सम्पादकीय

क्या भारत में ऐसा होगा?

Triveni
12 July 2021 1:30 AM GMT
क्या भारत में ऐसा होगा?
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अमेरिका को पूंजीवाद का गढ़ माना जाता है। वह ऐसा गढ़ कैसे बना, अगर इसे जानना चाहें,

अमेरिका को पूंजीवाद का गढ़ माना जाता है। वह ऐसा गढ़ कैसे बना, अगर इसे जानना चाहें, तो दो रोज पहले राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कदम उठाया, उस पर गौर करना चाहिए। बाइडेन ने उस मौके पर यह टूक कहा कि अमेरिकी पूंजीवाद की ताकत उसका खुलापन और प्रतिस्पर्धा है। तो एक महत्त्वपूर्ण कार्यकारी आदेश के जरिए उन्होंने अर्थव्यवस्था में एकाधिकार (मोनोपॉली) को खत्म करने और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के उपाय घोषित किए। इससे उन्होंने हाल के वर्षों में बढ़ी इस शिकायत का समाधान ढूंढा है कि अमेरिकी पूंजीवाद खास कर हाई टेक कंपनी की मोनोपॉली में तब्दील हो गया है। माना गया है कि आर्थिक और आविष्कार संबंधी क्षेत्रों में अमेरिका की धार कमजोर होने के पीछे यही असली वजह है।

बाइडेन की ये बातें गौरतलब हैं- 'पूंजीवाद बिना स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के पूंजीवाद नहीं रह जाता, वह शोषण बन जाता है। अगर बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा ना रहे, तो बड़ी कंपनियां जो भी चाहें वो कीमत वसूल सकती हैं और लोगों से जैसा चाहें, वैसा व्यवहार कर सकती हैं।' अब इस स्थिति की तुलना अपने देश की हालत से करें। यहां ऐसा लगता है कि सरकार दो घरानों के हाथ में पूरी अर्थव्यवस्था सौंप देने के लिए खुद ही तत्पर है। जाहिर है, क्रोनी कैपिटलिज्म का जो आरोप पहले छिटपुट या खुदरा था, अब वह ठोस और व्यवस्थागत रूप ले चुका है। लेकिन जब ऐसी अर्थव्यवस्था बनती है तो उसका क्या परिणाम होता है, इसे सबसे बड़े पूंजीवादी देश के राष्ट्रपति ने पूरी दुनिया को बताया है। उन्होंने अब ऐसी व्यवस्था कायम करने की कोशिश की है, जिससे जब कोई बड़ी कंपनी किसी छोटी कंपनी को खरीदेगी, तो उस प्रक्रिया की अधिक सख्ती से निगरानी की जा सकेगी। बाइडेन प्रशासन को है कि इस पहल से उत्पादों की कीमत गिरेगी, क्योंकि जब अधिक कंपनियां बाजार में होंगी, तो ग्राहकों को लुभाने की होड़ में वे कीमतें घटाएंगी। अगर हम अपने देश में कुछ साल पहले की दूरसंचार क्षेत्र की स्थिति पर गौर करें, तो समझ सकते हैं कि तब लोगों के पास कितने प्रकार के और कितने सस्ते विकल्प थे। आज वे सब उपभोक्ताओं से दूर हो चुके हैँ। अगर सरकार को उपभोक्ताओं की फिक्र होती, तो उसे क्या करना है, इसके लिए बाइडेन के ताजा आदेश से सबक ले सकती थी। लेकिन वह भारतीय पूंजीवाद को शोषण में बदलने में अपनी भूमिका निभा रही है।


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