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- बिन नकदी सब सून!
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यह ठीक रहा कि वोटर को नकद पैसा उसके खाते में ट्रांसफर कर दिया जाए। इससे लगा भी कि सरकार पैसा दे रही है। बीच वाले दलालों का भी सफाया हो गया, अब वोटर को पंद्रह पैसे नहीं, पूरे सौ पेसे का भुगतान होगा। वैसे भी सरकारी नुमाइंदे लाखों-करोड़ों डकार रहे हैं तो जनोपयोगी योजनाओं का पैसा सीधा दिया जाए तो इसमें दिक्कत किस बात की है? सरकार की गिरती हालत को संभालने का एकमात्र तरीका यही बचा था, यह दांव शायद आगामी चुनाव में नैया पार लगा दे। नकद पैसे का वैसे महत्व भी है। शराब, गुटखा और अन्य नशीली चीजें सब नकद से मिलती हंै। अब घर का मुखिया अपने मनमाने शौक पूरे कर सकेगा। अलग-अलग मजदूरी-पेंशन अथवा और कोई अनुदान दो तो जिसके हाथ में जाए, वही मालिक हो जाता था। नकदी की बारगेनिंग ठीक लगी। पहले काम के बदले अनाज दिया जाता था। अनाज समस्या ही नहीं है। समस्या या जरूरत तो अन्य चीजों की है। नया युग है, नई जरूरतें हंै, उस दृष्टि से नकद का महत्व अपने आप बढ़ जाता है। नकदी जीवन का आधार है, इसके बिना व्यक्ति निराधार होता है।
इसलिए देन-लेन नकद ही होता है। रिश्वत भी नकद ही दी जाती है। विवाह में दहेज के सामान का महत्व नहीं, जितना नकद देन-लेन का महत्व माना जाता है। सरकार के उस नुमाइंदे को सौ-सौ प्रमाण जिसने यह ईनामी योजना की शुरुआत करने का भेजा दिया। रहिमन नकदी राखिये-बिन नकदी सब सून, नकदी बिना न ऊबरे, मोती मानुस चून। तीनों स्थितियों में इसकी आवश्यकता पानी से भी बढक़र है। आजकल पानी भी नकदी से ही मिलता है। जहां तक सवाल स्वाभिमान रूपी पानी का है, कोरे स्वाभिमान से बंटता ही क्या है? इज्जत नकदी से ही बढ़ती है। कालेधन वालों की समाज में जो पोजीशन है, वह एक गरीब या ईमानदार की नहीं है। इसलिए बेईमानी को बढ़ावा देना आदमी की इज्जत के लिए भी जरूरी है। सरकार ने आम आदमी की इज्जत में नकदी देकर इजाफा किया है, इसका सबको स्वागत करना चाहिए। विपक्षी कोई नहीं बोल रहा कि सरकार का यह कदम उन्हें कैसा लगा। बोले कैसे क्योंकि मामला वोट बैंक से जुड़ा हुआ है। सत्तालोलुप होने पर जा-बेजा पर टिप्पणी नहीं की जाती, वरना हाथ से रहा-सहा वोटर भी निकल जाता है। मैं भी एक अदब आधार कार्ड के जुगाड़ में लगा हुआ हूं। यह बन जाए तो मेरा काम बन जाए। एक आला सरकारी आदमी ने इसे बनवा देने की ‘हां’ कर दी है।
वह जी जान से मेरा यह कार्ड बनवाने में लगा हुआ है। तेरा तुझको अर्पण-क्या लागे मेरा। बिना निवेश के अर्थ लाभ होता भी तो नही हैं। रिश्वत रानी की महत्ता किसी युग में कम नहीं हुई है। चाहे जो करा लो। लोग पता नहीं क्यों, भ्रष्टाचार को मिटाने की बात करते हैं। अर्थप्रधान युग में भ्रष्टाचार शिष्टाचार बन गया है। इसलिए जो लोग ईमानदारी के जोश में इसे व्यवस्था से मिटाने का दावा करते हैं, कालान्तर में स्वयं मिट जाएंगे, लेकिन मेरा भाई भ्रष्टाचार सदा हरा-भरा बना रहेगा। वैसे भी देन-लेन सीधा ही होना चाहिए। उससे लेने वालों को पता रहता है कि उसे पैसा किसने दिया। इससे ही वह ऑबलाइज महसूस करता है। बदले में वह भी उसके लिए कुछ करने की भावना पैदा करता है। हम तुम्हें नकदी दें-तुम हमें वोट दो। सीधा सा फार्मूला है। सुभाष चन्द्र बोस ने आजादी के लिए खून मांगा था। देश के लिए आज के नेता वोटर का अमूल्य वोट अब समूल्य मांग रहे हैं तो इसमें बुरा क्या है। इसलिए मैं अपने परिवार सहित इस नकदी ट्रांसफर योजना की भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूं तथा आभार व्यक्त करता हूं। आदमी जिसका नमक खाता है, उसकी अदायगी भी करता है। इसलिए सरकार को साष्टांग प्रमाण।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
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