सम्पादकीय

कुवैत में तीन दशकों से मर्दवाद के खिलाफ लड़ रही हैं महिलाएं, इसलिए सेना में उनकी भर्ती का क्रेडिट सरकार को नहीं, औरतों को दीजिए

Nidhi Markaam
14 Oct 2021 10:29 AM GMT
कुवैत में तीन दशकों से मर्दवाद के खिलाफ लड़ रही हैं महिलाएं, इसलिए सेना में उनकी भर्ती का क्रेडिट सरकार को नहीं, औरतों को दीजिए
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हमें पता नहीं, लेकिन मिडिल ईस्‍ट की औरतों ने लगातार पितृसत्‍ता के खिलाफ मोर्चा बुलंद कर रखा है.

कुवैत की सरकारी समाचार एजेंसी कुना ने कल एक खबर जारी की. खबर ये थी कि कुवैत सरकार ने वहां की सेना में महिलाओं की भर्ती को मंजूरी दे दी है. 3 साल पहले 2018 में सऊदी अरब से अपने दशकों पुराने प्रतिबंध को हटाते हुए सेना में महिलाओं की भर्ती को मंजूरी दी थी. यूएई मिडिल ईस्‍ट का पहला देश है, जहां सेना में महिलाओं को लिया गया. 1991 में यूएई में महिलाओं के लिए एक मिलिट्री कॉलेज खोला गया- ख्‍याला बिंट अल अजवार मिलिट्री स्‍कूल, जो पूरे मिडिल ईस्‍ट (खाड़ी देशों) में महिलाओं के लिए बना पहला मिलिट्री स्‍कूल था. वहां की आर्मी में महिलाओं को समान रूप से ट्रेनिंग, प्रशिक्षण, पद और जिम्‍मेदारी पिछले तीन दशकों से दी जाती रही है. अब तो वहां की सेना में बहुत सी महिलाएं ऊंचे रैंकों पर भी पहुंच चुकी हैं.

