सम्पादकीय

Women Empowerment: अधिकारों के प्रति सजग होती स्त्रियां

Neha Dani
31 Dec 2022 1:55 AM GMT
Women Empowerment: अधिकारों के प्रति सजग होती स्त्रियां
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अपने अधिकारों के लिए और शोषण के खिलाफ आवाज उठाएंगी।
पूरी दुनिया तरक्की कर रही है। अनेक देशों में स्त्री मुक्ति की दिशा में निर्णय हो रहे हैं। आज महिलाएं अनेक देशों की राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, वैज्ञानिक, इंजीनियर, वकील, शिक्षक और डॉक्टर बन रही हैं। सेना में भर्ती होकर भी अपनी बहादुरी के जलवे दिखा रही हैं। लेकिन आज भी संसार में कुछ ऐसे देश हैं, खासकर कुछ मुस्लिम देश, जो स्त्रियों की आजादी को लेकर सदियों पुरानी मानसिकता से ग्रस्त हैं। ऐसे देशों में सबसे अग्रणी है-ईरान और अफगानिस्तान। इन दोनों देशों में स्त्रियों को लेकर दोयम दर्जे का आचरण दिखाई देता है, जो निस्संदेह चिंता का कारण है। ऐसे देशों के विरुद्ध पूरी दुनिया में जनमत बनना चाहिए और संयुक्त राष्ट्र में इनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित होना चाहिए।
अफगानिस्तान में तालिबानी शासन ने स्त्रियों पर अनेक तरह की पाबंदियां थोप दी हैं। अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार ने वहां कॉलेज और विश्वविद्यालयों में महिलाओं की पढ़ाई पर रोक लगा दी है। तालिबान केवल अपनी यौन संतुष्टि के लिए ही महिलाओं को बनाए रखना चाहता है और उनके आगे बढ़ने पर अंकुश लगाना चाहता है। अफगानिस्तान की महिलाएं न तो पढ़ाई-लिखाई कर सकती हैं और न समाज सेवा के कार्य। वहां के शिक्षामंत्री का यह तर्क है कि विश्वविद्यालयों में जो पाठ्यक्रम लागू हैं, वे इस्लामी कानून के विरुद्ध हैं, इसलिए हम महिलाओं को प्रतिबंधित कर रहे हैं। अजीब तर्क है यह! अगर वहां की उच्च शिक्षा व्यवस्था में कोई कमी है, तो उसे सुधारा जा सकता है, लेकिन इस्लामी कानून और परंपराओं के नाम पर महिलाओं को शिक्षा से वंचित करना मानवाधिकार का उल्लंघन है। इससे वहां की महिलाओं की काफी दुर्गति हो रही है। सार्वजनिक स्थानों में उन्हें चेहरा ढक कर निकलना होगा। ऐसा न करने पर उन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
इसी तरह, ईरान में महिलाओं पर बुर्के पहनने का फतवा जारी किया गया। लेकिन ईरान की महिलाओं ने सड़कों पर उतर कर अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद की। बुर्के के विरुद्ध आक्रोश व्यक्त करते हुए वहां की स्त्रियों ने अपने बाल भी कटवाए। आज भी वे बेपर्दा होकर विरोध कर रही हैं। कजाकिस्तान में होने वाले अंतरराष्ट्रीय शतरंज टूर्नामेंट में ईरान की महिला खिलाड़ी-सारा खादेम और अटूसा पोरकाशियान बिना हिजाब के शतरंज खेलती नजर आईं। ये दोनों महिलाएं शतरंज के खेल में लगातार चैंपियन रही हैं। महिलाएं अपने खर्चे से कजाकिस्तान जाकर शतरंज खेल रही हैं। फुटबॉल, तीरंदाजी और पर्वतारोहण आदि में सक्रिय महिलाएं ईरान की हिजाब-संस्कृति का विरोध कर रही हैं। यह अलग बात है कि प्रतिरोध के इन स्वरों को दबाया जा रहा है। महीसा अमीन जैसी अनेक युवतियों और महिलाओं को मौत के घाट उतार दिया गया। लेकिन आवाजें अब भी उठ रही हैं।
जी-7 देशों के विदेश मंत्रियों ने तालिबान के इस फैसले का पुरजोर विरोध किया है। इन विदेश मंत्रियों का कहना है कि तालिबानी सरकार महिलाओं की आजादी को खत्म कर रही है। अगर यही रवैया रहा, तो हम अफगानिस्तान को किसी किस्म की मदद नहीं पहुंचाएंगे। लेकिन जब तक संयुक्त राष्ट्र इसके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं करेगा, तब तक तालिबानी सरकार पर असर नहीं होने वाला है। हालांकि तालिबानी सरकार के निर्णय के विरुद्ध वहां के शिक्षकों में भी गहरा आक्रोश है। ईरान की महिलाओं की तरह अफगानिस्तान की महिलाएं भी आने वाले समय में अपनी शहादत देकर प्रतिरोध दर्ज करेंगी। हाल ही एक घटना ने दुनिया भर के लोगों में उम्मीद जगाई है।
एक लाइव टीवी शो में अफगानिस्तान के एक प्रोफेसर ने अपने सर्टिफिकेट को यह कहते हुए फाड़कर फेंक दिया कि अब मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं। इस देश में शिक्षा के लिए कोई स्थान नहीं है। अगर मेरी बहन और मां नहीं पढ़ सकती, तो मैं शिक्षा को स्वीकार नहीं कर सकता। उस प्रोफेसर के विरुद्ध तालिबानी सरकार क्या कदम उठाएगी, यह अभी स्पष्ट नहीं है। लेकिन विरोध के स्वर तेज होने लगे हैं और उम्मीद है कि नए वर्ष में नए उत्साह के साथ दुनिया भर में महिलाएं अपने अधिकारों के लिए और शोषण के खिलाफ आवाज उठाएंगी।

सोर्स: अमर उजाला

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