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वक्त की मांग हैं विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय: विश्व शक्ति बनने के लिए जरूरी है भारत अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली को सुधारे
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| [ डॉ. मोनिका वर्मा ] कुछ दिन पहले विश्व भर के शिक्षण संस्थानों से जुड़ी क्यूएस वर्ल्ड यूनिर्विसटी रैंकिंग रिपोर्ट जारी हुई। इसमें आठ भारतीय संस्थानों ने शीर्ष 400 में अपनी जगह बनाई है। इनमें देश के सात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आइआइटी और बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (आइआइएससी) शामिल है। इस बार आइआइटी बंबई ने भारतीय विज्ञान संस्थान को पछाड़कर 177वें स्थान पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। वहीं भारतीय विज्ञान संस्थान इस वर्ष 186वें स्थान पर खिसक गया है। इसके विपरीत गैर-तकनीकी संस्थानों में से एक भी संस्थान शीर्ष 500 में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाया। दिल्ली विवि, जवाहरलाल नेहरू विवि जैसे देश के नामी-गिरामी संस्थान भी इस फेहरिस्त में काफी निचले स्थानों पर हैं। वे क्रमश: 501-510 एवं 561-570 पर ही अपनी जगह बना पाए। सवाल है कि भारत का एक भी विश्वविद्यालय शीर्ष 10 तो छोड़िए, चोटी के 100 में भी अपनी जगह क्यों नहीं बना पाया? एशिया में अव्वल सिंगापुर की नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर रही, जिसकी रैंक 11 आंकी गई। दरअसल इस सर्वे में विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता को मापा जाता है। इसमें उनकी शैक्षिक गुणवत्ता, उनकी नियोक्ता प्रतिष्ठा, शैक्षिक संकाय द्वारा लिखे गए शोध पत्रों की कुल सायटेशन की संख्या एवं अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों की संख्या आदि के आधार पर उनकी र्रैंंकग तय की जाती है।