सम्पादकीय

एक दशक में बढ़ीं महिला प्रोड्यूसर, महिलाएं अब कठपुतली नहीं निर्णायक भूमिका में हैं

Gulabi
24 Sep 2021 11:38 AM GMT
एक दशक में बढ़ीं महिला प्रोड्यूसर, महिलाएं अब कठपुतली नहीं निर्णायक भूमिका में हैं
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बॉलीवुड में निर्माताओं की फेहरिस्त में तापसी पन्नू नया नाम है

अनुपमा चोपड़ा का कॉलम:

बॉलीवुड में निर्माताओं की फेहरिस्त में तापसी पन्नू नया नाम है। तापसी ने बताया कि वह दखलअंदाजी करने वाली अभिनेत्री नहीं बनना चाहतीं। फिल्म उद्योग में इसे 'इंट्रूसिव एक्टर' कहा जाता है। तापसी कहती हैं कि वह रुचि के साथ किसी प्रोजेक्ट को शुरुआत से अंत तक अंजाम देने वाली बनना चाहती हैं।


वह कहती हैं कि उनका मुख्य उद्देश्य लाभ में हिस्सेदारी नहीं, बल्कि रचनात्मक तरीके से चीजों पर नियंत्रण हासिल करना है। बतौर निर्माता वह तय कर सकेंगी कि निर्देशक कौन होगा, कहानी क्या होगी, प्रोजेक्ट कैसे आगे बढ़ेगा। बॉलीवुड में अब तक अभिनेता ही निर्माता की भूमिका में रहे हैं। कुछ सिर्फ नाम के प्रोड्यूसर्स थे, ताकि लाभ में हिस्सा मिल सके। तो कुछ ने वाकई मेहनत की। आमिर खान इसका उदाहरण हैं।

जब लगान फिल्म के लिए उन्होंने निर्माता खोजे, तो फिल्म की पृष्ठभूमि, कहानी को देखकर कोई भी पैसा लगाने वाला नहीं मिला। आखिरकार आमिर ने खुद फिल्म प्रोड्यूस की। अक्षय, शाहरुख चंद जैसे सुपरस्टार भी प्रोड्यूसर बन गए। वैसे ये चलन बन गया है कि सफलता के एक स्तर पर पहुंचने के बाद कलाकार अपना खुद का प्रोडक्शन हाउस शुरू कर देते हैं। लेकिन महिलाओं के मामले में स्थिति थोड़ी अलग रही है।

लारा दत्ता ने 2011 में 'चलो दिल्ली' फिल्म प्रोड्यूस की थी। इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि जब स्टूडियो या कहीं पैसों की बात करने जाती थीं, लोगों को लगता था कि महिलाओं के साथ पैसों की बात कैसे करें। अनुष्का जब 'एनएच-10' की कहानी लेकर सामने आईं, तो उन्हें भी निर्माता नहीं मिले।

हिंसक कहानी और लीड रोल में महिला की स्वीकार्यता नहीं थी। ऐसे में अनुष्का ने अपना प्रोडक्शन हाउस बनाकर फिल्म बना दी जो सफल रही। दीपिका की 'छपाक' के साथ भी ऐसा हुआ, नतीजतन उन्हें भी निर्माता बनना पड़ा। पिछले एक दशक में ट्रेंड बदला है। अब लिस्ट लंबी है। प्रियंका चोपड़ा, जोया अख्तर, रिया कपूर और भी नाम हैं।

प्रियंका चोपड़ा ने एक इंटरव्यू में एक वाक्या सुनाया था। उन्हें एक प्रोड्यूसर ने ये कह दिया था कि अभिनेत्रियों को कोई भी रिप्लेस कर सकता है। तब प्रियंका ने तय कर लिया था कि वह रिप्लेस होने वाली एक्ट्रेस नहीं बनेंगी। जब कोई अभिनेत्री प्रोड्यूसर बन जाती है, तो जाहिर है कि वह बॉस है, और फिर उन्हें कोई नहीं हटा सकता। आज भले ही कोई अभिनेत्री-निर्माताओं की फिल्मों के लिए 100-200 करोड़ का बजट नहीं दे रहा है, लेकिन धीरे-धीरे समय बदल रहा है। नेटफ्लिक्स, एमेजॉन जैसी बड़ी ग्लोबल कंपनियां महिलाओं को शामिल करके विविधता, समावेशीकरण चाहती हैं।

प्रोड्यूसर्स का काम नेपथ्य का है। इसमें निर्देशक को मिलने वाले कलात्मक योगदान जैसे संतुष्टि नहीं होती। इसमें ग्लैमर कम और तनाव ज्यादा है। लेकिन इसके दूरगामी सुखद परिणाम होंगे। तापसी का यह निर्णय महिलाओं की मजबूती की दिशा में बढ़ाया एक कदम है। आर्थिक रूप से भी यह पहले से कम चुनौतीपूर्ण हुआ है।

अनुष्का की 'एनएच-10' सफल फिल्म रही, छपाक बहुत सफल नहीं रही, लेकिन पैसा कमाया। अब तो पैसा बनाने के लिए इतने सारे ओटीटी माध्यम हैं। फाइनेंशियल सस्टेनिबिलटी अब ज्यादा मुमकिन हो गई है। अगर आप सीमित पैसे के साथ फिल्म बनाएं, लिमिटेड पैसे के लिए बेचें तो हर किसी को लाभ होता है। महिलाओं का यह निर्णय कहता है कि अब वे कठपुतली नहीं, निर्णायक की भूमिका में आना चाहती हैं। महिलाएं जब निर्णायक होंगी, तो स्क्रीन पर महिलाओं को दिखाने, उनके रिप्रेजेंटेशन में भी फर्क आएगा। जितनी ज्यादा महिलाएं होंगी, मौके उतने बढ़ेंगे।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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