सम्पादकीय

शराब का कहर

Subhi
23 March 2021 12:30 AM GMT
शराब का कहर
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किसी त्रासद घटना का सबसे बड़ा सबक यह होना चाहिए कि भविष्य में वैसा न होने के सभी इंतजाम किए जाएं।

किसी त्रासद घटना का सबसे बड़ा सबक यह होना चाहिए कि भविष्य में वैसा न होने के सभी इंतजाम किए जाएं। लेकिन हमारे यहां आम लोगों से लेकर कानून-व्यवस्था पर अमल सुनिश्चित कराने वाले महकमों, संबंधित अधिकारियों और यहां तक कि सरकारों की नींद तब खुलती है, जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है या त्रासद घटना सामने आ जाती है। उससे पहले तक सभी अपनी धुन में लापरवाही में लीन रहते हैं।

उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ समय से जहरीली शराब पीने की वजह से कई लोगों की जान जाने की कई घटनाएं सामने आती रहीं। लेकिन यह समझना मुश्किल है कि सरकार और प्रशासन को ऐसी घटनाओं पर काबू पाने के लिए कोई ठोस कदम उठाना जरूरी क्यों नहीं रह रहा है। नतीजा यह है कि एक बार फिर राज्य में चित्रकूट के खोपा गांव में जहर की मिलावट वाली शराब पीने की वजह से पांच लोगों की मौत हो गई।
जान गंवाने वाले लोगों ने गांव की ही एक दुकान से शराब खरीद कर पी थी। जाहिर है, वहां लोग आमतौर पर शराब खरीदते रहे होंगे और उसकी बिक्री के लिए कोई नियम-कायदे तय नहीं रहे होंगे। इस पर किसी की निगरानी नहीं होगी कि वहां किस गुणवत्ता की शराब किन नियमों के तहत बिक रही है।
सवाल है कि इसके नियमन और निगरानी की जिम्मेदारी किसकी थी? अब लोगों की जान जाने की घटना के तूल पकड़ने के बाद एक रस्मी कार्रवाई के तहत कुछ पुलिसकर्मियों को निलंबित करके सरकार की ओर से सख्ती बरतने का संदेश दिया गया है। लेकिन नाहक लोगों के मारे जाने के बाद इस तरह की औपचारिक कार्रवाइयां क्या ऐसी घटनाओं पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए काफी हैं? ऐसा नहीं है कि इस तरह की यह कोई पहली घटना है जिसमें लोगों ने विषाक्त शराब पी ली हो और उसमें कई परिवारों पर दुख का पहाड़ गिर गया।
अक्सर ऐसे मामले सामने आते रहते हैं, जिनमें लोगों ने स्थानीय स्तर पर बनाई जाने वाली या फिर अन्य मिलावटी शराब खरीद कर पी और उसकी जान चली गई। ऐसा लगता है कि शराब के निर्माण और उसकी बिक्री को लेकर अगर कोई नियमन और निगरानी की व्यवस्था है तो जमीनी स्तर पर वह अनुपस्थित है और जहरीली शराब के कारोबारियों को मनमानी करने के लिए खुला छोड़ दिया गया है। आखिर ऐसा पुलिस और प्रशासन के संबंधित और जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही या मिलीभगत के बिना कैसे संभव हो सकता है?
अफसोस की बात यह है कि देश भर में जहरीली शराब से मौत की घटनाएं आज एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जो महज इसलिए हो रही हैं कि कुछ लोग बेलगाम मुनाफा कमाना चाहते हैं और इसके नियमन और रोकथाम के लिए जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी या पुलिस महकमे के अफसर किसी सौदेबाजी या फिर लापरवाही के चलते अपनी आंखें मूंदे रहते हैं। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि देश के जिन राज्यों में शराब पर कानूनन पाबंदी है, वहां भी विषाक्त शराब पीकर लोगों की मरने की घटनाएं अक्सर सामने आती हैं।
आखिर यह सब किसकी अनदेखी और किसके संरक्षण में चलता है? कायदे से देखें तो किसी भी कोने में कोई छोटा कारोबार करने वाला भी पुलिस और प्रशासन की निगरानी की जद में होता है। जरूरत पड़ने पर पुलिस कहीं भी छिपे आरोपियों या अपराधियों को खोज निकालती है। लेकिन किसी बड़ी त्रासदी या फिर आपराधिक घटना के बाद ही प्रशासनिक अमले में सक्रियता क्यों आती है और उन लोगों को पकड़ कर कार्रवाई की जाती है, जो बिना किसी बड़ी बाधा के मौत या बीमारी का कारोबार चलाते रहते हैं।

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