सम्पादकीय

कथनी और करनी

Subhi
14 Jun 2022 4:45 AM GMT
कथनी और करनी
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भारत को लेकर चीन की ओर से दिखावटी बयान आते रहना कोई नई बात नहीं है। हाल में चीन के रक्षा मंत्री वेई फेंग ने सिंगापुर में शंगरी ला संवाद के दौरान भारत के बारे में जो कहा, उससे साफ हो गया कि हमेशा की तरह की इस बार फिर चीन ने सुर बदला है।

Written by जनसत्ता: भारत को लेकर चीन की ओर से दिखावटी बयान आते रहना कोई नई बात नहीं है। हाल में चीन के रक्षा मंत्री वेई फेंग ने सिंगापुर में शंगरी ला संवाद के दौरान भारत के बारे में जो कहा, उससे साफ हो गया कि हमेशा की तरह की इस बार फिर चीन ने सुर बदला है। चीनी रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत अच्छा पड़ोसी है और हम वार्ता से ही सीमा विवाद निपटा लेंगे। लेकिन साथ ही वे यह कहने से भी नहीं चूके कि लद्दाख में गलवान घाटी की घटना के लिए दोषी भारत है।

ऐसा पहली बार नहीं है कि चीन भारत को जहां अच्छा पड़ोसी बताता रहा है, वहीं वह ऐसे विवाद भी खड़े करता रहता है जो दोनों देशों के बीच न केवल तनाव बढ़ाने वाले होते हैं, बल्कि कई बार युद्ध जैसे हालात पैदा कर देते हैं। देखा जाए तो इस वक्त यही स्थिति बनी हुई है। दरअसल भारत के साथ रिश्तों को लेकर चीन जिस तरह की पलटी मारता रहता है और समय-समय पर उसके शीर्ष स्तर के नेता जिस तरह के बयान देते हैं, उससे तो उसका दोहरा चरित्र ही सामने आता रहा है।

इसमें तो कोई संदेह नहीं कि भारत की सुरक्षा को सबसे ज्यादा चुनौतियां और खतरा अगर किसी से है तो वह चीन और पाकिस्तान हैं। भारत और चीन का सीमा विवाद सात दशक से भी ज्यादा पुराना है। चीन के साथ बड़ा युद्ध भी हो चुका है। यह भी कि चीन की विस्तारवादी नीतियों ने विवाद के नए ठिकाने बना दिए हैं। दो साल पहले गलवान का विवाद भी ऐसा ही था, जिसमें चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया था और चौबीस भारतीय जवान शहीद हो गए थे।

ऐसे में चीनी रक्षा मंत्री फेंग अगर यह कहते हैं कि भारत अच्छा पड़ोसी है और उसके साथ मिलजुल कर विवाद सुलझा लेंगे, तो इससे चीनी नेताओं की छिपी मंशा ही उजागर होती है। गौरतलब है कि गलवान घाटी में हमले के बाद उत्पन्न गतिरोध को दूर करने के लिए अब तक पंद्रह दौर की बैठकें हो चुकी हैं। लेकिन क्या कोई ठोस नतीजा निकला? हर बार चीन कुछ न कुछ ऐसा रुख दिखा देता है जिससे शांति की दिशा में बढ़ते कदम ठिठक जाते हैं।

चीन अगर भारत को अच्छा पड़ोसी करार देता है और मिल-बैठ कर सीमा विवाद हल करने की बातें करता है तो फिर समस्या कहां आती है? क्यों नहीं पिछले सात दशकों में सीमा विवाद हल हो पाया? क्यों एक अच्छे पड़ोसी के साथ उसने गलवान जैसा विवाद खड़ा कर दिया? क्यों वह अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोकता रहता है, जबकि स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है।

जब भी भारतीय नेता अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर जाते हैं तो चीनी नेताओं की भौंहें तनने लगती हैं और चीनी विदेश मंत्रालय भारत के समक्ष आपत्ति दर्ज करवाने लगता है। क्या एक अच्छे पड़ोसी के साथ ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए? अगर वह भारत को अपना अच्छा पड़ोसी मानता है तो क्यों पाकिस्तान को भारत के खिलाफ उकसाता और मदद देता रहता है? दरअसल, चीन भारत को लेकर सामने तो मीठी बातें करता हैं और पीछे से वार। यह उसकी पुरानी नीति रही है। साल 1962 के युद्ध से लेकर आज तक की घटनाएं इसकी गवाह हैं। चीन अगर भारत से वाकई अच्छे पड़ोसी के रिश्ते रखना चाहता है तो सबसे पहले उसे अपनी कथनी और करनी का फर्क मिटाना होगा।


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