सम्पादकीय

विकल्पहीन नहीं है दुनिया

Subhi
13 Jun 2022 4:59 AM GMT
विकल्पहीन नहीं है दुनिया
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यह सर्वथा सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छाओं, रुचियों, सफलता और महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने, सुविधाओं और भौतिक उद्देश्यों के लिए समाज और व्यवस्था की स्वीकृति पर जीता है

मीना बुद्धिराजा: यह सर्वथा सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छाओं, रुचियों, सफलता और महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने, सुविधाओं और भौतिक उद्देश्यों के लिए समाज और व्यवस्था की स्वीकृति पर जीता है, उस पर आश्रित है, क्योंकि वह उस लीक और परंपरा से अलग होकर नहीं चल सकता। उन नियमों और मान्यताओं के दबाव में, जो समाज के प्रचलन में हैं, चाहे वह मानदंड उसकी स्वतंत्र अस्मिता पर आघात करते हों। समाज द्वारा स्वीकृति पाने का महत्त्व और मूल्य भी तभी है जब अपने विवेक और चेतना के अनुसार चलने में भीड़ की कोई बाध्यता न उत्पन्न हो।

जब सामूहिकता की कसौटी पर अस्वीकार किए जाने का परिणाम भी उतना ही सार्थक और महत्त्वपूर्ण हो, चाहे वह व्यक्ति की अपनी पराकाष्ठा हो या फिर समाज पर उसकी विचारधारा का प्रभाव। अपनी अनुभूति को सामाजिक अनुभवों पर जांचते-परखते हुए उसका अपना अस्तित्व पुनर्निर्मित होता है और उस बदलाव के साथ-साथ उसका वह अंश, जिसे वह अपना अभिन्न, विशिष्ट, मौलिक और स्वतंत्र हिस्सा मानता है, भीड़ से वह उतना ही पृथक और सूक्ष्म होता जाता है। लेकिन इस प्रक्रिया में वह अंश उतना ही मूल्यवान, समृद्ध और गहरा होता रहता है, जो जीवन की इस पूरी खोज का रस है और व्यक्ति की अपनी उपलब्धि है, जो उसने समूह में रहते हुए अर्जित की है।

बहुत कुछ जो अनावश्यक है और अस्तित्व को उसकी स्वतंत्र पहचान से वंचित करता है, वह सब छोड़ कर ही और उस कृत्रिम आवरण को हटा कर ही, इसे पाया जा सकता है। जिन्हें हमने सामाजिक दबाव और परिस्थितियों के कारण, सफल होने के लिए, व्यक्तिगत स्वार्थों और महत्त्वाकांक्षाओं के लिए अपने व्यक्तित्व पर आरोपित किया हुआ है। जीवन का प्रत्येक अनुभव अपना मूल्य मांगता है, जिसमें चुनौतियां और जोखिम भी हैं, पर नया विकल्प, नया रास्ता भी तभी मिल सकता है।

जीवन के बुनियादी प्रश्न एक विचारशील व्यक्ति को बेचैन करते हैं और अस्तित्व के जरूरी सवालों के उत्तर खोजने के प्रयास में आंतरिक और बाहरी परिवेश का द्वंद्व इन विकल्पों की ओर ले जाता है। प्रत्येक नया अनुभव नया विकल्प लेकर आता है कि किसी एक मार्ग का अनुकरण संभव नहीं हो सकता और पराजित होना भी उसका समाधान नहीं है। इसलिए एक नए दृष्टिकोण की जरूरत होगी जो स्थापित परंपरा की अनुगामी नहीं, बल्कि उससे समृद्ध होकर अपना स्वतंत्र विकास करेगी।

यह प्रश्न साधारण होते हुए भी अपनी असाधारण सार्थकता को लेकर चलता है कि मनुष्य की अपनी एक स्वतंत्र सत्ता है, लेकिन समाज उसे समूह की एक ईकाई मान कर स्वीकृति देता है। इन आरोपित संकीर्णताओं से मुक्ति की आकांक्षा, जो उसकी अस्मिता को समाज के एक अंग के रूप में नियंत्रित करती है, उसकी सजग मानसिकता को प्रभावित करती है।

वैयक्तिक चेतना की यह अनुभूति अनिश्चित परिस्थितियों में अधिक प्रखर होती है, क्योंकि मनुष्य का अस्तित्व जड़ नहीं है। अगर वह विशेष परिस्थितियों का परिणाम है और एक विशेष प्रकार के संघर्ष से पैदा हुआ है, तब वह जिस रूप में है उसके अतिरिक्त कुछ और हो ही नहीं सकता था। व्यक्ति के जीवन के अनुभव और घटनाएं उसके आतंरिक बदलाव की प्रक्रिया में जिस अंतर्विरोध को उत्पन्न करती हैं और दोनों में जिस संतुलन को साधना है, वह इतना सरल नहीं, परंतु संभव है।

समाज और परिस्थितियों ने व्यक्ति को केवल चलने का अधिकार दिया है, लेकिन वह आगे कैसे और किस तरीके से बढ़े, इस विकल्प को समूह में से उसे स्वयं चुनना पड़ता है। अपनी मानसिक वैचारिक स्वतंत्रता और अस्तित्व की मौलिक पहचान को बनाए रखने के लिए जो नियम, मान्यताएं और प्रतिबंध जिस रूढ़, पूर्वनिर्धारित मार्ग पर चलने का दबाव आरोपित करते हैं। उन सभी दबावों की निरर्थकता को अस्वीकार करके वह अकेले भी अपने विकल्प को अपना कर चलने के लिए तैयार रहता है, जिसमें वह अपने संघर्ष और चुनौतियों से पार पाने का नैतिक साहस अपने आत्मचिंतन से पाता है, न कि किसी बाहरी सहारों से। भीड़ की उस लीक पर चलने की विवशता को छोड़ कर वह उस उदारता और मुक्त दृष्टिकोण को प्राप्त करना चाहता है, जिसके लिए उसे प्रत्येक क्षण संघर्ष करना पड़ता है अपने आप से और समाज की आरोपित मानसिकता से।

अस्तित्व की मुक्ति के इस विकल्प में आगे बढ़ने के लिए कई बार पीछे भी हटना पड़ता है। इस वैयक्तिक और मानवीय मुक्ति के विराट दायित्व में कुछ पुराना खोकर और छोड़ कर ही अपना नया अस्तित्व पाया जा सकता है। यह एक विशिष्ट कोटि की स्वतंत्रता है, जिसमें नए रास्तों का अन्वेषण है और बहुत-सी अनिश्चितताओं की चुनौती से जूझने का जोखिम है, लेकिन इसमें निर्णय और परिणाम से अधिक मूल्य-विरोधी समय में भी उन असंभव विकल्पों को अपना कर उन्हें संभव बनाना और उस नई व्यवस्था पर चलना है।


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