सम्पादकीय

मायावती के एक्शन में आने से आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में बनेंगे नए राजनीतिक समीकरण

Rani Sahu
19 April 2022 11:02 AM GMT
मायावती के एक्शन में आने से आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में बनेंगे नए राजनीतिक समीकरण
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उत्तर प्रदेश की राजनीति (UP Politics) के तौर-तरीके कई बार लीक से बहुत ज्यादा हटकर होने के कारण राजनीतिक पंडित मजाकिया लहजे में इसे उल्टा प्रदेश भी कहते हैं

रंजीव

उत्तर प्रदेश की राजनीति (UP Politics) के तौर-तरीके कई बार लीक से बहुत ज्यादा हटकर होने के कारण राजनीतिक पंडित मजाकिया लहजे में इसे उल्टा प्रदेश भी कहते हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई बार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जिससे ऐसी बातें चल निकलती हैं कि यहां बहुत कुछ उल्टा ही हो जाता है. विधानसभा चुनाव 2022 ( Assembly Election 2022) के बाद राजनीति के मैदान में फिलहाल जो तस्वीर देख रही है उससे भी लगता है कहीं ना कहीं उल्टा ही हो रहा है. मसलन चुनावों में भारी बहुमत से जीत हासिल कर दोबारा सरकार भारतीय जनता पार्टी की बनी है और योगी आदित्यनाथ ( Yogi Adityanath) फिर से मुख्यमंत्री बने हैं लेकिन जितनी सुर्खियां नई सरकार के गठन के बाद सत्तारूढ़ पाले को मिल रही हैं उससे कहीं ज्यादा सुर्खियां उत्तर प्रदेश का विपक्ष बटोर रहा है. शिवपाल सिंह यादव और आजम खां के सियासी भविष्य को लेकर जितनी चर्चाएं हैं उतनी सत्तारूढ़ दल के मंत्रियों की भी नहीं.
राजनीति की लकीर में सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने होते हैं. लेकिन यूपी में इन दिनों उल्टा ही हो रहा है. आमने-सामने विपक्षी दल हैं. इसमें भी शह और मात का खेल समाजवादी पार्टी और चुनावों में लगभग नेस्तनाबूद हो गई बहुजन समाज पार्टी के बीच हो रहा है. दोनों के बीच बड़ी रस्साकशी मुस्लिम वोटों को लेकर हो रही है.
मायावती मुस्लिम-दलित की जुगलबंदी के लिए सक्रिय
समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव में मिले मुस्लिम वोटरों के जबरदस्त समर्थन को आगे भी थामे रखना चाहती है. वहीं बहुजन समाज पार्टी दलित- मुस्लिम गठजोड़ बनाने के लिए मुस्लिमों को अपने पाले में लाने की भरपूर कोशिश करती दिख रही है. बीएसपी की मुखिया मायावती ने चुनाव नतीजों में पार्टी की भारी हार के लिए मुस्लिम वोटरों का सपा की ओर चले जाने को जिम्मेदार ठहराया था. उन्होंने मुस्लिमों से अपील की है कि मुसलमानों के वोट सपा में चले जाने से बीजेपी जीत जाती है जबकि यदि वे बीएसपी के साथ आएं तो भाजपा को हराया जा सकता है.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि दरअसल मायावती अपने कोर वोटर दलितों के साथ मुस्लिमों की जुगलबंदी करा कर वापस उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी पार्टी को प्रासंगिक बनाना चाहती हैं उनका अनुमान है कि यदि करीब 20% मुस्लिम वोटर और लगभग इतनी ही तादाद में यूपी में जो दलित वोटर हैं, वे एकजुट हुए तो बसपा को चुनाव में कामयाबी मिल सकती है.
समाजवादी पार्टी भी मुस्लिम वोटों को इतनी आसानी से नहीं शिफ्ट होने देगी
लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा क्योंकि बसपा के बारे में न सिर्फ मुस्लिमों के मन में बल्कि सियासी परिदृश्य में भी यह धारणा घर कर गई है यह पार्टी भाजपा के प्रति हमदर्दी रखती है. ऐसे में मुस्लिम मायावती की अपील पर कितना भरोसा कर पाएंगे यह फिलहाल संदेह के घेरे में है. इतना ही नहीं, समाजवादी पार्टी भी इतनी आसानी से अपने मुस्लिम आधार को दूसरे दल में जाने नहीं देगी.
