सम्पादकीय

विश्व उपभोक्ता दिवस विशेष: बाजार पर हावी होता उपभोक्तावाद

Rani Sahu
15 March 2022 9:33 AM GMT
विश्व उपभोक्ता दिवस विशेष: बाजार पर हावी होता उपभोक्तावाद
x
आज के आधुनिक युग में हर व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त एक उपभोक्ता ही है

डॉ. ऐश्वर्या झा

आज के आधुनिक युग में हर व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त एक उपभोक्ता ही है। इक्कीसवीं सदी में व्यक्ति के आचार विचार पर विज्ञापन और उपभोक्तावाद का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है। विज्ञापनों का मायाजाल मनुष्य की मानसिकता पर दिन ब दिन हावी होता जा रहा है। आप जब भी बाजार से कोई सेवा लेते हैं या कोई चीज खरीदते हैं तो आप एक उपभोक्ता बन जाते हैं। हम में से हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में उपभोक्ता है। उपभोक्तावाद बाजार का ऐसा रूप है जहां हमारे उपभोग का स्वरूप हमारी आवश्यकताएं नहीं, व्यावसायिक हित निर्धारित करते हैं ।उपभोक्तावाद हमें इस हद तक अमानवीय बनाता है कि वह मनुष्य की जगह वस्तु को रख देता है।
उपभोक्ता पर उपभोक्तावाद की सोच हावी होती जा रही है। बाज़ार एवं टेक्नोलॉजी के गठजोड़ ख़ास कर आर्टफिशल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग आदि ने इस चुनौती को और बढ़ा दिया है।
कारोबारी और विज्ञापनदाता उपभोक्ता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हर सही ग़लत हथकंडे अपनाते हैं। बाजारवाद एवं उपभोक्तावादी संस्कृति के इस मायाजाल के समक्ष उपभोक्ता बेबस एवं लाचार खड़ा है। वस्तुओं की गुणवत्ता के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। कोई भी चीज मिलावटरहित मिलना असंभव सा लगता है। मेहनत की कमाई बाजारवाद की भेंट चढ़ती जा रही है।
उपभोक्ता में उत्पादकता और गुणवत्ता संबंधित जागरूकता को बढ़ाने व उपभोक्ता कानूनों के बारे में लोगों को जानकारी देने के उद्देश्य से हर वर्ष 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। एक उपभोक्ता होने के नाते आपके कुछ अधिकार भी हैं लेकिन बहुत से लोग अपने इस अधिकार के प्रति उदासीन हैं ।
भारत की विशाल जनसंख्या उसे वैश्विक पटल पर एक बड़ा बाजार बनाती है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के अनुसार भारत आगामी दस वर्षों में अमेरिका और चीन के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बनने को तैयार है। उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए ही उपभोक्ता कानून को लाया गया ।भारत में उपभोक्ता आंदोलन की शुरुआत 1966 में महाराष्ट्र से हुई थी।
दिसंबर 1986 में उपभोक्ता संरक्षण कानून बना किंतु जागरूकता के आभाव में कानून अधिक प्रभाव नहीं दिखा सका। भारत सहित विश्व में ई-कॉमर्स एवं डिजिटल लेन-देन प्रचलन बढ़ा है। नोटबंदी एवं कोविड महामारी के कारण भारतीय बाजार में ई-कॉमर्स और डिजिटलीकरण का नया दौर तेज़ी से बढ़ता जा रहा है।
मेगा सेल, डिस्काउंट की नई संस्कृति तथा बड़े बड़े कंपनी के निवेश से बाज़ार का अंकगणित इस क़दर बिगड़ा है कि छोटे एवं मझौले व्यापारी पर अस्त्तिव का संकट खड़ा हो गया है। बड़े-बड़े उद्योगपति का मोबाइल एप एवं ई-कॉमर्स वेबसाइट के माध्यम से अगररेग्रेटर बन किराना दुकान,फ़ल, सब्ज़ी, दवा, रेस्टुरेंट सहित छोटे-छोटे बाज़ार में ज़बरन कब्ज़ा करने से दुकानदार एक डिलीवरी एजेंट बन कर रह गया है।
