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पड़ोसी देशों पर भारत की मनोवैज्ञानिक विजय होगी। संयुक्त राष्ट्र में भारत की शक्ति और
वर्ष 2022 में तीसरे विश्वयुद्ध का बिगुल लगभग बज ही गया था। घटना बीते 15 नवंबर की है, जिस दिन दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध की अग्नि में झुलसने से बच गई थी। एक यूक्रेनी एस-300 वायु रक्षा मिसाइल ने यूक्रेन और बेलारूस की सीमा के पास 413 लोगों की आबादी वाले पोलैंड के प्रेजवोडो गांव में एक खेत पर हमला किया। इस हमले में पोलैंड के दो किसानों की मलबे में दबकर मौत हो गई थी। पश्चिमी मीडिया, पश्चिमी सरकारों और नाटो ने इस आक्रमण को रूस द्वारा पोलैंड पर आक्रमण के रूप में पेश किया। पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा और यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की ने नाटो के चार्टर के अनुच्छेद पांच को लागू करने के लिए तत्काल आपात बैठक की मांग कर दी। नाटो का यह अनुच्छेद नाटो सदस्यों को गैर- नाटो देशों द्वारा आक्रमण किए गए किसी भी देश में सैन्य समर्थन और युद्ध में सम्मिलित होने के लिए बाध्य करता है। इस दृष्टिकोण से, नाटो देशों को रूस के विरुद्ध लामबंद होकर उस पर आक्रमण करने के लिए तैयार होना था।
पोलैंड के एक किसान ने, जो इस आक्रमण का प्रत्यक्षदर्शी था, इंटरनेट पर हमले के फोटो और वीडियो पोस्ट कर दिए, जिससे यह स्पष्ट हो गया था कि जिस मलबे में दबकर दो किसानों की मौत हुई थी, वह 1980 के दशक के प्रारंभ में निर्मित सोवियत संघ की एक एस-300 वायु रक्षा मिसाइल थी, जिससे स्वयं यूक्रेनी सेना ने ही पोलैंड के प्रेजवोडो पर आक्रमण किया था। अब प्रश्न यह उठता है कि राष्ट्रपति जेलेंस्की और उनकी टीम इस सीमा तक कैसे जा सकती है? एक आक्रमण की घटना पैदा कर कोई ऐसा झूठ गढ़ दे, जो मानवता को एक विश्वयुद्ध की ज्वाला में धकेल दे? प्रश्न परेशान कर देने वाला है कि एक झूठ किस तरह संपूर्ण विश्व को विनाश की राह पर ला सकता है!
प्रेजवोडो यूक्रेन में लवीव के समान देशांतर और कीव यूक्रेन के समान अक्षांश पर स्थित है। कुछ लोगों का मानना है कि रूस ने जानबूझकर मिसाइल के लक्ष्य प्रोग्रामिंग में त्रुटि की थी। प्रेजवोडो एक डिपो का स्थान भी है, जो अत्याधिक ज्वलनशील अमोनियम नाइट्रेट उर्वरक का काफी बड़ी मात्रा में भंडार करता है। अगर यूक्रेनी मिसाइल ने इस डिपो पर हमला किया होता, तो 413 लोगों का पूरा गांव बिना किसी निशान के खत्म हो गया होता। प्रेजवोडो लवीव के पश्चिम में स्थित है, जबकि रूसी मिसाइल के आक्रमण पूर्व से होते हैं। इससे यह प्रश्न पैदा होता है कि एस-300 मिसाइलें पूर्व से आने वाली रूसी मिसाइल से दूर पश्चिम की ओर क्यों जा रही थीं, अगर वे इसे मार गिराने की कोशिश कर रहे थे?
