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जहरीली हवाओं के बीच शिमला का आचरण अगर बिगड़ रहा है
जहरीली हवाओं के बीच शिमला का आचरण अगर बिगड़ रहा है तो हमें सोचना पड़ेगा कि विकास का वर्तमान मॉडल कितना दोषपूर्ण है। शिमला शहर की एयर क्वालिटी का हालिया मूल्यांकन परवाणू जैसे औद्योगिक शहर से बिगड़ा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यातायात में आया पर्यटन सीजन का दबाव माना जा सकता है। वाहनों के पंजे से कुचली जा रही जलवायु का ऐसा हिसाब पूरे प्रदेश के लिए भी अपशगुन सरीखा है। जहां चौदह लाख के करीब पंजीकृत वाहनों के अलावा बाहरी वाहनों का खासा जमावड़ा पर्यटक सीजन की शक्ल बिगाड़ देता है। हम इसे प्रदूषण की कैटेगरी में डाल कर देखेंगे, तो शायद कहना आसान हो जाएगा, लेकिन नई आर्थिकी के संदर्भों में प्रदेश की भौतिक, भौगोलिक व पर्यावर्णीय स्थिति को खंगालने की अति आवश्यकता है।
शहरीकरण के कारण वायु गुणवत्ता के दोष मुखर हैं, लेकिन शहरी विकास मंत्रालय ने इस दृष्टि से कोई हिसाब ही नहीं लगाया। क्या परवाणू से शिमला की तरफ आ रही फोरलेन परियोजना पहाड़ पर चढ़ती जेसीबी मशीन और हर मिनट कटते पहाड़ के नीचे दब रही प्रकृति की आहें सुनी जाएंगी। आश्चर्य तो यह कि शहरी विकास मॉडल इस कद्र लावारिस है कि सडक़ों के किनारे या तो व्यापारिक होड़ में व्यस्त हैं या शहरों के बीचोंबीच ऐसे व्यापार उग आए हैं, जिन्हें कायदे से बाहर होना चाहिए। मसलन वाहनों की वर्कशाप, वेल्डिंग कार्य और कबाडख़ाने अगर शहरों के बीच चल रहे हैं, तो उन्हें अलग से निर्धारित जगहों पर होना चाहिए। ऐसे में शहरी विकास योजनाओं के खाके में आज तक यह सुनिश्चित नहीं हो रहा कि भविष्य की जरूरतें व चुनौतियों का सामना कैसे होगा। आखिर शिमला जैसा अति महत्त्वपूर्ण शहर अपनी क्षमता के आंचल में कितने पर्यटक और कितने वाहनों का बोझ उठा सकता है, इसके ऊपर विचार करके ही भविष्य की योजनाएं बनाई जा सकती हैं। शिमला की जीवनशैली में आई गतिशीलता ने हर गली को पार्किंग बना दिया है, जबकि सार्वजनिक परिवहन की आधारभूत जरूरतें भी पूरी नहीं हो रही हैं। अब आवश्यकता शिमला के नूर और रूह को बचाने की कहीं अधिक है।
इसके लिए सार्वजनिक परिवहन के नए विकल्पों पर विचार करते हुए रज्जु मार्गों तथा स्काई बस जैसी परियोजनाओं पर शीघ्रता से अमल करना होगा। इसी के साथ शिमला में पर्यटक वाहनों के प्रवेश को बीस किलोमीटर पहले ही रोक देना चाहिए। यह हर पर्यटक शहर की भी जरूरत है कि सैलानियों के वाहन दस से बीस किलोमीटर पहले रोककर,पर्यटकों को एलिवेटिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम या इलेक्ट्रिक वाहनों के माध्यम से गंतव्य तक पहुंचाया जाए। हिमाचल में टैक्सी आपरेशन को सस्ती दरों में चलाने के लिए सरकार को दखल देना होगा और इसके लिए विभिन्न करों की दरों में रियायतें और वित्तीय सुविधाएं मुहैया करवा कर समाधान निकाला जा सकता है।
वाहनों से बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए इंटर सिटी इलेक्ट्रिक बसों का संचालन तथा कुछ शहरों के मध्य ट्रांसपोर्ट नगर स्थापित करने की आवश्यकता बढ़ गई है। राजधानी में बढ़ते वाहनों की तादाद कम करने के लिए शहरी विकास योजना के तहत सेटेलाइट टाउन की एक श्रृंख्ला बनानी होगी तथा राजधानी क्षेत्र विकास प्राधिकरण के तहत सोलन तथा बिलासपुर की तरफ शिमला का प्रशासनिक बोझ सरकाना होगा। आखिर हम शिमला का भविष्य किस तरह देखते हैं। क्या इसके धरोहर मूल्य से पर्यटन को वंचित करते हुए इसे एक महानगर बना दिया जाए या इसकी क्षमता की सीमा को समझते हुए कुछ अंकुश लगाए जाएं। वीरभद्र सिंह ने शिमला की जरूरतों को समझते हुए कई महत्त्वपूर्ण कार्यालय प्रदेश के अन्य इलाकों में भेजे थे, तो उसी परिकल्पना के तहत फिर से ऐसा प्रयास किया जा सकता है। ऐसे बहुत सारे कार्यालय हैं, जिन्हें राजधानी से बाहर भेजा जा सकता है। शिमला के अगले चरण का विकास यह मांग भी करता है कि वाकनाघाट को न्यू शिमला की तर्ज पर विकसित करते हुए व इसे कर्मचारी व प्रशासनिक शहर का रुतबा देते हुए राजधानी की कुछ गतिविधियों का रुख मोड़ा जाए।
Rani Sahu
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