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नए वित्त-वर्ष के आठवें ही दिन आरबीआई ने जीडीपी विकास दर के अनुमान को 0.6% गिराकर 7.8 से 7.2% कर दिया, वहीं महंगाई दर के पूर्वानुमान को 1.2% बढ़ाकर 4.5 से 5.7% कर दिया
प्रो. गौरव वल्लभ
नए वित्त-वर्ष के आठवें ही दिन आरबीआई ने जीडीपी विकास दर के अनुमान को 0.6% गिराकर 7.8 से 7.2% कर दिया, वहीं महंगाई दर के पूर्वानुमान को 1.2% बढ़ाकर 4.5 से 5.7% कर दिया। निरंतर बढ़ती महंगाई की आग में घी डालने का काम खाने-पीने की वस्तुओं के बढ़ते दामों ने किया है। मार्च में खुदरा खाद्य महंगाई दर 7.68% थी। यह लगातार तीसरा महीना है जब खुदरा मुद्रास्फीति आरबीआई के संतोषजनक स्तर 6% से ऊपर रही है।
जब पर्चेसिंग पॉवर पैरिटी के अनुसार दुनिया में रसोई गैस की कीमत हमारे देश में सबसे ज्यादा हो और पेट्रोल-डीजल के लिए देशवासियों को क्रमश: तीसरी और आठवीं सबसे ज्यादा कीमतें चुकानी पड़ रही हों तो आरबीआई के आंकड़े आश्चर्यचकित नहीं करते हैं। गिरती विकास दर और महंगाई की समस्या को बढ़ती बेरोजगारी ने और विकराल बना दिया है। सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार पिछले दो माह में ही बेरोजगारी दर 6.84% से बढ़कर 8% पर आ गई है।
इस आर्थिक संकट में हमारा तत्काल फोकस निरंतर बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने पर होना चाहिए। बढ़ती महंगाई का प्रमुख कारण पिछले एक माह में ही पेट्रोल-डीजल व सीएनजी के दामों में क्रमशः 10 रु. प्रति लीटर और 15.6 रु. प्रतिकिलो की बढ़ोतरी है। इस बढ़ोतरी मात्र से ही देशवासियों को प्रतिवर्ष 1.06 लाख करोड़ अतिरिक्त चुकाने पड़ेंगे। क्या कीमतों को कम नहीं किया जा सकता है? निम्न तरीकों से ऐसा सम्भव है।
पहला पिछले आठ सालों में ही केंद्र ने ईंधन पर कर लगाकर ₹26.51 लाख करोड़ एकत्रित कर लिए। देश में लगभग 26 करोड़ परिवार हैं तो प्रति परिवार पिछले आठ सालों में केंद्र ने एक लाख रुपया ईंधन कर से प्राप्त किया। इस राशि का प्रयोग कर केंद्र सरकार देश को बढ़ती कीमतों से राहत क्यों नहीं दे सकती? गौरतलब है कि इस ₹26.51 लाख करोड़ में आधे से ज्यादा रकम केंद्र सरकार ने सेस के रूप में एकत्रित की है अर्थात उसमें से राज्यों को कुछ नहीं मिला।
जब वित्त-वर्ष 2021-22 में डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 49%, इनडायरेक्ट टैक्स कलेक्शन 30% और ग्रॉस टैक्स कलेक्शन ₹27.07 लाख करोड़ रहा हो तो सरकार के लिए ईंधन पर कर घटाकर देशवासियों को निरंतर बढ़ती महंगाई से राहत देना और सरल हो जाता है। गौरतलब है कि जब केंद्र सरकार पेट्रोल व डीजल पर अपने कर घटाती है तो राज्य सरकारों का स्टेट वैट अपने आप कम हो जाता है।
दूसरा, मौजूदा केंद्र सरकार वन नेशन प्रोग्राम कई बड़े मसलों पर चला रही है तो वन नेशन वन फ्यूल प्राइस क्यों नहीं हो सकती? क्यों पेट्रोल-डीजल को राज्यों के राजस्व को सुरक्षित रखते हुए जीएसटी के दायरे में नहीं लाया जा सकता? जब देश में दो-तिहाई राज्यों व केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार है तो जीएसटी काउंसिल में बिना गैर-भाजपा राज्यों के समर्थन के भी ऐसा किया जा सकता है।
तीसरा, कुछ लोग पेट्रोल-डीजल की बढ़ती महंगाई के पीछे छुपकर सप्लाई चेन में व्यवधान डालकर खाद्य पदार्थों की महंगाई को अप्रत्याशित रूप से बढ़ा रहे हों तो केंद्र सरकार को इस समस्या को हल करने के लिए सही समय पर उचित नीति व नीयत के साथ हस्तक्षेप करना चाहिए। जब नींबू 300-400 प्रतिकिलो खुदरा बाजार में बिक रहा हो तो सप्लाई चेन में व्यवधान से कोई इनकार नहीं कर सकता है।
खाद्य पदार्थों की महंगाई का प्रकोप मध्यम और निम्न आय के परिवारों पर बहुत ज्यादा होता है क्योंकि उनकी कुल आय का बड़ा हिस्सा खाने-पीने की वस्तुओं पर खर्च होता है। उसी तरह पेट्रोल-डीजल, सीएनजी व रसोई गैस पर कर रिग्रेसिव प्रकृति के होते हैं अर्थात कम आय वाले व्यक्ति अपनी कुल आय का उच्च आय वाले व्यक्ति की तुलना में अधिक प्रतिशत कर के रूप में भुगतान करते हैं। पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगभग 25 रु. प्रति लीटर की घटत के साथ ही बढ़ती महंगाई नियंत्रण में आ सकेगी।
आज केंद्र सरकार वन नेशन प्रोग्राम कई बड़े मसलों पर चला रही है तो इसी तर्ज पर वन नेशन वन फ्यूल प्राइस क्यों नहीं हो सकती? क्यों पेट्रोल-डीजल को राज्यों के राजस्व को सुरक्षित रखते हुए जीएसटी के दायरे में नहीं लाया जा सकता?
Rani Sahu
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