यह स्पष्ट है कि यह नाटो और पोलैंड के कुछ नेताओं की मिलीभगत से यूक्रेन द्वारा पोलैंड पर जानबूझकर किया गया मिसाइल हमला था। यही कारण है कि जब अमेरिकी सरकार, पेंटागन और कई विशेषज्ञों ने कहा कि यह एक यूक्रेनी मिसाइल थी, तो यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की और पोलैंड के राष्ट्रपति और उनके मंत्री इस बात पर जोर दे रहे थे कि यह पोलैंड पर रूसी हमला था। कोई यह सोचकर ही कांप सकता है कि पश्चिम ऐसे पागल लोगों का समर्थन कर रहा है, जो किसी तरह तीसरे विश्वयुद्ध को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। यह पहली बार नहीं है, जब जेलेंस्की के नेतृत्व में यूक्रेन ने झूठ गढ़ा हो, ताकि पश्चिम को सीधे रूस-यूक्रेन युद्ध में सम्मिलित किया जा सके, भले ही इसका अर्थ विश्वयुद्ध का वातावरण तैयार करना हो।
कुछ भी हो, रूस-यूक्रेन संघर्ष से निकल कर सबसे रोचक एक 'प्रेम कहानी'-सी घटना यह उभर कर आती है कि पोलैंड के एक आलू किसान ने एक संभावित विश्वयुद्ध को रोक दिया। युद्ध की हानि का गणित प्रायः सामाजिक-आर्थिक हानियों तक सीमित रहता है। लंबे समय से अनवरत जारी युद्ध में जीवन, संपत्ति और पारिस्थितिकी की अकूत हानि केवल इन दो देशों तक ही सीमित नहीं है। अगर कोई युद्ध लंबे समय तक चलता है, तो उसका नकारात्मक सार्वभौमिक प्रभाव अवश्यंभावी है। पारिस्थितिक विनाश, पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, और जलवायु परिवर्तन किसी युद्ध के ऐसे दुष्प्रभाव हैं, जिन पर कदाचित ही ध्यान दिया जाता है। सार्वजानिक जीवन में और मीडिया में युद्ध के इन मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं होती। युद्ध से होने वाले ये ऐसे दूरगामी दुष्परिणाम हैं, जिनकी कोई भरपाई नहीं की जा सकती।
अब समय आ गया है कि पश्चिम इस बात पर जोर दे कि यूक्रेन बैठ जाए और युद्ध की आग को भड़काने, यूक्रेन को नष्ट करने और बहादुर लेकिन, असहाय यूक्रेनी लोगों को कंगाल करने के बजाय शांति समझौते पर बातचीत करने के लिए तैयार हो जाए। वर्ष 2022 बीतते-बीतते रूस और यूक्रेन युद्ध से बुरी तरह ऊब गए हैं। अगर इस युद्ध में किसी ने अपनी संपूर्ण प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिला दिया है, तो वह हैं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन। यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की ने इसमें मनोवैज्ञानिक स्तर पर कुछ नहीं खोया। ताबड़तोड़ रूसी हमलों के बाद दुनिया यूक्रेन के दिन गिनने लगी थी, और पुतिन तो मूंछें न होते हुए भी अपनी मूंछों पर ताव देने लगे थे। लेकिन अब उनकी मनोवैज्ञानिक हार हो चुकी है और उनके हाव-भाव देखकर लगता है, जैसे उन्होंने भी अपनी हार स्वीकार कर ली है।
उधर यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को याद कर रहे हैं, इस संभावना के साथ कि अगर इस विनाशक युद्ध को कोई विराम दे सकता है, तो वह है भारत। जेलेंस्की जैसा ही अब सारी दुनिया भी सोच रही है। भारत को इन दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने के लिए सार्थक पहल करनी भी चाहिए। अगर भारत ऐसा कर सका, तो यह भारत की सबसे बड़ी वैश्विक कूटनीतिक जीत होगी। ऐसा करने पर तनाव पैदा करने वाले पड़ोसी देशों पर भारत की मनोवैज्ञानिक विजय होगी।
सोर्स: अमर उजाला
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