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डॉ. ईश्वर गिलदा
वर्तमान में, भारत में एचआईवी (HIV) संक्रमित लोगों की संख्या 23 लाख हैं. इनमें से 76 प्रतिशत लोग अपनी एचआईवी की स्थिति को जानते हैं, उनमें से 84 प्रतिशत एंटी-रेट्रोवायरल ट्रीटमेंट (ART) ले रहे हैं. एआरटी ट्रीटमेंट ले रहे लोगों के वायरल लोड के आकलन से पता चलता है कि उनमें से 84 फीसदी वायरली सप्रेस्ड (suppressed) हैं. यानी, उनके प्रति मिलीलीटर ब्लड में 200 से कम HIV वायरस पाए गए. भारत में 2010 और 2019 के बीच नए एचआईवी संक्रमण में सालाना 37 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि वर्ल्ड लेवल पर यह दर 23 प्रतिशत है. इसी तरह, इसी अवधि के दौरान एड्स से संबंधित मौत के मामले में ग्लोबल औसत 39 प्रतिशत की गिरावट की तुलना में देश में लगभग 66 प्रतिशत की गिरावट आई है (स्रोत: NACO 2020).
आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में मौत के मामलों में राष्ट्रीय औसत से अधिक गिरावट है, और यह ध्यान देने योग्य है कि महिलाओं और बच्चों में मामले में यह क्रमशः 73.7 और 65.3 प्रतिशत है.
एचआईवी टीकों के साथ क्या चुनौतियां हैं?
हमारे यहां दो प्रकार के टीके हैं: एक उनके लिए जो एचआईवी नेगेटिव हैं और इसे निवारक टीका या इम्यूनोप्रोफिलैक्सिस (Immunoprophylaxis) कहा जाता है. दूसरा एचआईवी पॉजिटिव के लिए है और वह है एचआईवी संक्रमण को क्लीनिकल स्टेज में बढ़ने से रोकना और इसे चिकित्सीय (therapeutic) वैक्सीन या इम्यूनो-थेरेपी (Immunotherapy) कहा जाता है जो एक तरह से उपचार के समान है. लंबे समय तक काम करने वाले एंटीरेट्रोवाइरल (antiretrovirals), कैबोटाग्रेविर (Cabotegravir) और रिलपीवायरिन (Rilpivirine) की सफलता के बाद इस क्षेत्र में बहुत प्रगति हुई है, हालांकि पीएलएचआईवी (PLHIV) के लिए दैनिक ओरल मेडिसिन के बजाय महीने या दो महीने पर इंजेक्शन के साथ इलाज करने की जरुरत होती है. दोनों प्रकार के टीकों के लिए बड़े पैमाने पर नूट्रलाइज़िंग एंटीबॉडी पर कई स्टडीज हो रहे हैं.
एचआईवी वैक्सीन डेवलपमेंट की गति धीमी
वैक्सीन रिसर्च और डेवलपमेंट बेहद लंबा और महंगा सुझाव है. बिना किसी कमर्शियल वैक्सीन के इस क्षेत्र में 35 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद, बहुत कम कंपनियां और रिसर्च लैब्स हैं जो एचआईवी वैक्सीन विकास में निवेश करेंगी. इसके अलावा, एआरटी (ART) की उच्च सफलता दर और एआरटी को उस लेवल तक किफायती और सुलभ बनाने में भारत की भूमिका के साथ HIV वैक्सीन डेवलपमेंट की गति धीमी हो गई है. वैश्विक स्तर पर 82 प्रतिशत पीएलएचआईवी (PLHIVs) भारत में बने एआरटी पर निर्भर हैं.
