सम्पादकीय

वित्त मंत्री का साथ

Rani Sahu
15 Sep 2021 3:31 PM GMT
वित्त मंत्री का साथ
x
देश के आईटी सेक्टर की प्रतिष्ठित कंपनी इन्फोसिस के पक्ष में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बयान की सराहना की जानी चाहिए

देश के आईटी सेक्टर की प्रतिष्ठित कंपनी इन्फोसिस के पक्ष में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बयान की सराहना की जानी चाहिए। उन्होंने कंपनी को 'राष्ट्र-विरोधी' बताने वाले पांचजन्य के आलेख को न सिर्फ अनुचित करार दिया, बल्कि यह भी कहा कि सरकार व कंपनी, दोनों मिलकर काम कर रहे हैं और पूरी आशा है कि हमें बेहतर उत्पाद मिलेगा। गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी इस साप्ताहिक पत्रिका ने अपने मुख्य आलेख में पिछले दिनों जीएसटी व आयकर पोर्टलों में आई खामियों को 'देश की अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने वाला' बताया था। अपने बेहद आक्रामक आलेख में इसने कंपनी पर 'टुकड़े-टुकडे़ गैंग' का मददगार होने का आरोप भी मढ़ दिया था। हालांकि, आरएसएस ने फौरन इस लेख से खुद को अलग कर लिया था, बल्कि उसने तो पांचजन्य को अपना मुखपत्र भी नहीं माना।

वित्त मंत्री का बयान आरएसएस के त्वरित स्पष्टीकरण के मुकाबले कुछ देरी से जरूर आया है, पर यह देश के औद्योगिक क्षेत्र के मनोबल के लिए बहुत जरूरी था। एक ऐसे वक्त में, जब अर्थव्यवस्था को उद्योगपतियों और औद्योगिक क्षेत्र के विशेष सहयोग की आवश्यकता है, ऐसा माहौल कतई नहीं बनने देना चाहिए, जिससे वे निराश हों या उनकी प्रतिबद्धता पर किसी तरह के संदेह की गुंजाइश बने। निस्संदेह, इन पोर्टलों की तकनीकी खामियों की आलोचना की जा सकती है कि इन्हें लॉन्च करने से पहले पूरी तरह दोषमुक्त क्यों नहीं किया जा सका? लेकिन तकनीकी दुनिया में यह कोई अनहोनी बात नहीं है। उत्कृष्ट वैज्ञानिकों की वर्षों की मेहनत, अरबों की लागत किसी तकनीकी कमी की वजह से सेकंडों में बेकार हो जाती है, तो क्या हम वैज्ञानिकों की नीयत पर संदेह करेंगे? भारत को आगे बढ़ाने में देश के सभी क्षेत्रों, विचारधाराओं का अहम योगदान है और इस बारे में किसी को कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए।
वैसे भी, किसी भी सरकार या संगठन से मुख्तलिफ राय रखना, उसकी मुखर आलोचना करना लोकतंत्र की बुनियादी विशेषता है और देश की ऊंची अदालतों ने कई बार हिदायत दी है कि आलोचना की बुनियाद पर किसी के विरुद्ध देशद्रोह के मुकदमे दर्ज नहीं किए जा सकते। लेकिन तमाम सरकारों ने ऐसी लोकप्रिय अवधारणा खड़ी करने की कोशिश की कि उनकी आलोचना को राष्ट्रद्रोह के बराबर देखा जाए। इसके दुष्परिणाम अब खुलकर सामने आने लगे हैं। अभी तक राजनीतिक विरोधियों के विरुद्ध इस 'टैग' का इस्तेमाल होता था, पर यह घातक प्रवृत्ति अब औद्योगिक घरानों को चपेट में लेने लगी है। यह संजीदगी से सोचने का समय है। सरकार के स्तर पर भी और समाज के स्तर पर भी। यह प्रवृत्ति पहले माहौल विषाक्त करती है, फिर कायदे-कानूनों के दुरुपयोग का सिलसिला चल पड़ता है। ऐसे में, जिम्मेदार संस्थाओं से अपेक्षा की जाएगी कि इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए वे त्वरित कदम उठाएं, जैसा कि आरएसएस के राष्ट्रीय प्रचार प्रभारी सुनील आंबेकर ने किया। उन्होंने देश की उन्नति में न सिर्फ इन्फोसिस के योगदान को स्वीकारा, बल्कि लेख में व्यक्त विचारों से संघ को अलग कर लिया। आजादी की लड़ाई से लेकर दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में देश को खड़ा करने तक हमारे उद्योग जगत की देशभक्ति असंदिग्ध रही है, यह बात सबको याद रखनी चाहिए।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तन

Next Story