सम्पादकीय

महिलाएं अब सशक्त हो रही हैं, क्योंकि वे पितृसत्तात्मक सोच के दायरे से धीरे-धीरे बाहर आ रही हैैं

Rani Sahu
7 March 2022 2:34 PM GMT
महिलाएं अब सशक्त हो रही हैं, क्योंकि वे पितृसत्तात्मक सोच के दायरे से धीरे-धीरे बाहर आ रही हैैं
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आधी आबादी का सशक्तीकरण एक लक्ष्य मात्र नहीं है

डा. ऋतु सारस्वत।

आधी आबादी का सशक्तीकरण एक लक्ष्य मात्र नहीं है, अपितु समानता, सतत विकास, शांति और लोकतंत्र की उपलब्धि के लिए अपरिहार्य तत्व भी है। यदि महिला सशक्तीकरण केवल संवैधानिक प्रविधानों, वैधानिक नियमों एवं महिला केंद्रित योजनाओं के निर्माण तथा क्रियान्वयन का प्रतिफल होता तो संभवत: वैश्विक पटल पर दशकों से खड़ा यह प्रश्न कब का समाप्त हो चुका होता। महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता की प्राप्ति की गति प्रत्येक समाज विशेष की संरचना एवं सांस्कृतिक मूल्यों पर निर्भर करती है। यह अच्छी बात है कि भारतीय महिलाएं अब सशक्त हो रही हैं, क्योंकि वे सामाजिक व्यवस्था में गहरी पैठ जमाए पितृसत्तात्मक विचारधारा से शनै: शनै: बाहर आ रही हैं। इस कड़ी में देश में महिला अस्तित्व की स्वीकारोक्ति एक सुखद सूचक है। राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-पांच के आंकड़े बताते हैं कि अब प्रति हजार पुरुषों पर 1020 महिलाओं की उपस्थिति है। लिंगानुपात के आंकड़े यह इंगित कर रहे हैं कि लैंगिक समानता स्थापित करने की दिशा में भारत की गति संतोषजनक है।