सऊदी अरब के बाद अब कुवैत वहां का दूसरा ऐसा देश है, जिसने महिलाओं के सेना में भर्ती पर लगे प्रतिबंध को हटा लिया है. पिछले कुछ समय से बीच-बीच में खाड़ी देशों से ऐसी खबरें आती रहती हैं, जिन्‍हें पढ़कर लगता है कि उन देशों की सरकार और समाज का रवैया औरतों के प्रति बदल रहा है. इस बात में कुछ हद तक सच्‍चाई भी है. तीन साल पहले ही 2018 में सऊदी अरब ने महिलाओं के गाड़ी चलाने पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया और उन्‍हें ड्राइविंग लाइसेंस देने की शुरुआत की. इसके पहले ये क्रिमिनल ऑफेंस था और कार चलाने वाली महिला को 3 महीने से लेकर 3 साल तक की जेल हो सकती थी.
सऊदी अरब की विमेन राइट्स एक्टिविस्‍ट लुजिन अल हथलोल इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं, जिन्‍हें 1 दिसंबर, 2014 को सऊदी अरब पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. उनका अपराध सिर्फ ये था कि वो यूएई से सऊदी अरब अपनी गाड़ी खुद चलाकर आ रही थीं. अपनी कार खुद ड्राइव करने के अपराध में उन्‍हें 73 दिन जेल में बिताने पड़े. महिलाओं की ड्राइविंग को लीगल करने से कुछ ही महीने पहले मई, 2018 में सऊदी सरकार ने एक दर्जन से ज्‍यादा महिलाओं को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया था क्‍योंकि वो अपनी गाड़ी खुद चलाकर इस प्रतिबंध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रही थीं.
फोटो लुजिन अल हथलोल की बहन निना अल हथलोल के ट्विटर हैंडल से साभार
बीच-बीच में ऐसी खबरें भी ठंडी बयार की तरह आती हैं कि कैसे सऊदी को हईफा अल मंसूर के रूप में अपनी पहली फिल्‍म डायरेक्‍टर मिली है. वो पहली सऊदी महिला हैं, जो उस देश में रहकर सिनेमा बना रही हैं.
लेकिन इन सारी खबरों के बीच पिछले दो दशकों से पूरे मिडिल ईस्‍ट में चल रहे उस फेमिनिस्‍ट आंदोलन का ज्‍यादा जिक्र नहीं होता, जिसका नतीजा है सरकारी नियमों और प्रतिबंधों में हो रहे ये छोटे-छोटे बदलाव. 2018 में दुनिया भर के तमाम अखबारों और मीडिया की हेडलाइन ये तो रही कि सरकार ने औरतों को ड्राइविंग की इजाजत दे दी, लेकिन किसी अखबार ने उन सैकड़ों औरतों के नाम नहीं छापे, जिन्‍हें इतने मामूली से इंसान हक की लड़ाई लड़ने के लिए सरकार ने पकड़कर जेल में डाला, उन्‍हें कोड़ों से पीटा और असहनीय यातनाएं दीं.
जिस लुजिन अल हथलोल की लड़ाई की बदौलत ये मुमकिन हुआ था कि जून, 2018 को सरकार ने पहली बार महिलाओं को आधिकारिक तौर पर ड्राइविंग लाइेसेंस दिया, उस दिन इस हक की लड़ाई लड़ रही लुजिन और दर्जनों और महिलाएं जेल के अंदर बंद थीं. उन्‍हें भयानक यातनाएं दी जा रही थीं. वहां उनके तलवों पर वार किया गया और उन्‍हें इलेक्ट्रिक शॉक दिए गए. कोड़ों से मारा गया. जब लुजिन के माता-पिता उनसे मिलने जेल में जाते तो उनकी दोनों जांघों पर चोट के काले-नीले निशान होते थे. वो बुरी तरह कांप रही होतीं. अपने शरीर पर उनका कोई नियंत्रण नहीं रह होता. वो न सीधी खड़ी हो पाती थीं और न ही बैठ पातीं थीं. और ये सिर्फ लुजिन की कहानी भर नहीं थी. हर वो औरत, जो सड़क पर उतरी थी, उसे जेल में बंद करके सरकार यातनाएं दे रही थी.
मोना अल्‍तहावे (फोटो उनके ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से साभार)आज की तारीख में पूरे मिडिल ईस्‍ट में सबसे सजग और जागरूक फेमिनिस्‍ट मूवमेंट कुवैत में ही चल रहा है. इसलिए जब वहां का रक्षा मंत्री ट्वीट करके कहता है कि 'अब समय आ गया है कि महिलाओं को कुवैती सेना में अपने भाइयों के साथ काम करने की इजाजत दी जाए,' तो यह कोई एहसान नहीं होता. यह उस लंबी लड़ाई के रास्‍ते में हासिल हुई एक छोटी सी जीत है, जो वहां की औरतें लंबे समय से लड़ रही हैं.
