सम्पादकीय

World Sleep Day: मैं ख्‍वाब-ख्‍वाब सा तेरी आंखों में जागूं रे...

Gulabi Jagat
18 March 2022 3:31 PM GMT
World Sleep Day: मैं ख्‍वाब-ख्‍वाब सा तेरी आंखों में जागूं रे...
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ओपिनियन
'नींद तुम्‍हें तो आती होगी क्‍या देखा तुमने सपना', एक पुरानी हिंदी फिल्‍म (सरस्‍वती चंद्र) की नायिका के सवाल के जवाब में नायक जवाब देता (लिखता) है 'आंख खुली तो तन्‍हाई थी, सपना हो ना सका अपना'. बरसों बरस से नींद और सपने का रिश्‍ता यूं ही चला आ रहा है. नींद की जब भी बात होगी, सपनों की बात जरूर होगी. नींद की बात आगे करेंगे, पहले सपनों की दुनिया में झांकते हैं.
सपने दो तरह के होते हैं एक जो नींद आने के बाद देखे जाते हैं, दूसरे जो जागती आंखों से देखे जाते हैं. 'जागती आंखों के सपने' पाजि़टिव फीलिंग्‍स का आभास देते हैं. इन्‍हें देखने वाला इन्‍हें बड़ा बनने, कुछ नया या अलग करने की गरज़ से पूरे होशोहवाश में देखता है. जबकि नींद में देखे ख्‍वाब आपके बस में नहीं होते. ये हमेशा आशा भरे भी नहीं होते. एक मनोविज्ञानी कहते हैं अधिकांश स्‍वप्‍न भय, निराशा और दुख देने वाले होते हैं. कुछ मनोविज्ञानी इससे असहमत भी हैं. लेकिन ये तो तय है कि सपने अच्‍छे और बुरे दौनों तरह के होते हैं. एक किस्‍सा सुनते हैं फिर आप खुद तय करना कि ख्‍वाब अच्‍छे होते हैं या बुरे. किस्‍सा सच्‍चे टाइप का है, बहुत पहले कहीं पढ़ा था.
लंदन के शाप हॉम बाज़ार निवासी जॉन चैपमेन को एक रात एक सपना आया. जिसमें उसे आदेश दिया गया कि लंदन के एक खास इलाके में एक खास स्‍थान पर जाकर प्रतीक्षा करे. वहां उसे एक शुभ समाचार मिलेगा. जॉन चैपमेन सौ मील का सफर कर निर्धारित स्‍थान पर पहुंचा और प्रतीक्षा करने लगा. वह दिन भर वहां खड़ा रहा, पर उसे कोई शुभ समाचार नहीं मिला. दूसरे दिन फिर पहुंचा और खाली हाथ ही लौटा. उसने हार नहीं मानी, तीसरे दिन भी पहुंचा लेकिन खुशखबरी नदारद थी. दिल नहीं माना चौथे दिन भी वहां पहुंच गया.
उस स्‍थान के पास एक दुकान थी, उसका मालिक उसे रोज दिन-दिन भर खड़े होते देख रहा था. उससे रहा न गया और उसने जॉन से इसका कारण पूछा. जॉन चैपमेन पहले तो कुछ हिचकिचाया, फिर उसने अपना नाम और पता छिपाकर सपने के बारे में दुकानदार को सच बता दिया. इस पर दुकानदार ने उसका मजाक उड़ाते हुए कहा 'ऐसे सपनों पर विश्‍वास करना बेवकूफी के अलावा कुछ नहीं है.' दुकानदार ने उसे बताया कि मुझे भी एक सपना आया था, लेकिन मैं ऐसी बकवास बातों पर भरोसा नहीं करता. अपने सपने के बारे में बताते हुए वह बोला. 'मुझे भी एक रात एक सपना आया था कि शाप हॉम बाजार नारफाक निवासी जॉन चैपमेन के मकान के पीछे स्थित एक पेड़ की जड़ के पास खजाना छिपा हुआ है. सुनकर जॉन चैपमेन की खुशी से झूम उठा, यही उसे शुभ समाचार मिल चुका था, सपना सच हो गया था.
