सम्पादकीय

महिला, सदन और सशक्तीकरण : स्थापित धारणाओं को बदलती नारी शक्ति और इसके राजनीतिक मायने

Neha Dani
22 Sep 2022 3:14 AM GMT
महिला, सदन और सशक्तीकरण : स्थापित धारणाओं को बदलती नारी शक्ति और इसके राजनीतिक मायने
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विधानसभा में महिलाओं के मुद्दे पर चर्चा होना इसी सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।

किसी भी समाज के विकास का आधार तत्व महिलाएं होती हैं। समाज में उनकी स्थिति से उस समाज की दिशा की पहचान होती है। इतिहास बताता है कि मातृसत्तात्मक समाज में विकास ज्यादा मानवीय और संतुलित तरीके से होता रहा है। महिलाओं को लेकर दुनिया भर में जागरूकता बढ़ी है और भारत भी उससे अलग नहीं है। केंद्र और कई राज्यों की सरकारें इस दिशा में प्रयास करती हुई दिख भी रही हैं। राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक तौर पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। लेकिन क्या यह काफी है, इस पर सोचने की जरूरत है।




केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में पहली बार एक महिला निर्मला सीतारमण रक्षामंत्री बनीं, तो एक हलचल-सी मच गई कि एक महिला रक्षामंत्री कैसे हो सकती है? वहां कठोर निर्णय लेने होते हैं। लेकिन उन्होंने खुद को साबित किया और महिलाओं को कमतर मानने वालों को मुंहतोड़ जवाब दिया। आज वह देश की वित्तमंत्री हैं। यही बात प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी के बारे में भी लागू होती है। ये दोनों उदाहरण यह साबित करते हैं कि मौका मिलने पर महिलाएं किसी भी क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं और समाज में बनी हुई धारणा को बदल सकती हैं।


समुचित शिक्षा, पौष्टिक आहार, नौकरियों में अवसर, स्वरोजगार और महिला केंद्रित योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक भागीदारी के लिए उनका मनोबल बढ़ाता है। केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना, पीएम स्वामित्व योजना, पीएम स्व-निधि योजना से समाज के सबसे निचले तबके की महिलाओं का सशक्तीकरण हुआ है। गुजरात और मध्य प्रदेश में महिलाओं को स्वयंसेवी संगठनों से जोड़कर आर्थिक तौर पर मजबूत करने का अच्छा प्रयास दिखता है। बिहार में नीतीश कुमार ने महिलाओं को लेकर कई कदम उठाए।

चुनाव में शराबबंदी का लाभ भी मिला, लेकिन राजद की महिला विरोधी छवि के कारण उसका प्रभाव देखने को नहीं मिल रहा। सबसे बुरा हाल पंजाब का है। इसी परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की सराहनीय पहल का भी जिक्र जरूरी है। आज 22 सितंबर को उत्तर प्रदेश विधानसभा में सत्र का एक पूरा दिन महिलाओं के नाम किया जा रहा है। दोनों सदनों में पीठासीन अधिकारी भी महिला ही होंगी और दिन भर महिलाओं के स्वावलंबन, सुरक्षा और सम्मान के मुद्दे पर सदन के सदस्य चर्चा करेंगे।

इसमें 47 विधानसभा और छह विधान परिषद की महिला सदस्यों की विशेष भागीदारी होगी। योगी सरकार द्वारा नारी सशक्तीकरण के लिए चलाए जा रहे मिशन शक्ति पर भी सदस्य अपनी बात रखेंगे। ऐसा देश में पहली बार हो रहा है। इसके राजनीतिक मायने जो भी हों, लेकिन इससे हर कोई सहमत होगा कि यह कदम महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और स्वावलंबन की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित होगा। यूपी में गुंडे, माफिया के खिलाफ कठोर कार्रवाई से महिलाओं के खिलाफ अपराध में भी कमी आई है।

एनसीआरबी के नए आंकड़े इसका समर्थन भी करते हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत के पीछे महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अधिकारिक आंकड़ों को देखें, तो लगता है कि योगी आदित्यनाथ सरकार तुलनात्मक रूप से महिलाओं के लिए काफी बेहतर काम कर रही है। सरकार द्वारा जारी मिशन शक्ति के आंकड़े में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश में पिछले साढ़े पांच साल में एक लाख से अधिक महिलाओं को सरकारी नौकरी दी गई है। सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाकर एक करोड़ महिलाओं को जोड़ा गया है। इसमें एक बात का विशेष उल्लेख जरूरी है।

पोषण मिशन के तहत प्रदेश में पुष्टाहार वितरण का हजारों करोड़ का कार्य है, जिस पर शराब सिंडिकेट से जुड़े लोगों का कब्जा था। योगी आदित्यनाथ ने न सिर्फ इस सिंडिकेट को तोड़ा, बल्कि यह पूरा काम महिला स्वयंसेवी संगठनों के जरिये कराने का निर्णय लिया। इससे छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं और किशोरियों के बीच पुष्टाहार की आपूर्ति गुणवत्ता के साथ होने लगी और शिशु-मातृ मृत्युदर में काफी कमी भी आई। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की विधानसभा में महिलाओं के मुद्दे पर चर्चा होना इसी सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।

सोर्स: अमर उजाला


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