कुवैत, सऊदी अरब, ईरान और बहरीन की महिलाएं पिछले एक दशक से मेल गार्जियनशिप को खत्‍म करने की मांग कर रही हैं और इस लड़ाई में उनका सबसे बड़ा हथियार बना है इंटरनेट.
मिडिल ईस्‍ट की विमेन राइट्स एक्टिविस्‍ट मोना अल्‍तहावे कहती हैं, "पूरी दुनिया आगे निकल चुकी है और मिडिल ईस्‍ट आज भी दो साल पुराने रिग्रेसिव, मर्दवादी और औरत विरोधी कानूनों को ढो रहा है. इस्‍लामिक देशों को छोड़कर और दुनिया में कहीं भी मेल गार्जियनशिप जैसा कोई कानून नहीं है. किसी औरत को कॉलेज में पढ़ने, नौकरी करने, ट्रैवल करने या एक मामूली सा बैंक अकाउंट तक खुलवाने के लिए अपने पिता या पति का सिंगनेचर लेकर नहीं जाना पड़ता. ये सब बर्बर है और ये खत्‍म होना चाहिए. हम औरतें चुप नहीं बैठने वाली."
कोई भी देश उन तमाम आंकड़ों से कैसे मुंह मोड़ सकता है, जो उसके देश में महिलाओं की स्थिति को बयान कर रहे होते हैं. इस साल 30 मार्च को वर्ल्‍ड इकोनॉमिक फोरम की जेंडर गैप इंडेक्‍स रिपोर्ट जब आई तो उसमें मिडिल ईस्‍ट के देशों का नाम नीचे से सबसे ऊपर था. हालांकि भारत का भी कोई बहुत ऊपर नहीं था. भारत पाकिस्‍तान, अफगानिस्‍तान, ईरान, इराक से बस कुछ ही कदम आगे था. लेकिन ईरान, इराक, यूएई, सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन आदि देशों की हालत तो बहुत ही ज्‍यादा खराब थी.
लैंगिक अनुपात में खड़ी देश दुनिया में सबसे पीछे
इसी तरह यूएन का जेंडर अनुपात का पूरी दुनिया का डेटा देख लीजिए. बेहद डरावनी तस्‍वीर दिखाई देती है. जेंडर अनुपात इंडेक्‍स में कुवैत दुनिया के 206 देशों में 196वें नंबर पर है, जहां प्रत्‍येक 100 महिलाओं पर 158 पुरुष हैं. सऊदी अरब कुवैत से सिर्फ एक पायदान ऊपर है, जहां प्रत्‍येक 100 महिलाओं पर 137 पुरुष हैं. यूएई 200वें नंबर पर है, जहां प्रत्‍येक 100 महिलाओं पर 222 पुरुष हैं और कतर तो इस लिहाज से दुनिया का सबसे बुरा देश है, जहां प्रत्‍येक 100 महिलाओं पर 299 पुरुष हैं.
मोना अल्‍तहावे ने एमआईटी सेंटर फॉर इंटरनेशनल स्‍टडीज के एक सेमिनार में मिडिल ईस्‍ट के फेमिनिस्‍ट मूवमेंट पर एक पेपर पढ़ते हुए एक बार कहा था, "पूरी दुनिया को मिडिल ईस्‍ट पर इस बात के लिए दबाव बनाने की जरूरत है कि वे अपने पुरातनपंथी और रूढि़वादी कानूनों को बदलें. वहां की औरतों की लड़ाई अकेले सिर्फ उनकी लड़ाई नहीं है. यह दुनिया की हर औरत के हिस्‍से की लड़ाई है. हमारा अकेले बोलना काफी नहीं. आपको भी हमारे लिए बोलना होगा." सऊदी में औरतों को ड्राइविंग लाइसेंस दिए जाने पर एमनेस्‍टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट कहती है कि "ड्राइविंग लाइसेंस देने के पीछे यही सोच काम कर रही थी कि पूरी दुनिया में अरब देशों की जो स्‍त्री विरोधी छवि बनी हुई है, उसमें कुछ सुधार हो."
फिलहाल चीजें बदल रही हैं. यूएई ने पिछले साल अपने दो सदी पुराने कानून को बदलते हुए ऑनर किलिंग को अपराध घोषित किया. इसी साल वहां नूरा अल मातुशी अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला बनीं. उस देश की पहली महिला, जिसने अंतरिक्ष प्रोग्राम के लिए चुना गया.
बदलाव तो लगातार हो रहा है, लेकिन ऐसे किसी बदलाव की बात करते हुए औरतों की उस संघर्ष और लड़ाई को भूल नहीं जाना चाहिए, जिसकी खबरें हम तक ज्‍यादा पहुंचती नहीं हैं. हमें पता नहीं, लेकिन मिडिल ईस्‍ट की औरतों ने लगातार पितृसत्‍ता के खिलाफ मोर्चा बुलंद कर रखा है. जब उनकी आवाज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही हो तो वहां की सरकार कब तक अपने कान बंद करके बैठ सकती है. उन औरतों का अगला लक्ष्‍य मेल गार्जियनशिप कानून है.


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