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टेलीविजन को मनोरंजन की दुनिया का बेताज बादशाह कहा जाए तो गलत नहीं होगा
शकील खान टेलीविजन को मनोरंजन की दुनिया का बेताज बादशाह कहा जाए तो गलत नहीं होगा. इसे अगर विस्तारित रूप में स्वीकार करें और मोबाइल के स्क्रीन को भी इसमें शामिल कर लें तो कह सकते हैं कि शरीर की धमनियों में बहने वाले रक्त का जितना महत्व शरीर के लिए है, भौतिक दुनिया में वैसी ही महत्ता टेलीविजन की है. बावजूद इसके इसे इडियट बॉक्स के नाम से पुकारा गया. आम धारणा है कि टीवी को इडियट बॉक्स यानि बुद्धु बक्से का शीर्षक बुद्धिजीवियों ने दिया है. जबकि ऐसा है नहीं. बाकायदा रिसर्च के बाद इसे यह नाम मिला है.
टीवी पर जो प्रोग्राम्स आते हैं वो फिक्शन यानि काल्पनिक होते हैं. कहानी, डायलॉग्स सब कुछ नकली कुछ भी असली नहीं. इसके बावजूद हम घंटों टीवी के सामने बैठे रहते हैं. इसे टीवी की ताकत कहकर उसकी तारीफ भी की जा सकती है और समय किल करने के कारण इसकी लानत मलामत भी की जा सकती है. टीवी देखने में समय तो जाया होता ही है, हम इस दौरान कुछ ज्यादा ही खा-चबा लेते हैं, जिससे मोटापे की संभावना बढ़ जाती है. यह हमारे मेटाबालिज़्म पर भी असर डालता है. ज्यादा टीवी देखने से आंखों पर बुरा प्रभाव तो पड़ता ही है. इन्हीं सब बुराईयों के चलते इस डिवाइस को इडियट बॉक्स के नाम से नवाज़ा गया.
लेकिन ये सिक्के का एक पहलू है. जैसे-जैसे टेलीविज़न ने तरक्की की, इसके मायने बदलते गए. आज के दौर की बात करें तो टीवी सिर्फ काल्पनिक कहानियां दिखाने वाला बुद्धु बक्सा भर नहीं है. अपने गर्भ में ये ज्ञान और सूचनाओं का कीमती खजाना समेटे हुए है. यह आप पर है कि आप इस खजाने से क्या चुनते हैं, मोती या पत्थर, कीमती सार्थक ज्ञान या फिर बेहूदा (या अश्लील) कंटेंट. जहां तक काल्पनिक कंटेंट का सवाल है यह मनोरंजन की बेहद दिलचस्प और रोचक दुनिया है. जिसका जादू लोगों के दिलो-दिमाग़ पर चढ़कर बोल रहा है. खासतौर ओटीटी प्लेटफार्म आने के बाद तो मामले ने अलग ही रंग ले लिया है.
टेलीविजन का हिंदी में शाब्दिक अर्थ होता है दूरदृष्टि. भारत में इसे सबसे सार्थक नाम दिया गया 'दूरदर्शन'. संदर्भ आया है तो बताते चलें भारत में टेलीविजन 15 सितम्बर 1959 को दिल्ली में शुरू हुआ जिसका नाम टेलीविज़न इंडिया रखा गया. बाद में 1975 में इसका नाम बदलकर दूरदर्शन किया गया. दूरदर्शन में हमें दूर की इमेज चलती फिरती शक्ल में स्क्रीन पर दिखाई देती है. टीवी के स्क्रीन का दायरा जितना बढ़ा है उतना ही छोटा भी हुआ है.
मोबाइल टीवी की अवधारणा ने इसका आकार इतना छोटा कर दिया है कि अब यह हमारी हथेली में समाने लगा है. ये अलग बात है कि अभी भी टीवी प्रोग्राम्स बड़े स्क्रीन पर देखना ही आंखों को सुहाता है. दूसरी तरफ टीवी प्रोग्राम्स को मोबाईल पर देखने का क्रेज इसलिए बढ़ा है क्योंकि जो आसानी इसमें है वो बड़े स्क्रीन में नहीं.
कुछ जरूरी आंकड़ों पर नज़र डाल लें. टीवी का अविष्कार जॉन लॉगी बेयर्ड ने 1925 में लंदन में किया था. लेकिन दुनिया को प्रसारण लायक टीवी 1927 में मिला जिसे फिलो फार्न्सवर्थ ने संभव बनाया और जो 01 सितम्बर 1928 को पब्लिक किया गया. पहले टीवी के स्क्रीन का आकार 12 इंच होता था और इसके साथ बड़े उपकरणों का तामझाम भी होता था. काले सफेद टीवी की दुनिया में रंग 1928 में भरे गए, श्रेय ब्रेयड को जाता है. हम टेलीविज़न को टीवी कहकर संबोधित कर रहे हैं तो बता दें इसे यह शार्ट फार्म 1948 में नसीब हुआ.
