले स्तर पर है। इससे न केवल व्यापार घाटा बढ़ रहा है, बल्कि महंगाई भी बढ़ रही है।
दूसरी ओर प्रति व्यक्ति आय निरंतर कम हो रही है। बैंकों के साथ घोटाले निरंतर बढ़ते जा रहे हैं और विदेशों में भारतीयों का धन भी। ऐसे में प्रश्न उठता है कि सरकार किस तरह भारत की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाएगी?
पिछले महीने जर्मनी में जी-7 का अड़तालीसवां शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें विश्व के सात सबसे बड़े अर्थव्यवस्था वाले देशों के राष्ट्राध्यक्ष के साथ हमारे प्रधानमंत्री ने भी हिस्सा लिया। बैठक में पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन,ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा, लैंगिक समानता और लोकतंत्र जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। इस दौरान घोषणाओं में एक विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए छह अरब डालर की बुनियादी पहल की गई। इस पहल को चीन के बीआरआइ प्रोजेक्ट को पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है।
वर्तमान में रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करना तथा कोरोना महामारी के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना इन देशों के लिए एक बड़ी चुनौती रही है, ऐसे में अमेरिका सहित अन्य पश्चिमी देशों ने बड़े पैमाने पर यूक्रेन को मदद करने के लिए आगे आए हैं और रूस पर और भी कड़े प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहे हैं। हालांकि, इससे और भी तकरार बढ़ने के आसार हैं।
आधिकारिक बयान के अनुसार जी-7 शिखर सम्मेलन 2022 का एजेंडा विकासशील देशों के साथ सझेदारी, वैश्विक अर्थव्यवस्था, बहुपक्षवाद और डिजिटल परिवर्तन जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित करना है। जी-7 की बैठक में भारत को 2019 से लगातार एक अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया जा रहा है। ऐसे में भारत के पास विश्व के सामने अपने विचार को प्रदर्शित का करने का एक अच्छा मौका है।