सम्पादकीय

सेना में महिलाएं

Rani Sahu
18 Aug 2021 6:57 PM GMT
सेना में महिलाएं
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महिलाओं के लिए एक और मार्ग प्रशस्त होने जा रहा है। देश की सर्वोच्च अदालत ने साफ कर दिया कि राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) या भारतीय नौसेना अकादमी में प्रवेश से महिलाओं को वंचित नहीं किया

महिलाओं के लिए एक और मार्ग प्रशस्त होने जा रहा है। देश की सर्वोच्च अदालत ने साफ कर दिया कि राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) या भारतीय नौसेना अकादमी में प्रवेश से महिलाओं को वंचित नहीं किया जा सकता। यह फैसला कुश कालरा द्वारा दायर एक याचिका पर आया है, जो प्रतिष्ठित पुणे स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) और केरल स्थित भारतीय नौसेना अकादमी (आईएनए) में प्रवेश पाने के लिए महिलाओं के वास्ते समान अवसर की मांग कर रही हैं। अभी ये दोनों अकादमियां महिला कैडेट की भर्ती नहीं करती हैं। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और हृषिकेश रॉय की पीठ के समक्ष बुधवार को सुनवाई के लिए मामला आने पर केंद्र सरकार ने कहा कि महिलाओं के रोजगार के लिए जो रास्ते खोले गए हैं, उनमें उन्हें सशस्त्र बलों में समान अवसर दिया जा रहा है। केंद्र सरकार ने यह बताने की कोशिश की कि यह किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है। हालांकि, यह बात साबित हो गई कि सेनाएं पुरुष और महिलाओं में भेद करती हैं। अब महिलाएं सैन्य अकादमियों की परीक्षा में बैठ सकेंगी।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मार्च में याचिका पर नोटिस जारी किया था। कुश कालरा ने उचित ही कहा था, पात्र और इच्छुक महिला उम्मीदवारों को उनके लिंग के आधार पर (एनडीए और नौसेना अकादमी की) परीक्षाओं में बैठने की अनुमति नहीं है। इसमें कोई शक नहीं कि भेदभाव का यह कार्य समानता के सांविधानिक मूल्यों का अपमान है। कोई शक नहीं है कि महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए लंबे समय से संघर्ष किया है। हमारी सेनाओं में भी महिलाओं को अब पहले की तुलना में ज्यादा जगह मिल रही है। पहले उन्हें उच्च अधिकारी बनने का अधिकार हासिल नहीं था, लेकिन अगर हम नौसेना की बात करें, तो हलफनामे में कहा गया है कि नौसेना में चार शाखाएं हैं- कार्यकारी, इलेक्ट्रिकल, इंजीनियरिंग, शिक्षा और आज की तारीख में सभी शाखाओं में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने के लिए प्रतिबंध हटा दिया गया है। हालांकि, जमीनी हकीकत यह है कि सेनाओं में महिलाओं की भर्ती के लिए कोई अलग से इंतजाम अभी तक नहीं किए गए हैं। पुरानी सोच हावी है। सेना को लोग पुरुषों का काम मानते हैं, जबकि बदलते दौर में सेना में महिलाओं की भूमिका बढ़ती जा रही है। खासकर उन महिलाओं को सेना में आने से नहीं रोका जा सकता, जिनकी इच्छा है, जो सेना में आकर देश की सेवा करना चाहती हैं। सेना में महिलाओं की भर्ती पर किसी को आपत्ति नहीं रही है, लेकिन महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं को आगे आने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। यह मामला उदाहरण है कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही सेना में महिलाओं के सम्मान की बहाली हो पा रही है। उल्लेखनीय है कि कुश कालरा की याचिका के अलावा, अदालत इस शैक्षणिक वर्ष से देहरादून में राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कॉलेज में लड़कियों के प्रवेश की मांग करने वाली कैलास उधवराव मोरे द्वारा दायर याचिका पर भी विचार कर रही है। यह कॉलेज रक्षा मंत्रालय द्वारा लड़कों के लिए चलाया जाता है। केंद्र सरकार को अभी इस याचिका पर जवाब देना है। बेशक, सेनाओं में महिलाओं को समान स्तर पर आने से रोकना अब मुमकिन या न्यायोचित नहीं है।

क्रेडिट बाय लाइवहिंदुस्तान

Rani Sahu

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