अब इस सपने की बात करें तो यह तो खुशखबरी वाला सपना था यानि सपनों के निराशा की बात करने वाले मनोविज्ञानी यहां गलत साबित होते हैं. जवाब में उनकी तरफ से तर्क आता है. अगर दुकानदार के नज़रिए से देखें तो उसके लिए तो ये सपना निराशा और दुख से भरा सपना था. अब ये निर्णय आप पर छोड़ते हैं आप खुद अपने सपनों की चीरफाड़ करें और नतीजे पर भी खुद ही पहुंचे. बशर्ते आपको नींद में देखे सपने याद रहते हों, तो.बहरहाल, सपनों की बात हो गई अब मू‍ल विषय पर लौटते हैं और नींद पर बात करते हैं.
निद्रा एक उन्‍नत निर्माण क्रिया से संबंधित स्थिति (एनाबोलिक स्‍टेट) है. जो विकास पर जोर देती है और हमारे इम्‍यून सिस्‍टम, नर्वस सिस्‍टम, स्‍केलेटल और मस्‍कुलर सिस्‍टम को रिजनरेट करती है. सभी स्‍तनपायियों में, सभी पक्षियों में, अनेक सरीसृपों और उभयचरों में (reptiles and amphibians|) तथा म‍छलियों में इसका अनुपालन होता है. यह एक जरूरी प्रक्रिया है. एक निश्चित आयु वर्ग के लोगों को निर्धारित सीमा में नींद अवश्‍य लेना चाहिए. जिस तरह से शरीर के लिए भोजन जरूरी है नींद भी उतनी ही जरूरी है. बताते चलें नींद के उद्देश्‍य और प्रकिया आंशिक रूप से ही स्‍पष्‍ट हैं…… इतनी भारी बातें, ना बाबा न इसे सुनकर तो नींद आने लगी.
जी हां, नींद है ही ऐसी चीज़. जब आपको सामने वाला बोर करने लगे तो लगता है, अब सोना ही बेहतर है. लेकिन इसके उलट भी है, मां की लोरी और नानी की कहानियां सुनकर भी नींद आती है (थी) और ये बोर तो कतई नहीं करतीं, मनोरंजक होती हैं. अब इस बारे में सही निष्कर्ष तो नींद‍ विज्ञानी और मनोविज्ञानी ही दे सकते हैं कि नींद बोरियत भरी बातों से आती है या मधुर गीतों, लोरियों और नानी की कहानियों से. स्‍कूल के दिनों की याद है आपको. परीक्षा के दिनों में नींद बहुत आती है, किताब उठाई नहीं कि नींद ने हमला बोल दिया. परीक्षा खत्‍म हुई कि नींद गायब. तो चलिए नींद के रोचक संसार की सैर करते हैं.
कहा जाता है कि आदमी बिना खाना खाए पिए दो माह तक, बिना पानी पिए 30 दिनों तक जिंदा रह सकता है लेकिन बिना नींद के सिर्फ 11 दिन जीवित रह पाएगा. बता दें कि सबसे ज्‍यादा लगातार जागने का रिकार्ड 11 दिन का है. जो 1964 में केलीफोर्निया के एक छात्र रैंडी गार्डनर के नाम दर्ज है. वैसे इधर उधर से कुछ किस्‍से ज्‍यादा जागने की बात कहते रहते हैं. लेकिन आधिकारिक रिकार्ड यही है.
मनुष्‍य अपने जीवन का एक तिहाई भाग या कहें लगभग 25 बरस सोते हुए बिता देता है. बिल्‍ली जीवन का दो तिहाई समय सोने में बिताती है. जबकि भूरे रंग वाले चमगादड़ को दिन में 19.9 घंटे सोना जरूरी होता है. घोंघा नींद की दुनिया का सबसे बड़ा महारथी है, वो पूरे तीन साल तक लगातार सो सकता है. जबकि जिराफ को दिन में महज़ 1.9 घंटे की नींद जरूरी होती है. खरगोश आंखें खोलकर सो सकता है, तो घोड़ा खड़े होकर. डाल्फिन एक आंख खोलकर सोती है.
