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- महिलाएं अब सशक्त हो...

डा. ऋतु सारस्वत।
आधी आबादी का सशक्तीकरण एक लक्ष्य मात्र नहीं है, अपितु समानता, सतत विकास, शांति और लोकतंत्र की उपलब्धि के लिए अपरिहार्य तत्व भी है। यदि महिला सशक्तीकरण केवल संवैधानिक प्रविधानों, वैधानिक नियमों एवं महिला केंद्रित योजनाओं के निर्माण तथा क्रियान्वयन का प्रतिफल होता तो संभवत: वैश्विक पटल पर दशकों से खड़ा यह प्रश्न कब का समाप्त हो चुका होता। महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता की प्राप्ति की गति प्रत्येक समाज विशेष की संरचना एवं सांस्कृतिक मूल्यों पर निर्भर करती है। यह अच्छी बात है कि भारतीय महिलाएं अब सशक्त हो रही हैं, क्योंकि वे सामाजिक व्यवस्था में गहरी पैठ जमाए पितृसत्तात्मक विचारधारा से शनै: शनै: बाहर आ रही हैं। इस कड़ी में देश में महिला अस्तित्व की स्वीकारोक्ति एक सुखद सूचक है। राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-पांच के आंकड़े बताते हैं कि अब प्रति हजार पुरुषों पर 1020 महिलाओं की उपस्थिति है। लिंगानुपात के आंकड़े यह इंगित कर रहे हैं कि लैंगिक समानता स्थापित करने की दिशा में भारत की गति संतोषजनक है।
