- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- World Nurses Day:...
x
अगर डॉक्टर हॉस्पिटल का ब्रेन है तो नर्स हास्पिटल का हार्ट है
शकील खान
अगर डॉक्टर हॉस्पिटल का ब्रेन है तो नर्स हास्पिटल का हार्ट है. अगर ब्रेन फेल हो जाता है तो हार्ट मेनेज किया जा सकता है लेकिन हार्ट फेल हो गया तो कुछ भी मेनेज करना संभव नहीं होता. नर्स, डॉक्टर और हॉस्पिटल के रिश्ते को समझने, समझाने के लिए इससे सटीक उक्ति नहीं हो सकती. ये लाईनें हास्पिटल और साथ ही हमारी जि़ंदगी में भी नर्स की अहमियत को रेखांकित करती हैं. विश्व नर्सिंग दिवस पर नर्सों के सेवाभाव को सलाम करते हुए दो फिल्मों की याद आती हैं – 'खामोशी' और 'सदमा'.
नर्सिंग केयर का एक जैसा कथानक होने के बावजूद दोनों बढि़या हैं. लेकिन जब दोनों को साथ रखकर आकलन करते हैं तो 'खामोशी' बहुत आगे निकल जाती है और दिल पर असर करती है. जबकि 'सदमा' सुंदर कृति होने के बावजूद अपने बॉक्स ऑफिस लटकों के कारण, थोड़ा आहत करती है, सदमा पहुंचाती है. 'खामोशी' में नर्स राधा का एक संवाद पूरी कहानी बयां कर देता है 'मैं नर्स हूं बुझते सांसों के दीप जलाना ही मेरा फर्ज़ है.'
आगे एक और फिल्म का जि़क्र करेंगे. फिलहाल 'खामोशी'. इसमें अपने ज़माने के सुपर स्टार राजेश खन्ना के साथ गेस्ट एपियरेंस में धर्मेंन्द्र भी थे लेकिन ये सिर्फ और सिर्फ वहीदा रहमान की फिल्म कही जाना चाहिए. 'सदमा' में कमाल का अभिनय करने वाले कमल हासन थे, अच्छा अभिनय किया, अच्छा ही करते हैं. कमाल श्रीदेवी ने किया. अपनी अद्भुत अदाकारी से वे सिर्फ चौंकाती ही नहीं, कहीं कहीं कमल हासन पर भारी भी पड़ती हैं.
'खामोशी' का एक सीन है. मानसिक रोगियों के अस्पताल में कड़क सुपरिंटेंडेंट ललिता पवार मरीज़ों की हाजिरी लगाकर उन्हें बुला रही है और अपने वार्ड में भेज रही है. यहां मरीज़ की पहचान उसके वार्ड नंबर से है. सुपरिंटेंडेंट तेज स्वर में मरीज़ों को बुला रही है तो नर्स राधा उन्हें प्यार से दुलार रही हैं.. कड़क आवाज गूंजती है… नंबर 21, नंबर इक्कीस.. यहां क्या कर रहे हो जाईए, अपने वार्ड में जाईए… नंबर बाईस, नंबर बाईस .. नंबर तेईस…. नंबर चौबीस… नंबर चौबीस….?
शायद गलत आवाज लग गई. नंबर चौबीस इस वक्त खाली है… यहां एक खास किस्म के मरीज़ का इलाज़ होता है. यहां टूटे हुए दिल जोड़े जाते हैं. टूटा दिल लेकर आया देव (धर्मेंन्द्र) यहां से हाल ही में ठीक होकर गया है.. नर्स राधा के प्यार भरे अभिनय ने उसके दिल से प्रेमिका की बेवफाई की कड़वाहट निकालकर उसे ठीक कर दिया है. देव वापस अपनी दुनिया में चला गया है लेकिन राधा… राधा शायद अभिनय में कुछ ज्यादा ही डूब गई थी. बहरहाल…. वार्ड नंबर चौबीस फिर से आबाद होने वाला है, यहां अरूण चौधरी आने वाला है. अरूण चौधरी यानि राजेश खन्ना.
