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By: divyahimachal
धरती से चांद के सपने मानव सभ्यता के संदर्भों को भरते रहे हैं, लेकिन विज्ञान के कदमों ने सारी दूरियां व कल्पनाएं मिटा दीं। चंदा मामा न तो दूर के रहे और न ही किसी और के रहे, बल्कि भारत के समीप आज एक ऐसा चांद है, जो विज्ञान की अभिलाषा, महत्त्वाकांक्षा और चेतना को सराबोर कर देता है। एक बड़े अभियान की परिकल्पना, छोटे-छोटे कदम और कुछ ठोकरें भी रहीं, लेकिन 23 अगस्त सायं 6 बजकर चार मिनट पर भारत के तिरंगे ने देश की सीमा और संभावना को विश्व बिरादरी की असीम आशाओं से भर दिया। चांद पर चौथे देश की उपस्थिति में भारत का सिक्का दक्षिण धु्रव में अलग से अलंकृत है, क्योंकि यहां हमारे निशान केवल हमारे ही कारण हैं। अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की उपलब्धि ने देश की वैश्विक गणना और प्रमाणिकता को अंगीकार करते हुए हमें ऐसा तमगा पहनाया है, जो हमें इस वजह से विकसित देशों की पांत में आगे कर देता है। आज जहां हम हैं, वहां कोई यूरोपीय देश या जापान व कोरिया तक नहीं हैं। चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम ने जिस खूबसूरती, जिस स्पष्टता, जिस शुद्धता, जिस विश्वास और जिस कर्मठता से दक्षिण धु्रव की दुरुहता पर कब्जा किया है, उसके कारण भारत के वैज्ञानिक आज पुन: विश्व विजेता की तरह अंगीकार हुए हैं। यूं तो भारतीय वैज्ञानिक इसरो के साथ-साथ नासा के तमाम अभियानों में भी अहम किरदार में रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय ध्वज के साथ चंद्र पथ पर उनका मुकाम अब भविष्य की साइंस को आश्वस्त कर रहा है।
यहां विज्ञान की विजय में भारत का डंका बज रहा है, इसलिए इसे किसी सियासत का हिस्सा बनने की जरूरत नहीं। हमने 1962 में जब इसरो की स्थापना की थी, तो देश की कंगाली में ऐसी प्राथमिकता चुन लेना तब एक वर्ग को पागलपन जैसा ही लगा था, लेकिन जब 1975 में पहला राकेट ‘आर्य भट्ट’ लांच किया, तो हम अपने इर्द-गिर्द से बाहर ब्रह्मांड को जीतने निकल चुके थे। हमें अंतरिक्ष प्रोग्राम किसी की खैरात से नहीं मिला, बल्कि चांद पर उतरा लैंडर विक्रम लोहा मनवा रहा है कि भारत ने अपने दम, हुनर और क्षमता से विज्ञान का सर्वश्रेष्ठ सृजित किया है। इसीलिए अंतरराष्ट्रीय विज्ञान जगत मान चुका है कि हमारा चंद्रयान-3, रूस से दस गुना बेहतर तकनीक पर आधारित है और अमरीका से पंद्रह गुना सस्ता विश्वसनीय हस्तक्षेप है। निश्चित रूप से अब अंतरिक्ष विज्ञान के आगामी हर पथ पर भारत की भूमिका, एक विकासशील और वैज्ञानिक देश के रूप में होगी। भले ही हम पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और आगे चल कर तीसरी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे, लेकिन प्रति व्यक्ति आय में हम इसी तरह शक्तिमान हो जाएं तो आने वाली सदियां पूरी तरह हम ही लिखेंगे। बहरहाल चंद्रयान-3 की सफलता ने भारतीय विज्ञान की चेतना और महत्त्वकांक्षा को मीलों आगे पहुंचा दिया है और अगर युवाओं की क्षमता देश पहचान पाया, तो सारी करवटें विश्व की संभावनाओं को हमारे नजदीक ले आएंगी, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वर्तमान में हर साल दो से ढाई लाख पढ़े लिखे मेहनती, ईमानदार तथा बुद्धिमानी युवा बाहर पलायन कर रहे हैं। जिस राष्ट्रीय भावना का उद्घोष 1984 में चांद पर पहुंचने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री विंग कमांडर राकेश शर्मा ने, ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तान हमारा’ कह कर किया था, आज पुन: राष्ट्रीय भावना का वैसा ही उफान चांद से मुलाकात कर रहा है। हिमाचल के लिए उसके दो बेटों रजत अवस्थी और डा. अनुज चौधरी का चंद्रयान-3 अभियान की टीम का सदस्य होना भी हमारे प्रदेश की एक शानदार उपलब्धि है।
Rani Sahu
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