सशक्तीकरण एक शब्द मात्र नहीं, अपितु अवधारणा है, जिसके मुख्य घटक स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वावलंबन और नेतृत्व क्षमता का विकास है। स्वस्थ-शिक्षित महिलाएं न केवल अपने अधिकारों के प्रति सजग रहती हैं, अपितु एक स्वस्थ पीढ़ी के निर्माण में अपना योगदान भी देती हैं। स्वस्थ जीवन की प्राप्ति केवल चिकित्सकीय सुविधाओं की उपलब्धि से संभव नहीं है। यह स्वच्छ वातावरण के निर्माण से संभव है। महिलाओं के सबलीकरण का द्वार स्वच्छता पर आकर खुलता है। इस सत्यता की स्वीकारोक्ति 15 अगस्त, 2014 को लाल किले की प्राचीर से जब हुई तो महिला सशक्तीकरण की ओर सुदृढ़ पदचाप के स्वर सुनाई दिए। खुले में शौच से मुक्ति महिलाओं के स्वास्थ्य और आत्मसम्मान से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित है। खुले में शौच से बीमारियां फैलने की बात से कम-अधिक सभी परिचित हैं, परंतु इस तथ्य से कम ही लोग परिचित हैं कि यह गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु के लिए खतरनाक हो सकता है। ओडिशा के दो जिलों सुंदरगढ़ और तटीय क्षेत्र खुर्दा की 670 गर्भवती महिलाओं पर किए एक अध्ययन में पाया गया कि शौचालय प्रयोग करने वाली महिलाओं की तुलना में खुले में शौच करने वाली करीब दो तिहाई महिलाओं को प्रसव के दौरान मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इसके सुखद परिणाम एनएफएचएस-पांच की रिपोर्ट में सामने आए हैैं। बीते पांच वर्षों में नवजात मृत्यु दर प्रति हजार में 29.5 से घटकर 24.9 हुई है।
महिला सशक्तीकरण के उस पक्ष की चर्चा करना भी आवश्यक है जिस पर चुप्पी ने देश की लाखों महिलाओं को न केवल अस्वस्थ किया, अपितु उनके सुदृढ़ भविष्य के निर्माण में एक बड़ा अवरोध भी उत्पन्न किया। माहवारी से जुड़ी वर्जनाओं को तोडऩे की दिशा में उठाए गए सरकार के कदम भविष्य में मील का पत्थर सिद्ध होंगे। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र ने मासिक धर्म की स्वच्छता को वैश्विक मुद्दा माना है। विश्वस्तर पर करीब 1.2 अरब महिलाओं को बुनियादी स्वच्छता की सुविधा नहीं मिलती है। 2020 में विश्व भर में 3,42,000 महिलाएं सर्वाइकल कैंसर के कारण मृत्यु को प्राप्त हुईं, जिसका प्रमुख कारण मासिक धर्म में बरती जाने वाली अस्वच्छता है, परंतु अब तस्वीर बदल रही है। एनएफएचएस-पांच की रिपोर्ट बताती है कि पांच वर्ष पूर्व देश में महिलाओं में माहवारी स्वच्छता का प्रतिशत 48.2 था, जो अब बढ़कर 72.3 प्रतिशत हो गया है। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव महिला के स्वास्थ्य पर तो पड़ेगा ही, साथ ही यह महिलाओं में साक्षरता के परिदृश्य को भी प्रभावित करेगा, क्योंकि चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि लगभग 23 प्रतिशत लड़कियों ने स्कूल छोडऩे के मुख्य कारण के रूप में मासिक धर्म को सूचीबद्ध किया था।
सशक्तीकरण का एक अन्य महत्वपूर्ण घटक आर्थिक सुदृढ़ीकरण है, क्योंकि यह निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करता है। आर्थिक सुदृढ़ता की वृहद अवधारणा में स्वरोजगार, कुटीर उद्योगों की स्थापना तथा भूमि एवं संपत्ति के अधिकार शामिल हैं। महिला का भूमि और संपत्ति पर अधिकार लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है, जो अंतत: विकास की ओर ले जाता है। महिलाओं के नाम संपत्ति होने की अवस्था में पंजीयन शुल्क में छूट होने के बावजूद महिलाओं का संपत्ति पर मालिकाना हक मंथर गति से बढऩा पितृसत्तात्मक सोच का परिणाम है। इस सोच से निपटने के लिए ही बीते वर्ष उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवंटित 75,000 घरों का मालिकाना अधिकार महिलाओं के नाम किया गया। अध्ययन बताते हैं कि जिन महिलाओं के नाम संपत्ति होती है, वे न केवल घरेलू निर्णयों में भागीदार होती हैं, बल्कि उन महिलाओं की तुलना में अपेक्षाकृत घरेलू हिंसा का कम शिकार होती हैं जिनके नाम संपत्ति नहीं है। वित्तीय शक्तियों पर महिलाओं के प्रत्यक्ष अधिकार उनके आत्मबल में बढ़ोतरी करते हैं। बीते कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं के स्वयं के नाम बैंक खातों की संख्या 25.6 प्रतिशत बढ़ी है। भारत की विकास दर को कायम रखने में बचत दर सकल घरेलू उत्पाद का 33 प्रतिशत है, जिसमें 70 प्रतिशत घरेलू बचत का योगदान है। इसमें संदेह नहीं कि भारत की अर्थव्यवस्था महिला केंद्रित है।
कुल मिलाकर महिलाएं अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता, उत्पादक, कर्मचारी और उद्यमियों का स्थान ग्रहण कर रही हैं। पुलिस, सेना, इंजीनियरिंग, वित्त-व्यवसाय आदि क्षेत्रों में उनकी हिस्सेदारी बढ़ रही है। यही सशक्त भारत की वह तस्वीर है, जिसकी स्वीकृति नवीन आत्मनिर्भर भारत की कहानी लिखेगी।


Rani Sahu

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