सम्पादकीय

महिला सशक्तीकरण एक राष्ट्रीय आवश्यकता, झारखंड का एक गांव दिखा रहा है रास्ता

Gulabi
16 Sep 2021 6:09 AM GMT
महिला सशक्तीकरण एक राष्ट्रीय आवश्यकता, झारखंड का एक गांव दिखा रहा है रास्ता
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देश में महिला सशक्तीकरण की प्रक्रिया जारी है, फिर भी उनकी सामाजिक स्थिति बदतर बनी हुई है

संतोष कुमार।

रांची. देश में महिला सशक्तीकरण की प्रक्रिया जारी है, फिर भी उनकी सामाजिक स्थिति बदतर बनी हुई है. यही कारण है कि लोग बेटियों की उपेक्षा करते हैं और चाहते हैं कि उन्हें बेटी न हो, बल्कि बेटा हो. बालिका भ्रूणों की हत्या का हमारे देश में एकमात्र कारण यही है. इससे लिंग अनुपात में भारी असंतुलन पैदा हो रहा है. यानी प्रति एक हजार में महिलाओं की संख्या घटती जा रही है. यह प्रवृति बहुत खतरनाक है. आदर्श स्थिति यही है कि एक हजार पुरुष पर लगभग एक हजार महिलाएं हमारे देश, समाज और प्रदेश में हों.

बेटियों की सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए झारखंड के एक गांव में जो किया जा रहा है, उसे देश भर में अपनाने की जरूरत है. झारखंड के एक गांव ने अपने घरों का नाम बेटियों के नाम पर रखने और लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने का फैसला किया है, जो भारत में अधिकांश रूढ़िवादी समाजों में प्रचलित है. गढ़वा प्रखंड के भारतीय गांव के निवासी बालिकाओं को सम्मान देने के लिए हर घर के दरवाजे पर अपनी बेटियों और महिलाओं की नेमप्लेट लगाएंगे. रिपोर्ट के अनुसार, साल 2011 की जनगणना के अनुसार, गांव में कुल 113 परिवार रहते हैं, जिनमें ज्यादातर आदिवासी हैं. इस पहल की सराहना करते हुए ग्रामीणों ने कहा कि इस कदम से सही संदेश देने में मदद मिलेगी और अधिक लोग महिलाओं को वह सम्मान देने के लिए आगे बढ़ेंगे जिसके वे हकदार हैं. एक स्थानीय ग्रामीण ने कहा, 'मेरी बेटियां मेरा गौरव हैं.'
यह कदम स्थानीय प्रशासन द्वारा लोगों को समाज में महिलाओं की भूमिका के बारे में शिक्षित करने और उनके सशक्‍तीकरण के लिए काम करने को लेकर शुरू किए गए अभियान का परिणाम बताया जा रहा है. जिला शिक्षा अधिकारी संजय कुमार ने क्षेत्र में खतरनाक लिंगानुपात देखकर गांव का दौरा किया था. बाद में उन्होंने ग्राम प्रधान, पंचायत समिति के प्रतिनिधियों, गांव के बुजुर्गों, महिलाओं और लड़कियों के बीच विचार-मंथन बैठक की. गांव वालों ने लड़कियों की नेमप्लेट लगाने के प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया और इसलिए अभियान शुरू किया गया. संजय कुमार का कहना है कि यह महत्वपूर्ण है कि महिलाओं को उस तरह की पहचान मिले जिसकी वे हकदार हैं. शादी के बाद वे अपनी पहचान खो देती हैं. इन प्लेटों पर उनका नाम देखकर उनमें आत्मविश्वास और गर्व महसूस होगा.
गांव में निम्न लिंगानुपात, उच्च साक्षरता दर और शहर के निकट होने के बावजूद लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुषों पर 740 महिलाएं हैं, जो देश के औसत लिंगानुपात 943 और झारखंड राज्य के औसत लिंगानुपात 948 से काफी कम है. इसके अलावा इस गांव में बालिका लिंगानुपात 1000 बच्चों में केवल 658 है. स्थानीय ग्राम पंचायत प्रमुख बिंदु देवी ने कहा कि सर्वेक्षण कर सभी लड़कियों और उनकी माताओं के नाम संकलित किए जाएंगे, जो कुछ दिन में पूरा हो जाएगा. झारखंड प्रदेश प्रशासन की यह भूमिका बहुत सराहनीय है. इसे प्रदेश के सभी गांवों में अमल में लाया जाना चाहिए. सच तो यह है कि प्रशासनिक प्रयास से आगे बढ़कर यह सामाजिक आंदोलन में तब्दील कर दिया जाना चाहिए.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
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