सम्पादकीय

क्या प्लास्टिक के प्रदूषण से मुक्त होंगे हम

Rani Sahu
1 July 2022 7:05 PM GMT
क्या प्लास्टिक के प्रदूषण से मुक्त होंगे हम
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एक जुलाई से देश में एक बार उपयोग में लाए जाने वाले प्लास्टिक (सिंगल यूज़ प्लास्टिक) पर प्रतिबंध सराहनीय और साहासिक कदम है

एक जुलाई से देश में एक बार उपयोग में लाए जाने वाले प्लास्टिक (सिंगल यूज़ प्लास्टिक) पर प्रतिबंध सराहनीय और साहासिक कदम है। सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर कई बार प्रतिबंध लगाए जाने की योजनाएं विभिन्न स्तरों पर बनाई गईं, लेकिन पूरे देश में एक साथ यह कदम पहली बार उठया जा रहा है जो कि एक सराहनीय पहल है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार विश्व में 300 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है, जिसका प्रयोग उद्योग में, कुटीर उद्योग में तथा सबसे ज्यादा आम जीवन में किया जाता है। सुबह उठने से लेकर शाम को सोने तक यह सिंगल यूज़ प्लास्टिक हमें हर पल अपनी उपस्थिति का बोध करवाता है, चाहे वह दूध की थैली हो, प्लास्टिक की थैली में सब्जी हो, मिठाई के डिब्बे की पैकिंग हो, आईसक्रीम का कप हो, होटल-रेस्तरां में प्लेट, चम्मच हो, प्लास्टिक की बोतलें हों, चिप्स के पैकेट हों, हर जगह प्लास्टिक मिल जाएगा। प्रयोग के बाद यह प्लास्टिक घर, गली, मोहल्ले, पहाड़, नदी और सागर में चला जाता है। 14 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक महासागर में जाता है। मतलब करीब दो ट्रक प्लास्टिक का कूड़ा हर एक मिनट में सागर में फेंका जाता है। 20 मिलियन वर्ग किलोमीटर का एक क्षेत्र है जिसे 'ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच' कहा जाता है।

भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार भारत सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक से उत्पन्न कचरे से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। प्रतिबंधित वस्तुओं की सूची में ये वस्तुएं शामिल हैं : प्लास्टिक स्टिक वाले ईयर बड, गुब्बारों के लिए प्लास्टिक स्टिक, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी स्टिक, आइसक्रीम स्टिक, सजावट के लिए पॉलीस्टाइनिन (थर्मोकोल), प्लास्टिक की प्लेट, कप, गिलास, कटलरी, कांटे, चम्मच, चाकू, स्ट्रॉ, ट्रे, मिठाई के डिब्बों को रैप या पैक करने वाली फिल्म, निमंत्रण कार्ड, सिगरेट के पैकेट, 100 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक या पीवीसी बैनर आदि। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम 2021 के अंतर्गत 75 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक कैरी बैग के निर्माण, आयात, संग्रहण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर 30 सितंबर 2021 से और 120 माइक्रोन से कम मोटाई वाले इस सामान पर 31 दिसंबर 2022 से प्रतिबंध लगाया गया है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 16 फरवरी 2022 को प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम 2022 के रूप में प्लास्टिक पैकेजिंग पर विस्तारित उत्पादकों की जिम्मेदारी पर दिशा-निर्देशों को भी अधिसूचित किया है। विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) दरअसल उत्पाद की शुरुआत से अंत तक उसके पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर प्रबंधन के लिए एक उत्पादक की जिम्मेदारी होती है। ये दिशा-निर्देश प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे की चक्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, प्लास्टिक पैकेजिंग के नए विकल्पों के विकास को बढ़ावा देने और कारोबारी जगत द्वारा टिकाऊ प्लास्टिक पैकेजिंग के विकास की दिशा में कदम बढ़ाने से संबंधित रूपरेखा मुहैया कराएंगे। एमएसएमई इकाइयों के लिए क्षमता निर्माण कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है ताकि उन्हें सीपीसीबी/एसपीसीबी/पीसीसी के साथ-साथ लघु, सूक्ष्म और मध्यम उद्यम मंत्रालय तथा केंद्रीय पेट्रोकेमिकल इंजीनियरिंग संस्थान (सीआईपीईटी) और उनके राज्य-केन्द्रों की भागीदारी के साथ प्रतिबंधित एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं के विकल्प के निर्माण के लिए तकनीकी सहायता प्रदान की जा सके। ऐसे उद्यमों को प्रतिबंधित एकल उपयोग वाली प्लास्टिक के निर्माण को बंद करने में सहायता करने के भी प्रावधान किए गए हैं। एकल उपयोग वाली प्लास्टिक के बंद होने से एक बड़े उद्योग पर इसका सीधा असर पड़ेगा जिसमें पैकेजिंग उद्योग शामिल है। एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं के विकल्प ढूंढने होंगे। इसके चलते नए उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। हिमाचल जैसे राज्य में जहां पर 'टौर' के पत्तों के कप, प्लेट, पत्तल, चम्मच आजि बनाए जा सकते हैं। टौर के पत्ते प्राकृतिक रूप से जल प्रतिरोधी क्षमता लिए होते हैं। सैंकड़ों सालों से हिमाचल में शादी-ब्याहों में खाना परोसने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है। बड़ के पत्तों का प्रयोग भी इसके लिए किया जा सकता है। पाइन नीडल्स से भी कई उत्पाद बनाए जा सकते हैं, जो प्लास्टिक का स्थान ले सकते हैं। कागज़ के इस्तेमाल पर भी रोक लगानी होगी, ख़ासकर टिश्यू पेपर का इस्तेमाल कम करना होगा। मिट्टी के बर्तनों का रसोई घर में इस्तेमाल बढ़ाना होगा। कुल्हड़ और मिट्टी के कप-प्लेट ज्यादा इस्तेमाल में लाने होंगे।
पहाड़ी इलाकों में बांस बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। रोजमर्रा की ज़रूरतों के लिए बांस से बनाई गई वस्तुओं का प्रयोग करना होगा। बांस के टूथब्रश, बांस के मग, बांस के चम्मच और दूसरी वस्तुएं। प्लास्टिक की जगह कपड़े और जूट के थैले इस्तेमाल करने होंगे ताकि एक थैले को लम्बे समय तक इस्तेमाल किया जा सके। पेपर बैग्स का प्रयोग भी कम करना होगा क्योंकि कागज़ के लिए जंगलों को काटना पड़ता है जिससे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता है। भले ही हम कागज़ को कई बार रिसाइकल कर सकते हैं। सरकार को यह तय करना होगा कि प्लास्टिक को चोरी-छुपे भी प्रयोग न हो। जो संस्थाएं प्लास्टिक के विकल्प लेकर काम शुरू करना चाहती हैं, उन्हें सरकार की ओर से अनुदान और तकनीकी सहायता मिले। शहर के बाहर कूड़े के बड़े-बड़े ढेरों को जैविक खाद में बदला जाए। प्लास्टिक के मौजूदा कचरे को बड़े स्तर पर नष्ट करने के कार्यक्रम शुरू करने होंगे। देश में करीब 40 लाख लोग कूड़ा कचरा इक_ा करने से अपना जीवन यापन करते हैं। 65 लाख मिलियन कचरा प्रति वर्ष देश में इक_ा किया जाता है। दिल्ली जो भारत की राजधानी है, यहां पर 5 लाख से ज्यादा लोग कचरा इकठ्ठा करने में लगे हुए हैं। उनके लिए सरकार को काम और जीवन यापन के बारे में योजनाएं बनानी होंगी। प्लास्टिक एक ऐसा रोग है जिसने पूरे विश्व के लोगों, पहाड़ों, नदियों और महासागर में रहने वाले जीव-जंतुओं का जीवन दूभर किया है। सरकार का एकल उपयोग वाली प्लास्टिक पर रोक लगाना एक साहसिक उपक्रम है। इसमें देश के हर नागरिक को योगदान देना होगा और सबको सचेत रहना होगा कि 'न प्लास्टिक इस्तेमाल करेंगे, न करने देंगे'।
रमेश पठानिया
स्वतंत्र लेखक

सोर्स- Divyahimachal

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