सम्पादकीय

जलवायु परिवर्तन की चपेट में श्रमिक

Gulabi Jagat
27 Jan 2025 9:46 AM GMT
जलवायु परिवर्तन की चपेट में श्रमिक
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Vijay Garg: जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि श्रमिकों के रोजगार, कार्यक्षमता, कार्यावधि उत्पादकता, स्वास्थ्य और जीवन को प्रभावित करती है। निम्न पर्यावरणीय दशाओं में कार्य करने को विवश श्रमिक स्वास्थ्य के साथ-साथ जीवन की हानि के रूप में बड़ी कीमत चुकाता है। चरम मौसमी घटनाओं के कारण जब लोग घर से बाहर निकलने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाते हैं, वैसी स्थिति में भी श्रमिक रोजगार के लिए दर-दर भटकने को विवश होते हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित होने वाले श्रमिक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार 2030 तक दुनियाभर कुल कामकाजी घंटों का 3.8 प्रतिशत तक जलवायु-प्रेरित उच्च तापमान के कारण नष्ट हो सकता है। यह 13.6 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर है। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2400 अरब डालर की चपत लग सकती है। तापमान में वृद्धि कार्यस्थल पर श्रमिकों के स्वास्थ्य और जीवन के लिए खतरा उत्पन्न कर सकती है। ऐसी परिस्थिति में श्रमिक अपेक्षाकृत कम काम कर पाते हैं, क्योंकि गर्मी की मार से बचने के लिए बार-बार विराम लेने की आवश्यकता पड़ सकती है। भीषण गर्मी श्रमिकों में थकावट, लू और मृत्यु का कारण भी बन सकती है। वहीं पराबैंगनी किरणों के लगातार संपर्क में रहने से त्वचा कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। अध्ययनों से पता चलता है कि तापमान 24 से 26 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाने पर कार्य उत्पादकता धीमी हो जाती है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि 33 से 34 डिग्री सेल्सियस पर उन नौकरियों में उत्पादकता का स्तर आधा हो सकता है, जिनमें शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है। श्रमिकों को वायु प्रदूषण के बढ़ने से श्वसन संबंधी विकारों का सामना करना पड़ता है। धूल, धुएं और प्रदूषण वाले इलाकों में निरंतर काम करने से उनमें अस्थमा व अन्य बीमारियां घर करती हैं। वहीं तीव्र वर्षा और हाड़ कंपाने वाली सर्दी के दिनों में भी श्रमिकों को कार्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। दूसरी और बाढ़ एवं सूखा जैसी आपदाओं के कारण श्रमिकों का रोजगार छिन जाना और पलायन की बेबसी भी एक बड़ी आर्थिक विपदा है।
बहरहाल निम्न पर्यावरणीय स्थिति श्रमिकों की कार्यक्षमता को कम करती है। इस प्रक्रिया से उत्पादन और क्रमशः आर्थिक विकास प्रभावित होता है। जलवायु परिवर्तन कई बार निर्माण कार्यों में संलग्न श्रमिकों के लिए काल बन जाता है। पर्यावरण की रक्षा इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इससे रोजगार की रक्षा करना और गरीबी से लड़ना आसान हो सकता है। इससे श्रमिकों को कार्य करने की बेहतर परिस्थिति प्रदान की जा सकती है। श्रमिकों से संतोषजनक काम लेने के लिए जरूरी है कि उन्हें बेहतर पर्यावरणीय माहौल उपलब्ध कराया जाए।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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