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- स्वतंत्रता के साथ...
सरकार ने ज्यों ही 25 फरवरी को दूरसंचार तंत्र को नियंत्रित करने की आचार संहिता जारी की, इंटरनेट, अखबारों और टीवी चैनलों पर हायतौबा मच गई। वह तो मचनी ही थी, क्योंकि लोगों के मन में यह भाव पहले से ही बैठा हुआ है कि सरकार सारे खबरतंत्र को अपनी कठपुतली बनाकर रखना चाहती है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस भाव को ही अभाव में बदल दिया है। उसने सरकार को उलटे डांट लगाई कि आपने जो आचार-संहिता जारी की है, वह निरर्थक है, क्योंकि उसमें दोषियों को सजा का न तो कोई प्रावधान है और उसमें न तो यह बताया गया है कि इंटरनेट पर चलनेवाले असंख्य अश्लील चित्र और कहानियों को रोकने का क्या इंतजाम है? अपनी आचार-संहिता में सरकार ने यह भी नहीं बताया है कि यदि इन सूचना-माध्यमों पर कोई आपत्तिजनक या अपमानजनक सामग्री भेजी जाती है तो उसके पास ऐसे कौन से तरीके हैं, जिनके द्वारा वह उन्हें रोक सकेगी?