- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- शौक के साथ
Written by जनसत्ता; मनुष्य की तमाम उपलब्धियों में जानवरों का योगदान रहा है। इसी क्रम में पालतू जानवर आज भी अहम भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से पालतू जानवर के रूप में पालतू कुत्तों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। एक ओर आवारा कुत्तों के आतंक और उनकी संख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकारी योजनाएं चल रही हैं, वही हर गली-मोहल्ले, खासतौर पर संभ्रांत कालोनियों और शहरों से गावों तक पालतू कुत्तों को रखने का चलन बढ़ चला है। कुत्तों की कई नस्लें ऐसी हैं जिनकी मांग हमेशा बरकरार है और दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
लोग कुत्तों के नाज-नखरों और लालन-पालन में हजारों रुपए खर्च कर रहे हैं। पेडिग्रि सरीखी कंपनियां इनके लिए बहुआयामी खाने की वस्तुओं को बेच रही हैं तो इनकी खरीद-फरोख्त कई लोगों का व्यवसाय बन चुका है, पशु चिकित्सकों और क्लिनिकों की सख्या भी बढ़ चली है, जहां पालतू कुत्तों के टीकाकरण, संक्रमण और इलाज की सुविधाएं मौजूद रहती है।
कई राज्यों की सरकारों ने इनका पंजीकरण करवाना जरूरी कर दिया है। ऐसा न करने पर मालिक को नोटिस या कुत्ते की जब्ती संभव है। इनका समय पर टीकाकरण जरूरी है। यह शौक अगर इस तरह ही बढ़ता रहा तो पालतू कुत्तों की संख्या इनका रखरखाव, खान-पान के लिए भी अलग से बजट बनाना पड़ जाए तो वह भी अतिश्योक्ति नहीं होगी।
कुत्तों की लघु शंकाओं के निबटान हेतु इनके पालने वाले इन्हें उचित प्रशिक्षण देकर इनका निष्पादन घरों में ही करें तो सुबह-शाम को फैलाने वाली गंदगी और अनेक विवादों से निपटा जा सकता है। रिहाइशी एवं आसपड़ोस में बढ़ रहे पार्किंग के विवादों के बाद दूसरे विवादों बाद का कारण अब यह भी बनता जा रहा है, जिस पर अन्यथा न लेकर विचार और पालन जरूरी है!
साइबर अपराधियों के हौसले किस कदर बुलंद हैं, इसका अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि हर महीने करोड़ों रुपए की चपत लोगों को लग रही है और लोग कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि लोग आत्महत्या तक कर रहे हैं, अवसाद में जा रहे हैँ। जिन बैंकों से ये अपराध हो रहे हैं, उनके अधिकारियों को बिना किसी अपराध के चार्जशीट तक मिल रही है।
हैरानी की बात यह है कि इन साइबर अपराधियों में लड़के और लड़कियां, दोनों शामिल हैं, चाहे फर्जी काल सेंटर हों या फर्जी केवाइसी अद्यतन कराने का बहाना हो। जो लोग इस अपराध में पकड़े जाते हैं, उन्हें तुरंत जमानत मिल जाती है। शिकायतकर्ता को पुलिस थानों और साइबर पुलिस का पूरी तरह सहयोग नहीं मिल पाता।
साइबर अपराधों की इतनी बाढ़ आ गई है कि पुलिस की चुनौतियां दुगनी हो गई हैं। पुलिस साइबर अपराधियों के नए तौर-तरीकों के आगे बेबस और लाचार इसलिए नजर आ रही है कि पुलिस के पास उनसे निपटने के लिए उचित प्रशिक्षण तकनीक का भारी अभाव है, जबकि अपराधी दिन-रात नए-नए तरीकों से फर्जीवाड़ा कर रहे हैं।
इन अपराधियों से निपटने के लिए साइबर मुख्यालय की स्थापना करनी चाहिए और पुलिस के प्रशिक्षण के लिए बंगलुरु और हैदराबाद से विशेषज्ञ बुलाए जाने चाहिए। भारतीय रिजर्व बैंक और न्यायपालकों को भी आगे आकर उचित कदम उठाने चाहिए, ताकि गरीब मध्यम और व्यापारी वर्ग के खातों में सेंध न लग सके। कड़ा कानून बनाया जाना आज की आवश्यकता है।