ये समाज में नई विषमता उत्पन्न कर रहा है, जिसका दूरगामी प्रभाव होगा। एप्प एवं ई -कॉमर्स से सुविधा जरूर हुई है किंतु डिजिटल धोखाधड़ी और साइबर अपराधों की संख्या में कई गुणा इजाफ़ा भी हुआ है। अशिक्षा के कारण ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में साइबर एवं बैंकिंग फ्रॉड अधिक हो रहे है। उपभोक्ता संरक्षण क़ानून इस तरह के मामले को रोकने में सहायक हो सकते हैं ।
भारत सरकार ने तीन दशक के बाद उपभोक्ता संरक्षण क़ानून में कई बदलाव किये हैं जो 20 जुलाई 2020 से लागू किये गए । इन में से उपभोक्ता संरक्षण,विवाद निवारण आयोग, मध्यस्थता, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद नियम सहित उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम 2020 शामिल हैं। ये नियम पुराने नियम की तुलना में अधिक व्यापक हैं एवं उपभोक्ता केंद्रित हैं। इनके माध्यम से जागरूक उपभोक्ता को और अधिक सशक्त, सक्षम बनाने की कोशिश की गई है। नये नियम में सुरक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, चुनने का अधिकार, सुनने का अधिकार, निवारण का अधिकार और उपभोक्ता शिक्षा के अधिकार के रूप में छः बुनियादी अधिकारों की गारंटी दी गई है।
नए क़ानून में शिकायत रजिस्टर करने के लिए फ्री टोल कॉल अथवा ऑनलाइन, एवं मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से शिकायत दर्ज करवाई जा सकती हैं। अधिकांश मामले शिकायत दर्ज करने से ही हल हो जाते है किंतु लोगों में सूचना के अभाव में इन माध्यम का बहुत कम उपयोग हो पा रहा है।
नए कानून में यह प्रावधान है कि अब कहीं से भी उपभोक्ता शिकायत दर्ज कर सकता है। पहले उपभोक्ता वहीं शिकायत दर्ज कर सकता था, जहाँ से उसने सेवा ली है। उपभोक्ता संरक्षण कानून लागू होने के बाद से अगस्त 2021 तक कुल 54. 85 लाख शिकायत विभिन्न कंस्यूमर फ़ोरम में आये जिस में से राष्टीय स्तर पर 1. 38 लाख, राज्य स्तर 8 . 74 लाख,ज़िले स्तर 44. 72 लाख मामले थे। जिन में से लगभग 90 फ़ीसदी मामलों का निबटारा कर दिया गया । हर वर्ष औसतन 1.5 से 2 लाख मामला दर्ज किये जाते हैं, जिन में से 20 -25 % मामले ई कॉमर्स से सम्बंधित होते हैं । कंस्यूमर फ़ोरम में मुकदमा करने के नए नियम और भी सुलभ हो गए हैं।
ज़िला कंस्यूमर फ़ोरम में 50 लाख तक, राज्य में 50 लाख से 2 करोड़ तक , राष्टीय कंस्यूमर फ़ोरम में इससे अधिक के मामले सुने जाते हैं ।कंस्यूमर फ़ोरम में केस दर्ज करवाने की फ़ीस बहुत कम है, 5 लाख तक के मामले को दर्ज कराने के लिए कोई शुल्क नहीं है। 5-10 लाख तक के मामले मात्र 200 रु,10 -20 लाख में 400 एवं 20 लाख से 50 लाख तक 1000 रु ही कोर्ट फ्री का प्रावधान है।
विज्ञापनों की प्रमाणिकता की जांच के लिए भी ऐडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया' (ASCI) संस्था बनाई गयी है। सभी विज्ञापनदाताओं को भ्रामक जानकारी वाले प्रचार पर सख्ती तथा प्रिंट और टीवी पर निगरानी भी शुरू की गई है।
इक्कीसवीं सदी के बदलते परिवेश में यह उम्मीद की जा सकती है कि सरकार के द्वारा लाए गए इस नए उपभोक्ता कानून से निश्चित रूप से सामान्य उपभोक्ताओं को लाभ मिलेगा। ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि नया उपभोक्ता संरक्षण कानून समय की कसौटी पर कितना खड़ा उतरेगा।
Next Story