सुपर स्टार यहां लीक से हटकर एक अलग ही रोल निभाने वाले हैं. चॉकलेटी हीरो की जगह एक संवेदनशील कलाकार के रूप में सामने आने वाले हैं, साबित करने वाले हैं के फिल्म 'आनंद' महज़ इत्तेफाक नहीं था, वे सचमुच एक बेहतरीन अभिनेता हैं. वापस वार्ड नंबर चौबीस पर आते हैं… यहां हॉस्पिटल के अंदर खुलने वाली बॉलकनी है. जहां एक खाली आरामकुर्सी हिचकौले ले रही है…कुछ पल के लिए खामोशी… फिर हेमंत कुमार के संगीत की धुन का एक खूबसूरत टुकड़ा सुनाई देता है, जो उनके ही गाए एक खूबसूरत गीत का अंश है. ' हुं..हुं..उं…ऊं…. पुकार लो, तुम्हारा… इंतज़ार है… ' जानकर कोई अचरज नहीं होता कि ये खूबसूरत लाइनें गुलज़ार ने लिखी हैं… फिल्म के क्लासिक संवाद भी उन्होंने ही लिखे है… बताते चलें फिल्म का लेखन और निर्देशन असित सेन ने किया है.. न.. न..; वो मोटे, थुलथुल से, हास्य अभिनेता असित सेन नहीं. ये बंगाली और हिंदी फिल्मों के जाने माने सिनेमेटोग्राफर, स्क्रीन राइटर और डायरेक्टर हैं जिनके खाते में खामोशी के अलावा संजीव कुमार अभिनीत 'अनोखी रात' और राजेश-शर्मीला टैगोर की 'सफर' जैसी ऑफ बीट फिल्में शामिल हैं. वैसे उन्होंने शशिकपूर, धर्मेंन्द्र-हेमा (शराफत) और दिलीप-सायरा (बैराग) के साथ कमर्शियल फिल्में भी की हैं.
हॉस्पिटल का इंचार्ज नज़ीर हुसैन खुश है कि एक्युट मेनिया का एक और मरीज़ उन्हें अपने एक्सपरीमेंट के लिए मिल गया है. अब वे साबित कर सकते हैं एक्युट मेनिया के मरीज़ देव का ठीक होना इत्तेफाक नहीं था. इसका इलाज सचमुच प्यार के अभिनय से संभव है, बिजली के करंट कतई जरूरी नहीं है. उनके सफल एक्सपरीमेंट का सबसे ताकतवर टूल है नर्स राधा. लेकिन देव को ठीक करने की सौ फीसदी हकदार राधा इस बार नए मरीज़ अरूण चौधरी का इलाज करने से इन्कार कर देती है. वो कहती है, 'मैं थक गई हूँ… और अभिनय नहीं कर सकती.' केस राधा की सहेली और रूममेट वीना को दिया जाता है. लेकिन वो हेंडिल नहीं कर पाती और अंतत: राधा खुद आगे बढ़कर अरूण चौधरी का केस अपने हाथ में लेती है. फिल्म के दो और खूबसूरत गीतों का जि़क्र जरूरी है. 'वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है' (किशोरकुमार) और 'हमने देखी है उन आंखों की महकती खुश्बू, हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो.'
'सदमा' पर आते हैं. कस्बे के बेकग्राउंड में बुनी कहानी में श्रीदेवी एक्सीडेंट का शिकार होकर ऐसी बीमारी की जकड़ में आ जाती है जहां वह सब कुछ भूलकर एक मासूम बच्चे की तरह व्यवहार करने लगती है. हालात उसे चकले पर पहुंचा देते हैं. जहां अपने दोस्त के कहने पर पहुंचा शरीफ टीचर कमल हासन उसे निकालकर पास के गांव स्थित अपने घर ले आता है. अपने प्यार भरे व्यवहार और नॉन प्रोफेशनल नर्सिंग से उसका इलाज करता है. श्रीदेवी ठीक हो जाती है.