वो कहते हैं ना आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है साथ ही यह भी कहा जाता है कि दुनिया के ज्यादातर अविष्कार आलसियों ने किए. आलस करने वाला ही यह सोच सकता है कि बिना हिले-डुले काम कैसे संभव होगा. सो टीवी आया कलरफुल भी हो गया. सोचा गया कि अब इसे बिना उठे ऑपरेट कैसे किया जाए. सो रिमोट का अविष्कार हुआ. यह काम 1950 में जेनिथ ने किया, जिसने तार के सहारे जुड़ा रिमोट बनाया और फिर 1955 में वायरलेस रिमोट अस्तित्व में आया.
भारत में टेलीविजन प्रसारण की विधिवत शुरूआत 1965 में हुई तब टीवी ऑल इंडिया रेडियो का एक भाग हुआ करता था. 1972 में बाम्बे और अमृतसर में टीवी प्रसारण केन्द्र खुले. 1975 तक महज सात शहरों में दूरदर्शन पहुंच पाया था. फिर आया 1982, यह साल भारतीय टीवी के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धियां लेकर आया. इस साल भारत ने एशियाई गेमों की मेज़बानी की. इसी साल पूरे देश में दूरदर्शन का विस्तार हुआ, यह सेटेलाइट इंसेट वन ए के इस्तेमाल से संभव हुआ. इसी साल भारतीय टीवी को रंगों की सौगात मिली जिसकी बदौलत लोगों ने एशियाई खेलों का कलरफ़ुर आनंद लिया. इसके बाद तो टीवी ने लोकप्रियता की सीढ़ियों पर सरपट दौड़ लगा दी.
लेकिन यहां ये भी बता दें कि चूंकि रेडियो और टीवी दोनों ही सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन आते थे इसलिए रेडियो के बहुत सारे अफसर टीवी में पहुंच गए. परिणाम यह हुआ कि टीवी के प्रोग्राम्स में रेडियो प्रसारण का असर देखा गया. इसके चलते दूरदर्शन को आलोचना भी सहना पड़ी. 1984 में डीडी 2 के नाम से एक चैनल की शुरूआत हुई जिसे बाद में डीडी मेट्रो का नाम दिया गया.
07 जुलाई 1984 दूरदर्शन के इतिहास में सुनहरे अध्याय के रूप में दर्ज है. इस दिन देश के पहले सोप ओपेरा 'हम लोग' का प्रसारण भारतीय टेलीविजन पर प्रारंभ हुआ. यह इतना लोकप्रिय हुआ कि इसके पात्र के नाम लोगों की जुबान पर चढ़कर रोज़मर्रा की जिंदगी में शामिल हो गए. इसका लेखन मनोहर श्याम जोशी ने और निर्देशन पी.कुमार वासुदेव ने किया था. दूरदर्शन पर बाद में बहुत सारे सीरियल्स का प्रसारण हुआ. जिसमें पापुलर सीरियल की श्रेणी में शामिल थे – बुनियाद, वागले की दुनिया, मालगुड़ी डेज़, नुक्कड़, मुंगेरी लाल के हसीन सपने, और रामायण तथा महाभारत आदि.
1991 के बाद इकॉनॉमिक एण्ड सोशल रिफार्म का दौर आया और सरकार ने देशी और विदेशी निजी प्रसारकों को शर्तों के साथ प्रसारण की अनुमति प्रदान की. बाद में सरकार ने एनॉलॉग सिस्टम को डिजिटल में बदलने का आदेश जारी किया. दूसरे तकनीकी कारणों के अलावा एनॉलॉग एचडी को सपोर्ट नहीं करता था. परिणामस्वरूप पांच तरह के प्रसारण अस्तित्व में आए. जिनमें फ्री टू एयर, डायरेक्ट टू होम, केबल टीवी, आईपी टीवी और ओटीटी शामिल हैं.
वर्तमान दौर ओटीटी का दौर कहा जा सकता है. ओटीटी यानि ओवर द टॉप प्लेटफार्म्स. कुछ पापुलर ओटीटी प्लेटफार्म में नेटफ्लिक्स, प्राइम वीडियो, डिज़्नी हॉट स्टार, जी 5, इरोज़ नाउ, एमएक्स प्लेयर, अल्ट बालाजी आदि शामिल किए जा सकते हैं. ओटीटी प्लेटफार्म की सूची बहुत लंबी है. अपने यूनिक कंटेंट के दम पर ओटीटी आज कल पारंपरिक सिनेमा को तगड़ा काम्पीटीशन दे रहे हैं. कोरोना महामारी के चलते जब लोग घरों में कैद थे उन दिनों ओटीटी ने खूब चांदी काटी. यही वो दौर था जब ओटीटी प्लेटफार्म्स ने भारतीय दर्शकों के बीच अपनी गहरी पैठ बनाई. चलते-चलते वर्ल्ड टेलीविजन डे की बात भी कर लें. पहला विश्व टेलीविजन डे 21 नवंबर 1996 को मनाया गया जिसे यूनाईटेड नेशन से मान्यता प्राप्त हुई है.
Rani Sahu
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