कोविड वैक्सीन की सफलता के बाद दो खास COVID वैक्सीन प्लेटफॉर्म हैं जिनका उपयोग सफलतापूर्वक एचआईवी के लिए किया जा सकता है. एक है एमआरएनए (mRNA) और दूसरा है डीएनए (DNA). Zydus Cadila ने COVID के लिए Zycov-D नामक DNA वैक्सीन बनाया है और उस प्लेटफॉर्म का उपयोग HIV के लिए भी किया जा सकता है. लेकिन mRNA बहुत ही सफल प्लेटफार्म है, जिसका उपयोग फाइजर (Pfizer) और मोडेना (Modena) द्वारा किया जाता है. पुणे स्थित जेनोवा बायो (Gennova Bio) अभी डेवेलप हो रहा है और हैदराबाद स्थित बायोलॉजिकल-ई (Biological-E) बीएनएबी का उपयोग करता है.
2019 में 3 राज्यों की 1% से अधिक वयस्क आबादी एचआईवी संक्रमित थी
हालांकि इस क्षेत्र में सराहनीय प्रगति हुई है, इसके बावजूद 2030 तक एड्स को समाप्त करने के मामले में हमारी विकास यात्रा के सामने कई चुनौतियां बनी हुई हैं. 2019 में तीन राज्यों में वयस्क आबादी में एचआईवी का प्रसार एक फीसदी से अधिक था: मिजोरम (2.32 प्रतिशत), नागालैंड (1.45 प्रतिशत), और मणिपुर (1.18 प्रतिशत).
ड्रग्स का उपयोग करने वाले लोगों में एचआईवी का प्रसार सभी वयस्क आबादी में हुए प्रसार की तुलना में लगभग 28 गुना अधिक है. इसी तरह, एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) समुदाय और यौनकर्मियों में एचआईवी का प्रसार छह से 13 गुना अधिक है. जेलों में बंद कैदियों में, जहां हाई रिस्क बिहेव्यर (high-risk behaviour) वाले लोग अधिक है, एचआईवी का प्रसार लगभग नौ गुना अधिक है. 2019 में 69,000 से अधिक लोग एचआईवी से संक्रमित हुए थे जो कि अनुमानित 2020 के माइलस्टोन (2010 के बाद से 75 प्रतिशत की कमी) के दोगुने से अधिक है.
यह रोग किस तरह के खतरे पैदा करता है?
एचआईवी रोग एक पुरानी बीमारी है. इसके संक्रमण के बाद शुरुआती कुछ वर्षों में कोई लक्षण नहीं दिखते है, लेकिन जब एक बार इम्युनिटी (immunity) यानी, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है और रोग बढ़ना शुरू हो जाता है, तो संक्रमित व्यक्ति को किसी भी तरह का संक्रमण हो जाता है, जिसमें सबसे सामान्य तपेदिक (Tuberculosis), पीसीपी निमोनिया (PCP pneumonia) और ओरल थ्रश (oral thrush) होते हैं.
यदि ऐसी स्थितियों में जांच और उपचार नहीं किया जाता है, तो इन आपर्टूनिस्टिक इन्फेक्शन्स (Opportunistic infections -OIs) के कारण व्यक्ति की मौत हो सकती है. हालांकि, एआरटी आने बाद, एचआईवी (HIV) डायबिटीज की तरह या उससे भी बेहतर एक पुरानी नियंत्रण में रखने योग्य बीमारी बन गई है. एआरटी में हुए प्रोग्रेस और उसमे आई बेहतरी के साथ वर्तमान नियमों के मुताबिक केवल 3 से 6 महीनों में एचआईवी वायरल संक्रमण में पीएलएचआईवी का पता लगाना बेहद मुश्किल हो जाता है. बेहद अन्डिटेक्टबल का मतलब है अनट्रांस्मिटेबल – Undetectable = Untransmittable (U=U) है और इस प्रकार एचआईवी के ट्रांसमिशन की चेन थम जाती है.
ART पर किसी भी PLHIV को आज हम जो गारंटी दे सकते हैं, वह यह है कि उसे बीमार और अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है, उसे किसी अन्य व्यक्ति को सेक्सुअली या मां से बच्चे में संक्रमण नहीं फैलाना है, और किसी असंक्रमित व्यक्ति के समान संपूर्ण जीवन जीना है और जीवन भर बिना किसी बाधा के सभी कामों को करते रहना है.