इधर, श्रीदेवी के माता पिता पुलिस में उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाते हैं. फिल्मी पुलिस की तरह यहां भी पुलिस श्रीदेवी तक ठीक उस वक्त पहुंचती है जब वो बस ठीक हुई ही है. श्रीदेवी के मां बाप कमल हासन के खिलाफ कार्रवाई नहीं चाहते और अपनी बेटी को लेकर शाम की ट्रेन से अपने गांव लौटने का निर्णय करते हैं. इधर, श्रीदेवी ठीक होने के बाद अब बीमारी के दौरान का सब कुछ भूल गई है. वह कमल हासन को भी नहीं पहचानती. जो दौड़ता-भागता, गिरता-पड़ता, मिट्टी में गिरकर सना हुआ, चलने को तैयार ट्रेन की खिड़की के सामने पहुंचता है. श्रीदेवी बीमारी में जो बच्चों जैसे हावभाव करती थी, उसकी नकल करके कमल हासन समझाना चाहता है कि वह उसका दोस्त और मददगार है. लेकिन श्रीदेवी तो बीमारी का सब कुछ भूल चुकी है, वो कमल हासन को भिखारी समझ कर उसकी तरफ ब्रेड उछाल देती है. ट्रेन चली जाती है.
अब सदमे के कारण कमल हासन उसी बीमारी का शिकार हो जाता है जिसका उसने इलाज कर श्रीदेवी को ठीक किया था. फिल्म का क्लाईमेक्स द्रवित करता है, पर ओवर फिल्मी होने से हताश भी करता है. बालू महेन्द्र निर्देशित इस फिल्म के गीत गुलज़ार ने लिखे हैं और इलैया राजा ने संगीत से सजाए हैं. 'ऐ जि़ंदगी गले लगा ले' और 'सुरमयी अंखियों में' सुने जाते रहे हैं.
'खामोशी' और 'सदमा' के अलावा एक और फिल्म है जिसे नर्सिंग फिल्म की केटेगरी में रखा जा सकता है, पर नहीं रखा जाता. क्योंकि वो ठेठ कमर्शियल मूवी है. 'अंजाम' माधुरी दीक्षित और शाहरूख खान की फिल्म है, जिसे स्टार कलाकारों के अलावा 'बड़ी मुश्किल है, खोया मेरा दिल है' और 'जोरा-जोरी चने के खेत में' जैसे गीतों के कारण भी याद किया जाता है. यह माधुरी दीक्षित से एकतरफा प्यार करने वाले धनाड्य और बिगड़ैल हीरो शाहरूख की कहानी है. हीरोइन अपने प्रेमी से शादी करती है और एक बच्ची की मां बन जाती है. बिगड़ैल हीरो उसका परिवार तबाह कर देता है और अंतत: खुद भी एक एक्सीडेंट का शिकार होकर अपाहिज की जि़ंदगी जीता है. पति और बेटा खो चुकी माधुरी अपनी नर्सिंग सेवा से उसे ठीक करती है. नार्मल होते ही उसे बेरहमी से मार डालती है. वह अपाहिज को नहीं मारना चाहती, इसलिए अपनी सेवा से पहले उसे ठीक करती है, फिर मारती है.
वापस 'खामोशी' पर. नर्स राधा के प्यार भरे इलाज से मरीज़ अरूण अब ठीक हो चुका है. उसे घर जाना है, वह राधा के प्यार में गहरा डूब चुका है, उसे साथ लेकर जाना चाहता है. लेकिन राधा तो देव के प्यार में आकंठ डूबी है और अब तक अरूण में देव की छवि ही तलाश रही थी. अब वो अरूण से नहीं मिलना चाहती. वार्ड नंबर चौबीस खाली हो चुका है. अब इसे किसी मरीज़ की जरूरत नहीं क्योंकि एक्सपरीमेंट पूरा भी हो चुका है और सफल भी. लेकिन वार्ड नंबर चौबीस की किस्मत में खाली रहना नहीं लिखा है. यहां अब एक नए मरीज़ की आमद होने वाली है, हो रही है, नए मरीज़ का नाम है – नर्स राधा. देव और अरूण की बीमारी एक्युट मेनिया की नई शिकार – नर्स राधा. सो बता दें 'वार्ड नंबर चौबीस खाली नहीं है'
TagsWorld Nurses Day
Rani Sahu
Next Story