काम की बात ये है कि स्‍वस्‍थ वयस्‍कों के लिए रात में 7 से 9 घंटे की नींद जरूरी मानी जाती है. जिन्‍हें 7 घंटे से कम नींद आती है उनमें अस्‍थमा, कैंसर और शुगर की शिकायत होने की संभावना बढ़ जाती है. कम नींद लेने से गुस्‍सा, उदासी और तनाव आपको घेर लेते हैं. पुरूषों की तुलना में महिलाएं ज्‍यादा नींद लेती हैं. नवजात उन्‍हें भी मात करते हैं और 14 से 17 घंटे सोने में बिताते हैं.
लेखक, साहित्‍यकार, कवियों और शायरों ने नींद पर खूब कलम चलाई है. फिल्‍मी दुनिया की बात करें तो वो नींद को ख्‍वाब से जोड़कर ज्‍यादा देखती है. नींद पर खूबसूरत लोरी की बात करें तो मेहमूद के 'कुंआरा बाप' की लोरी याद आती है. 'आरी आजा निंदिया तू ले चल कहीं उड़नखटोले में, दूर, दूर दूर यहां से दूर….'
नींद और सपने की बात कवियों ने भी खूबसूरती से की है.
'नींद के कुएं में, आंखों की बाल्‍टी कई बार गिरती, पर हर बार बाल्‍टी अधभरी रहती
नींद के कुएं में, कई बार डूबना चाहा, मगर सपनों की रस्‍सी, कभी हाथों से छूटी नहीं' ( रवि रनवीरा)
एक फिल्‍मी गीत में नायिका नींद को ख्‍वाबों से नहीं अपने पिया से जोड़ती है 'नींद कभी रहती थी आंखों में, अब रहते हैं सांवरिया' (सहारा 1966).
फिल्‍म दिल (1990) में आमिर-माधुरी भी गाते नज़र आते हैं 'मुझे नींद न आए मुझे चैन न आए, कोई जाए जरा ढूंढ के लाए, न जाने कहां दिल खो गया'
प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे की खुशी की कामना करते हुए गीत गाते है, लेकिन ये मो‍ह‍तरिमा तो अपने प्रेमी की नींद उड़ाने की दुआ कर रही हैं.
'नींद उड़ जाए तेरी चैन से सोने वाले, ये दुआ मांगते हैं नैन ये रोने वाले' (जुआरी 1968).
'नींद हमारी ख्‍वाब तुम्‍हारे' 1966 की फिल्‍म थी. इसके नाम पर मत जाईए इसका नींद और ख्‍वाब से दूर दूर तक संबंध नहीं है. यह एक कॉमेडी फिल्‍म थी जिसमें नंदा और शशिकपूर मुख्‍य भूमिका में थे. बेशक इसमें नींद या ख्‍वाब पर गीत नहीं थे लेकिन गीत थे बहुत खूबसूरत.
नींद और ख्‍वाब पर किसी शायर ने क्‍या खूब कहा है. 'बस यही दो मसले जि़ंदगी भर हल न हुए, नींद पूरी न हुई ख्‍वाब मुकम्‍मल (पूरे) न हुए'.
2017 में आयुष्‍मान खुराना और कीर्ति सेनन की एक फिल्‍म आई थी 'बरेली की बरफी' इसमें एक बहुत खूबसूरत ख्‍वाब जगाता गीत था – 'तू नज्‍़म नज्‍़म सा मेरे होठों पे ठहर जा, मैं ख्‍वाब-ख्‍वाब सा तेरी आंखों में जागूं रे'



(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
शकील खान फिल्म और कला समीक्षक
फिल्म और कला समीक्षक तथा स्वतंत्र पत्रकार हैं. लेखक और निर्देशक हैं. एक फीचर फिल्म लिखी है. एक सीरियल सहित अनेक डाक्युमेंट्री और टेलीफिल्म्स लिखी और निर्देशित की हैं.
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