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सोर्स - दिव्याहिमाचल
हाल ही में एक संसदीय समिति ने उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुदान को टैक्स से छूट की सिफारिश की है। समिति ने कहा है कि देश के निजी शिक्षण संस्थानों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। देश में प्राइवेट संस्थानों में सुधारों के साथ-साथ इनकी संख्या बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। संसदीय समिति की ताजा सिफारिश भी इन संस्थानों को आत्मनिर्भर बनाने में एक बहुत बड़ा कदम होगा। इसके अलावा संसदीय समिति ने इसके साथ ही शिक्षण संस्थानों के साथ कोचिंग संस्थानों की मिलीभगत, प्रश्न पत्र लीक, छात्र-परीक्षक गठजोड़ जैसे मुद्दों को लेकर भी चिंता जताई है। समिति ने शिक्षा मंत्रालय से सिफारिश की है कि उच्च शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाना है तो इन विषयों से निपटना ही होगा। इसके साथ ही समिति ने कई और अहम सिफारिशें की हैं। जैसे, डीम्ड विश्वविद्यालय की जगह सिर्फ विश्वविद्यालय शब्द का प्रयोग, नियामक के कामकाज व अधिकारों में किसी तरह का टकराव न पैदा हो, उच्च शिक्षा संस्थानों को उद्योगों के साथ अपने जुड़ाव और वर्तमान स्थिति की समीक्षा करनी चाहिए और उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की कमी को दूर करने और पर्याप्त और योग्य शिक्षकों की तैनाती के लिए शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में सुधार करना चाहिए। इस समय देश में उच्च शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाया जाना जरूरी है। मेरे तजुर्बे के बस्ते में कुछ सुझाव हैं। राज्यों में उच्च शिक्षा के लिए आउटपुट आधारित फंडिंग को बढ़ावा दिया जाए। केंद्र की ओर से दी जाने वाली धनराशि में राज्य में संस्थानों की संख्या, काम का बोझ और मानकों के अनुरूप परिणाम को देखकर फंडिंग तय की जाए। संस्थानों में मानकों के अनुरूप शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रदर्शन आधारित फंडिंग को भी बढ़ावा दिया जाए। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्रस्तावित सुधारों, संस्थानों की ओर से संबद्धता, शैक्षणिक और परीक्षा संबंधी सुधारों के प्रयास को अहमियत दी जाए। गुणवत्तापूर्ण संकाय और हर स्तर पर क्षमता निर्माण के प्रयासों को तरजीह दी जाए। समानता और सभी तक शिक्षा की पहुंच के प्रयासों को अहमियत दी जाए। रिसर्च और अध्यापन को अलग करने के लिए अनेक प्रयासों की जरूरत है। बदलते समय के साथ लचीले पाठ्यक्रम की भी आवश्यकता है।