सम्पादकीय

भेड़िये का खौफ और भुवनेश्वर

Gulabi
6 Jun 2021 4:56 PM GMT
भेड़िये का खौफ और भुवनेश्वर
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आपने क्या कभी भेड़िया देखा है? मैंने तो इस उम्र तक नहीं देखा

आपने क्या कभी भेड़िया देखा है? मैंने तो इस उम्र तक नहीं देखा। मेरे पड़ोसी ने भी नहीं देखा, न ही पड़ोसी के पड़ोसी ने। शहर के परले छोर पर बसे नागरिकों में से भी किसी ने अपनी आंखों से भेड़िये की सूरत नहीं देखी। पर सबके मन में भेड़िये का जबर्दस्त खौफ है। अक्सर सोचता हूं कि अगर भेड़िया बस्ती के भीतर आ जाए, तो उसकी शिनाख्त कौन करेगा? मेरे एक मित्र बताते हैं कि उन्होंने कई साल पहले चिड़ियाघर में भेड़िये की शक्ल देखी थी, पर आज अगर भेड़िया सामने आ जाए, तो वह उसे पहचान नहीं पाएंगे। पुराने लोग बताते हैं कि मनुष्य पर भेड़िये का आतंक इस कदर होता है कि भेड़िया सामने आने पर वे 'भेड़िया-भेड़िया' नहीं चिल्ला पाते। उनके मुंह से सिर्फ 'भे' निकलता है और इस तरह घबराकर वे भेड़िये का शिकार हो जाते हैं।

भेड़िया लोमड़ी से अधिक चालाक होता है। उन दिनों जब गांवों के घरों में प्रायः दरवाजे नहीं हुआ करते थे, तब भरी-चिलचिलाती दोपहरी में छप्पर के नीचे सो रहे छोटे बच्चों को भेड़िया चुपके से उठा ले जाता था और किसी को उसकी आहट भी नहीं मिलती थी। भेड़िया किसी पर उस तरह हमला नहीं करता, जैसे शेर या चीता करते हैं। वह रीछ की तरह भी लोगों को नहीं मारता। यह समझना निरी नासमझी है कि कई बार डरकर भेड़िया छिप जाता है। दरअसल, वह दांव की तलाश में होता है और चुपके-से शिकार पर हमला कर एक बार पीछे हट जाता है।
यदि उसका शिकार घायल हो जाता है, तब भी वह थोड़ी देर तक उसके अशक्त होने की प्रतीक्षा करता है और बाद में उसके निकट पहुंचकर उसे मार डालता है। अपनी बहुचर्चित कहानी भेड़िये में भुवनेश्वर कहते हैं, 'तुमने कभी भेड़िये को शिकार करते देखा है किसी का-बारहसिंगे का? वह शेर की तरह नाटक नहीं करता, भालू की तरह शेखी नहीं दिखाता। एक मर्तबा, सिर्फ एक मर्तबा-गेंद-सा कूदकर उसकी जांघ में गहरा जख्म कर देता है-बस। फिर पीछे, बहुत पीछे रहकर टपकते हुए खून की लकीर पर चलकर वहां पहुंच जाता है, जहां वह बारहसिंगा कमजोर होकर गिर पड़ा है। या, उचक कर एक क्षण में अपने से तिगुने जानवर का पेट चाक कर देता है-और वहीं चिपक जाता है।'
भेड़िये के शातिरपने की एक कहानी नन्हीं लाल चुन्नी हमने छोटे दर्जे की किताब में पढ़ी थी, जिसमें एक छोटी बच्ची को रास्ते में भेड़िया मिल जाता है। उसके पूछने पर वह बता देती है कि अपनी नानी के घर जा रही है। भेड़िया उससे पहले वहां पहुंच नानी का रूप धरकर बैठ जाता है और बाद में संक्षिप्त वार्तालाप के बाद उस लड़की पर हमलावर हो जाता है। मैं एक बार गांव के रेलवे स्टेशन से अपने घर ईख के घने खेत से गुजरता हुआ आ रहा था। एकाएक एक कुत्ते जैसा जानवर सामने आ गया, तो मैंने उसकी पीठ पर हाथ फिराया। खेत से बाहर आने के बाद मुझे लगा कि वह एकदम कुत्ते की तरह नहीं था। घर आते ही मैंने बुजुर्गों से चर्चा की, तो उन्होंने बताया कि वह भेड़िया होगा।
भेड़िया एकदम प्रहार नहीं करता। वह मौके की तलाश में रहता है। इतना सुनने के बाद मुझे भेड़िये से गजब का डर लगा। लोग लाठियां उठाकर दौड़े, पर तब तक भेड़िया जा या छिप चुका था। भेड़िये में भागने की अद्भुत क्षमता होती है। वह बहुत ताकतवर होता है और कभी थकता नहीं। कहा जाता है कि कुछ जानवर भेड़िये की गंध पहचान लेते हैं। गाड़ीवान बैलों के चलने की हरकत से जान लेता है कि आसपास कहीं भेड़िये हैं और बैल तेज-तेज दौड़ने लगते हैं।
भुवनेश्वर की भेड़िये कहानी में भेड़िये गोलबंद होकर खारू बंजारे की बैलगाड़ी पर हमलावर होते हैं। खूंखार भेड़ियों के झुंड के सामने अपनी जान बचाने के लिए साथ यात्रा कर रहे लोग अपने साथियों-नटनियों, बैलों या बाप को निर्ममता से भेड़ियों के सामने फेंक देते हैं। भुवनेश्वर का कथानायक खारू बंजारा किसी चीज से नहीं डरता, सिवा भेड़िये के। इस कहानी में भेड़िये झुंड-के-झुंड निकलते हैं। कहानी में भेड़ियों का जबर्दस्त आतंक है। इतना कि पाठक सहमा रह जाता है। राजेंद्र यादव की यह सर्वाधिक पसंदीदा कहानी थी। भुवनेश्वर इसी एक कहानी के बल पर हिंदी कथा-साहित्य में दूसरे कहानीकारों पर बहुत भारी हैं। कुछ साल पहले भुवनेश्वर की इस कहानी पर हिंदी में एक लंबी बहस का सूत्रपात हुआ, जिसमें इस रचना की मौलिकता पर सवाल उठाए गए थे। पर राजेंद्र यादव ने इस कथा पर किसी ऐसी छाया का प्रभाव नहीं देखा। वह कहते भी थे कि अगर भेड़िये के पीछे कोई देसी-विदेशी कहानी हो भी, तो इससे क्या फर्क पड़ता है? क्यों हम भेड़िये कहानी को फैंटेसी या रूपक-कथा के रूप में नहीं ले सकते? मूलतः यह कहानी है ही फैंटेसी।
मैं सोचता हूं कि अगर भेड़िये पर कविता लिखी जाए, तो वह कैसी होगी? क्या भेड़िये की शातिर आंखें, पैने दांत, नुकीले तेज पंजे अपने पूरे डरावनेपन के साथ कविता में जगह बना सकेंगे? या फिर भेड़िये कहानी लिखते वक्त भुवनेश्वर स्वयं भेड़िये की हिंसक छवि से आमने-सामने हुए होंगे? भेड़िये के बारे में एक बड़ी मशहूर कहावत है कि एक आदमी गांव में अक्सर चिल्ला पड़ता था कि भेड़िया आ गया। लोग उसे बचाने को दौड़ते, पर बात हर बार गलत साबित होती। एक बार सचमुच में भेड़िया आ गया। वह शख्स चिल्लाया भी, लेकिन तब बचाने कोई नहीं आया
क्रेडिट बाय अमर उजाला
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