सम्पादकीय

कार्यबल में महिलाएं

Subhi
3 Feb 2022 3:09 AM GMT
कार्यबल में महिलाएं
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विगत दो दशकों में भारत में महिलाओं की शिक्षा की स्थिति बेहतर हुई है। प्रजनन दर में गिरावट आई है। विश्व भर में इन कारणों से पारिश्रमिक युक्त कार्यों में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हो रही है, पर भारत में ऐसा नहीं हो रहा। कार्यबल में जितनी महिलाएं जुड़ रही हैं, उससे कहीं अधिक कार्यबल से बाहर आ रही हैं।

विजय प्रकाश श्रीवास्तव: विगत दो दशकों में भारत में महिलाओं की शिक्षा की स्थिति बेहतर हुई है। प्रजनन दर में गिरावट आई है। विश्व भर में इन कारणों से पारिश्रमिक युक्त कार्यों में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हो रही है, पर भारत में ऐसा नहीं हो रहा। कार्यबल में जितनी महिलाएं जुड़ रही हैं, उससे कहीं अधिक कार्यबल से बाहर आ रही हैं।

इस साल के शुरू में खबर आई कि सार्वजनिक क्षेत्र की एक दिग्गज कंपनी तेल और प्राकृतिक गैस निगम के इतिहास में पहली बार एक महिला ने अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक का कार्य भार संभाला है। इसके पहले देश के कुछ बैंकों में सर्वोच्च पद पर भी महिलाएं रही हैं। छिटपुट ऐसे और उदाहरण भी हैं। इन सबसे लग सकता है कि भारत के कार्यबल में महिलाओं को वह स्थान हासिल है जिसकी कि वे हकदार हैं, पर यहां जो उदाहरण गए हैं, वे नियम कम अपवाद ज्यादा हैं। जैसे तमाम और मामलों में भारत कई विकासशील देशों से पीछे है, वैसे ही कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भी देश की स्थिति उत्साहजनक नहीं है।

देश जिन बड़ी समस्याओं से जूझ रहा है, उनमें बेरोजगारी निश्चित रूप से एक है। देश में बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हैं, पर इन बेरोजगार लोगों में महिलाओं का अनुपात ज्यादा है। और तो और, सभी रोजगारशुदा लोगों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ने की बजाय घटती जा रही है। चाहे सामाजिक समानता के नजरिए से देखें या मानवाधिकारों के नजरिए से, देश के कार्यबल में महिलाओं का समुचित प्रतिनिधित्व न होना एक गंभीर चिंता का विषय है। देश को आजादी मिलने के साथ जिस भारत की कल्पना की गई थी, करीब पचहत्तर वर्ष बाद की स्थिति भी इससे मेल नहीं खाती। लैंगिक समानता के मामले में भी हम अभी पीछे हैं। इस असमानता के कारणों की तलाश में हमें कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है।

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