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डा. महेश परिमल: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक पूर्व न्यायाधीश पूनम श्रीवास्तव के बैंक खाते से झारखंड के साइबर अपराधियों द्वारा पांच लाख रुपये की ठगी के सभी आरोपियों की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि साइबर ठगी के मामले में पैसे की सुरक्षा की जिम्मेदारी बैंक की होनी चाहिए। अदालत ने माना कि बैंक में पैसा जमा करने वाले देश के प्रति ज्यादा ईमानदार हैं। हर हाल में उनका पैसा सुरक्षित रहना चाहिए। इससे देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। कालाबाजारी करने वाले लोग पैसा तहखाने में रखते हैं, जो देश के विकास में काम नहीं आता। कोर्ट ने कहा कि बैंक यह कहकर नहीं बच सकती कि वह इसके जिम्मेदार नहीं है। इसके साथ ही पुलिस भी यह कहकर नहीं बच सकती कि साइबर अपराधी उनकी पहुंच से दूर नक्सली क्षेत्रों में रहते हैं।
एक बात तो तय है कि इस एक उदाहरण के अलावा भी ऐसे उदाहरण आपको मिल सकते हैं जिनमें साइबर ठगी पर सरकार के विभिन्न प्राधिकरणों का रवैया ढिला-ढाला ही रहा है। लिहाजा साइबर ठगी की जवाबदेही तय होनी चाहिए।
व्यापार-उद्योग तथा दैनंदिन जीवन में डिजिटल ट्रांजेक्शन लगातार बढ़ रहा है। लेकिन उस तेजी से साइबर सिक्योरिटी सिस्टम का उपयोग नहीं बढ़ रहा है। ऐसे में साइबर क्राइम या आनलाइन ठगी की घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है। वैश्विक स्तर पर बढ़ रहे साइबर क्राइम के कारण साइबर सिक्योरिटी एक नई इंडस्ट्री के रूप में उभर रही है। अब देश भर में साइबर सिक्योरिटी का बाजार डेढ़ लाख करोड़ रुपये वार्षिक पार कर गया है।
साइबर ठगी के बढ़ते मामलों को देखते हुए सूचना एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के तहत इस पर नियंत्रण का काम शुरू किया। इधर जैसे-जैसे सख्ती बढ़ती गई, अपराधियों ने भी नए-नए पैंतरे आजमाने शुरू कर दिए। लेकिन इस दिशा में पुलिस अभी तक पूरी तरह से सजग नहीं हो पाई है। साइबर सेल का अलग विभाग बना देने के बाद भी वहां अपने मोबाइल के खो जाने की रिपोर्ट लिखवाने के लिए कई बार चक्कर लगवाया जाता है। कुल मिलाकर पुलिस इस दिशा में अभी तक सचेत नहीं हुई है। इसलिए साइबर अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। कोर्ट की फटकार के बाद भी पुलिस अपनी जवाबदेही से बचना चाहती है।
इस अपराध में सबसे बड़ी बात यह है कि लोग आधुनिक तकनीक की पूरी जानकारी नहीं रखते। थोड़ी-सी ही जानकारी के आधार पर लोग अपने डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड आदि का प्रयोग असावधानीवश करते रहते हैं। इस अपराध में अपराधी सामने नहीं होता। वह सुदूर क्षेत्रों में या फिर विदेश में बैठकर भी यह अपराध कर लेता है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण इन साइबर अपराधियों को मौका मिल जाता है।
इसके अलावा एक महत्वपूर्ण बात यह है कि लोगों में लालच का भाव भरा हुआ है। मुफ्त में मिलने वाली किसी भी चीज के लिए वे इन्कार नहीं करते। इसलिए वे प्रलोभन का शिकार हो जाते हैं। अपराधी उनकी इसी कमजोरी का पूरा फायदा उठाते हुए उन्हें ठग लेते हैं। सामान्य जनता आधुनिक संसाधनों का खूब इस्तेमाल करती है, पर सजगता नहीं होने के कारण वह अक्सर ठगी का शिकार हो जाती है। जनता यह नहीं सोचती कि आजकल कोई आपको मुफ्त में एक कप चाय नहीं पिलाता, तो फिर वह क्यों केवल आपको लाखों रुपए यूं ही दे देगा। ये अपराधी मानव के भीतर की लालसा को जगाकर उनसे ठगी कर लेते हैं। बैंक द्वारा बार-बार यह आग्रह किया जाता है कि किसी अनजान को कभी अपना मोबाइल नंबर, आधार नंबर या ओटीपी न दें। बैंक कभी किसी से फोन पर किसी भी तरह की जानकारी नहीं मांगती। फिर भी लोग लालच में आकर ठगी का शिकार हो जाते हैं।
व्यापार में पूंजी निर्माण के लिए और अपने व्यापार को बनाए रखने के लिए साइबर सुरक्षा अनिवार्य हो गई है। वैश्विक स्तर पर कारपोरेट बिजनेस में साइबर ठगी की संख्या लगातार बढ़ रही है। एक अनुमान के अनुसार देश में सालाना लगभग 25 हजार करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान साइबर ठगी के कारण हो रहा है। इसमें महाराष्ट्र और दिल्ली सबसे ऊपर हैं। सरकार इस दिशा में सक्रिय होकर लोगों को लगातार साइबर अपराध के बारे में जागरूक भी कर रही है। परंतु जब तक लोग पूरी तरह से सतर्क और सजग नहीं होंगे, तब तक साइबर ठगी का शिकार होते रहेंगे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी इस संबंध में यह सोचने को विवश करती है कि साइबर अपराधियों पर किस तरह से रहम किया जाए। उनकी जमानत अर्जी को क्यों मंजूर की जाए? इन अपराधियों ने लोगों के सपनों को कुचलने का प्रयास किया है। लोगों की मेहनत की कमाई को एक झटके में झटक लेने का काम किया है। उनके सपनों को ऐसे ही चूर-चूर नहीं किया जा सकता। अब तो सरकार को भी इस दिशा में सख्त से सख्त कार्रवाई वाले प्रविधानों को जोड़ा जाना चाहिए। साथ ही आम लोगों को भी इस ओर सतर्क होना होगा ताकि कोई आपकी कमाई लालच देकर न हथिया ले। साथ ही आर्थिक लेनदेन से संबंधित सभी जगहों पर अपनी गोपनीयता को बनाए रखें। सरकार एवं बैंकों द्वारा जो भी निर्देश दिए जाएं, उनका पूरी ईमानदारी से पालन करें। यदि नागरिक अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं, तो उन्हें अपने कर्तव्य के प्रति भी सजग होना होगा, तभी साइबर अपराध पर अंकुश लगाया जा सकता है।