सम्पादकीय

शीत सत्र : क्या संसद में संवाद होगा

Neha Dani
30 Nov 2021 1:51 AM GMT
शीत सत्र : क्या संसद में संवाद होगा
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प्रणब मुखर्जी का कहना था, 'संसद बहस के लिए है, व्यवधान के लिए नहीं।'

संसद का शीत सत्र शुरू हो चुका है, जिसके हंगामेदार होने की आशंका है, क्योंकि विपक्ष आक्रामक है और भाजपा जीत का उत्सव मना रही है। पर विपक्ष के साथ मुश्किल यह है कि वह बंटा हुआ है। पिछले चालीस साल से संसद की कार्यवाही को करीब से देखने के नाते मैं कह सकता हूं कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार और सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले विपक्ष के बीच कोई 'संवाद' नहीं है। पहले उनमें सौहार्दपूर्ण संबंध था। लेकिन वह परिदृश्य गायब है।

संसद में बहस के दौरान झूठ फैलाया जाता है। बदले की राजनीति के तहत व्यक्तिगत दुश्मनी निभाई जाती है। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने अचानक मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक का बहिष्कार कर दिया। दूसरी ओर त्रिपुरा निकाय चुनाव में जीत के बाद भाजपा का उत्साह चरम पर है। संसद के दोनों सदनों में बिना किसी बहस के तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का विधेयक पारित कर दिया गया, लेकिन विपक्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा दिए जाने पर जोर दे रहा है
इसलिए यह खींचतान यहीं खत्म नहीं होने वाली है। अगर सरकार को घेरा जाए, तो मोदी सरकार अपने गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र की कुर्बानी देने को मजबूर हो जाएगी। कड़ी राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के बावजूद दोनों पक्षों को राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए। संसद का शीत सत्र विपक्ष की अंदरूनी गतिशीलता से भी प्रभावित होगा। इसका मतलब यह है कि सदन में दो सबसे महत्वपूर्ण विपक्षी गुटों के पास सरकार से या एक-दूसरे के साथ सहयोग करने के अवसर सीमित हैं, जिससे भारी राजनीतिक विवाद होगा।
लेकिन इस कारण नीतिगत और विधायी प्राथमिकताओं की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। इस सत्र में कानून के रूप में अधिनियमित किए जाने वाले 26 विधेयक हैं। सरकार की तरफ से केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री विपक्ष के संपर्क में हैं। लेकिन कांग्रेस इस बात पर जोर दे रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद में पेश किए जाने वाले विधेयकों की मंजूरी के लिए सोनिया गांधी को आमंत्रित किया जाना चाहिए। यह कैसे हो सकता है? विपक्ष ने मोदी का अपमान किया, तो मोदी ने भी मां, बेटा और बेटी की आलोचना की।
तीनों कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने के अलावा क्रिप्टोकरेंसी ऐंड रेगुलेशन ऑफ ऑफिसियल डिजिटल करेंसी बिल, 2021 महत्वपूर्ण है। नहीं तो इस देश के युवा अपने भविष्य के पैसे की बचत के लिए डिजिटल धोखाधड़ी में फंस जाएंगे। भारत को एक और वित्तीय संकट का सामना करना पड़ेगा। कोरोना ने हमारे समाज को पंगु बना दिया है। क्रिप्टोकरेंसी हमारी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर देगी। ऐसे में, रिजर्व बैंक द्वारा जारी की जाने वाली आधिकारिक डिजिटल मुद्रा के लिए एक सुविधाजनक ढांचा तैयार करना जरूरी है।
यह विधेयक भारत में सभी निजी क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित करने का भी प्रयास करता है, हालांकि, यह क्रिप्टोकरेंसी और इसके उपयोग की अंतर्निहित तकनीक को बढ़ावा देने के लिए कुछ चीजों की अनुमति देता है। बजट घोषणा, 2019 को पूरा करने के लिए पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) अधिनियम में संशोधन करने, पीएफआरडीए से राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली ट्रस्ट को अलग करने और सार्वभौमिक पेंशन कवरेज सुनिश्चित करने के साथ-साथ पीएफआरडीए को मजबूत करने के लिए पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2021 को पेश कर विचार के पश्चात पारित कराना सरकार के एजेंडे में है।
केंद्रीय बजट घोषणा, 2021 के संदर्भ में दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के संबंध में बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण)अधिनियम, 1970 और 1980 में संशोधन और बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 में आकस्मिक संशोधन करने के लिए बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 को पारित करना भी सरकार के एजेंडे में है। भारत के समुद्री क्षेत्र (विदेशी जहाजों द्वारा मछली पकड़ने का विनियमन) अधिनियम, 1981 को निरस्त करने; भारत के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में मात्स्यिकी संसाधनों के सतत विकास; भारतीय मत्स्य पालन पोत द्वारा गहरे समुद्रों में मत्स्य संसाधनों का दोहन; मछुआरों और उनसे संबंधित मामलों की आजीविका को बढ़ावा देने के लिए इंडियन मैरीटाइम फिशरीज बिल, 2021 भी सरकार के एजेंडे में है।
ये कुछ महत्वपूर्ण विधेयक हैं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है। चीन का आक्रामक रुख तो सर्वविदित है, अब अफगानिस्तान का नया मुद्दा भी सामने है। जलवायु परिवर्तन और पाकिस्तान का श्रीलंका के करीब आना कूटनीतिक मोर्चे पर हमारी समस्या बढ़ाने वाला है। क्या विपक्ष को राष्ट्रीय सुरक्षा के इन मुद्दों पर विचार नहीं करना चाहिए? मोदी सरकार ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी राजनीतिक दलों को भ्रष्टाचार करने वाली पारिवारिक पार्टी बताकर क्षेत्रीय दलों को नाराज कर दिया है।
इसने द्रमुक और टीआरएस जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों को और भड़का दिया है। दक्षिण की ये दो प्रमुख पार्टियां केंद्र सरकार की मदद के लिए हाथ बढ़ाना चाहती थीं, लेकिन मोदी ने उन्हें भड़का दिया। द्रमुक जिसने मई, 2021 के विधानसभा चुनाव में अपने घोषणापत्र में नीट परीक्षा रद्द करने का वादा किया था, अब इसके लिए कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए संघर्ष कर रही है। द्रमुक ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में पेश किया था, लेकिन 2019 के नतीजों के बाद उसे अपने शब्द वापस लेने पड़े। अब वह मुश्किल में है।
क्या द्रमुक ममता बनर्जी के साथ जाएगी या कांग्रेस के साथ ही गठबंधन में बनी रहेगी, जो दिन-ब-दिन तबाह होती जा रही है? इसके बारे में कुछ कहना मुश्किल है। चाहे भाजपा हो या विपक्ष, दोनों अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए अडिग रहेंगे। कोई भी पहले पीछे नहीं हटना चाहेगा। नतीजतन मतदाता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष की तनातनी का संसदीय कामकाज पर असर नहीं पड़ना चाहिए। जैसा कि दो भारत रत्नों-अटल बिहारी वाजपेयी और प्रणब मुखर्जी का कहना था, 'संसद बहस के लिए है, व्यवधान के लिए नहीं।'

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