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अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की जद्दोजहद जारी है। हालांकि अब वह महामारी की मार से कुछ उबरती नजर आ रही है, मगर इसकी राह में कई बड़े रोड़े अब भी बने हुए हैं। इसे लेकर भारतीय रिजर्व बैंक की चिंता स्वाभाविक है। रिजर्व बैंक ने दूसरी स्थिरता रिपोर्ट में माना है कि नीति और नियामकीय समर्थन से महामारी के दौरान वित्तीय संस्थान मजबूत बने रहे और वित्तीय बाजारों में स्थिरता रही। मगर महामारी पूर्व स्थिति में लौटने की राह अभी आसान नहीं हुई है।
इसके लिए रिजर्व बैंक ने महंगाई और गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों यानी एनपीए में लगातार बढ़ोतरी को बड़ी वजह माना है। बैंक का कहना है कि लागत बढ़ने की वजह से महंगाई पर काबू पाना कठिन बना हुआ है। निजी निवेश और निजी खपत बढ़ने से बैंकों की स्थिति मजबूत हो सकती है। हालांकि इसके लिए रिजर्व बैंक लगातार प्रयास करता रहा है। रेपो और रिवर्स रेपो दरों को काफी नीचे बनाए रखा गया है, ताकि बाजार में पूंजी का प्रवाह बढ़े और लोग खरीदारी को उत्साहित हों। मगर इस मामले में अभी अपेक्षित तेजी नहीं लौट सकी है।
इस वक्त खुदरा और थोक दोनों महंगाई अपने उच्च स्तर हैं। कुछ तो पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने की वजह से भी ऐसा हुआ है। मगर महंगाई बढ़ने की अन्य वजहें भी समझने की जरूरत है। खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतें तब भी काबू में नहीं आ पा रही हैं, जबकि उनकी पैदावार बाजार में आनी शुरू हो गई है। खाद्य तेल और दालों वगैरह की कीमतों को नियंत्रित नहीं किया जा सका है।
इसी तरह उत्पादन लागत बढ़ने की वजह से हर चीज के दाम बढ़े हैं। पहले ही बहुत सारे लोग अपनी नौकरी गंवा चुके हैं, बहुतों के कारोबार ठप्प पड़े हैं, आमदनी पहले घटी है, ऐसे में वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से वे बाजार में उत्साह के साथ नहीं जा पा रहे। यानी निजी निवेश और खपत की जो अपेक्षा रिजर्व बैंक कर रहा है, उसके अभी बढ़ने की उम्मीद नजर नहीं आ रही। अभी जिस तरह कोरोना के मामले फिर से बढ़ने लगे हैं और तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है, उसमें फिर से कारोबारी गतिविधियों को सीमित किया जा रहा है। ऐसे में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चुनौती एक बार फिर से बढ़ती दिख रही है।
रिजर्व बैंक की सबसे अहम चिंता गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां या एनपीए को लेकर है। उसने अनुमान जताया है कि अगले साल सितंबर में यह उछल कर साढ़े नौ फीसद तक जा सकता है। अभी यह करीब सात फीसद पर है। एनपीए को लेकर लंबे समय से चिंता जाहिर की जाती रही है, पर रिजर्व बैंक ने इस पर काबू पाने के लिए कोई कठोर और व्यावहारिक कदम नहीं उठाया है। इसकी वजह से सरकारी बैंकों का बहुत सारा पैसा बट्टे खाते में चला गया है। उसकी उगाही के लिए कोई प्रयास भी नहीं दिखाई दे रहा।
छिपी बात नहीं है कि पिछले कुछ सालों में जिस तरह कई बड़े कारोबारी धोखाधड़ी करके बैंकों का हजारों करोड़ रुपया लेकर भाग गए और कंपनियों को दिवालिया और बीमार घोषित करके बेचने-खरीदने के सौदों में बैंकों को हजारों करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा, उससे बैंकों की हालत खराब हो चुकी है। अब रिजर्व बैंक ने इसे लेकर चिंता जताई है, तो उम्मीद की जाती है कि वह एनपीए की उगाही के लिए कोई व्यावहारिक कदम उठाएगा।
Subhi
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