चुनाव नतीजों के बाद सपा के मुस्लिम समर्थन में दरार पड़ने के संकेत भी दिखने लगे हैं क्योंकि मुसलमानों के एक वर्ग से शिकायतें आने लगी हैं कि पार्टी उन्हें महज वोट बैंक समझती है लेकिन उनकी समस्याओं पर नहीं बोलती. मुस्लिम वोटों के लिए दोनों दलों का पहला अखाड़ा आजमगढ़ लोकसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव हो सकता है जहां अगले 6 महीने में उपचुनाव कराने होंगे क्योंकि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आजमगढ़ लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर विधानसभा की करहल सीट से सदस्य बने रहने का निर्णय लिया है. वे फिलहाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में हैं.
आजमगढ़ की राजनीति
आजमगढ़ वह इलाका है जहां विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने क्लीन स्वीप किया और जिले की सभी दस सीटें सपा के खाते में गईं. पूरे प्रदेश में तगड़ा प्रदर्शन करने के बावजूद सपा के इस गढ़ में बीजेपी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. आजमगढ़ में एक ओर जहां सपा और बसपा के बीच मुस्लिम वोटों के लिए बन रहे मुकाबले की तस्वीर है,वहीं निश्चित रूप से बीजेपी भी आजमगढ़ लोकसभा सीट को गंभीरता से लड़ते हुए विधानसभा चुनाव में मिली हार का हिसाब बराबर करना चाहती है.
आजमगढ़ लोकसभा का उपचुनाव इस मायने में भी रोचक होगा कि बसपा यहां पर दलित और मुस्लिम गठजोड़ के सहारे सपा को चुनौती देने की रणनीति पर काम शुरू भी कर चुकी है. उसने आजमगढ़ जिले की मुबारकपुर सीट के अपने पूर्व विधायक गुड्डू जमाली को आजमगढ़ संसदीय सीट का प्रत्याशी भी घोषित कर दिया है.
गुड्डू जमाली की वापसी
गुड्डू जमाली दो बार बसपा के टिकट पर मुबारकपुर से विधायक रह चुके हैं और विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बसपा छोड़कर सपा में शामिल हुए थे. उन्हें उम्मीद थी कि अखिलेश यादव उन्हें मुबारकपुर से प्रत्याशी बनाएंगे लेकिन उनकी हसरत पूरी न हो सकी. सपा से टिकट नहीं मिला तो वे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के प्रत्याशी के तौर पर मुबारकपुर में लड़े लेकिन वह बमुश्किल 35000 वोट हासिल कर सके. लेकिन उनकी कहानी मुबारकपुर में ही खत्म नहीं होती.वे पहले भी आजमगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं और अच्छे वोट भी हासिल कर चुके हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में वे बसपा के टिकट पर लड़े थे और करीब 2.66 लाख वोट पाकर तीसरे नंबर पर थे. उस चुनाव में सपा के मुलायम सिंह यादव विजयी रहे थे जबकि भाजपा के रमाकांत यादव दूसरे नंबर पर थे.
बसपा ने आजमगढ़ उपचुनाव के लिए उन्हें अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है और यदि वाकई अपनी रणनीति के मुताबिक दलित- मुस्लिम गठजोड़ बनाने में मायावती कामयाब रहीं तो आजमगढ़ का चुनाव बेहद रोचक हो जाएगा. उल्लेखनीय है कि आजमगढ़ में करीब 19 लाख मतदाता हैं. जिनमें करीब साढ़े तीन लाख यादव व तीन-तीन लाख मुस्लिम और दलित वोटर हैं. बाकी अन्य जाति के हैं. दलित वोटरों में ज्यादा संख्या मायावती के कोर वोटर जाटवों की है. यानी जिस समीकरण को मायावती साधना चाहती हैं यदि वह जमीन पर उतर गया तो नतीजों में उलटफेर संभव है.
आजमगढ़ से अखिलेश यादव के इस्तीफा देने के बाद समाजवादी पार्टी के भीतर भी इस पर मंथन चल रहा है कि किसे प्रत्याशी बनाया जाए. पार्टी चाहती है कि पार्टी के मुखिया की खाली हुई सीट पर पार्टी का कब्जा बरकरार रहे. जानकारों के मुताबिक एक पक्ष की राय है कि यादव परिवार के अंदर से ही किसी को प्रत्याशी बनाया जाए जबकि एक तबका आजमगढ़ जनपद के किसी प्रभावशाली नेता को उम्मीदवार बनाने की वकालत कर रहा है. वहीं राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना है यदि भाजपा ने दांव चलते हुए यादव बिरादरी से किसी को प्रत्याशी बनाया तो आजमगढ़ का उपचुनाव और भी रोचक हो जाएगा.
Rani Sahu

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