सम्पादकीय

सचमुच लगेगा न्यूनतम टैक्स?

Triveni
9 Jun 2021 5:35 AM GMT
सचमुच लगेगा न्यूनतम टैक्स?
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जी-7 देशों के बीच वैश्विक न्यूनतम कॉरपोरेट टैक्स के प्रस्ताव पर सहमति बनना एक बड़ी घटना है।

जी-7 देशों के बीच वैश्विक न्यूनतम कॉरपोरेट टैक्स के प्रस्ताव पर सहमति बनना एक बड़ी घटना है। लेकिन अगर इससे संबंधित नियमों में खामियां या छिद्र छोड़े गए, तो जो इरादा धनी देशों ने दिखाया है, वह पूरा नहीं हो सकेगा। गौरतलब है कि जी-7 देशों के वित्त मंत्रियों की लंदन में पिछले हफ्ते हुई बैठक में सहमति बनी कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुनाफे पर कम से कम 15 फीसदी टैक्स लगना चाहिए। हालांकि अभी ये सिर्फ सात देशों में बनी सहमति है। अभी इस पर जी-20 और धनी देशों के संगठन- ऑर्गनाइजेशन फॉर इकॉनमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलमेंट (ओईसीडी) में विचार होना बाकी है। व्यवस्था तभी कारगर होगी, अगर सभी देश उस पर राजी होंगे। इस क्रम में उन देशों को इस पर राजी करना आसान नहीं होगा, जिन्हें कम या शून्य टैक्स सिस्टम से लाभ हो रहा है। मसलन, आयरलैंड और लक्जमबर्ग ऐसे देश हैँ। बहरहाल, यह तो व्यावहारिक दिक्कत है। असल सवाल है कि क्या विधायी उपाय इतने पुख्ता होंगे, जिससे व्यवस्था दोषमुक्त ढंग से चले?

कुछ विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया कि जी-7 देशों ने वैश्विक टैक्स रेट का जो प्रस्ताव सामने रखा है, उसमें कई खामियां हैँ। उन खामियों का लाभ उठाकर अमेजन जैसी कंपनियां अपने मुनाफे पर 15 फीसदी टैक्स चुकाने से बच सकती हैं। जबकि इस प्रस्ताव का मकसद ही अमेजन, गूगल, फेसबुक, एपल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कंपनियों को ही टैक्स दायरे में लाना है। ऐसी कंपनियां अक्सर उन देशों में अपना मुख्यालय बना लेती हैं, जहां टैक्स दरें बहुत कम या शून्य हैं। इस तरह वे कानूनी ढंग से ही टैक्स की चोरी कर लेती हैं। अब बताया गया है कि जी-7 वित्त मंत्रियों ने जो प्रस्ताव तैयार किया है, उसके तहत न्यूनतम टैक्स का प्रावधान उन कंपनियों पर ही लागू होगा, जिन्हें एक वर्ष में कम से कम 10 प्रतिशत मुनाफा हुआ हो। इस सिलसिले में ध्यान दिलाया गया है कि 2020 में अमेजन ने यूरोप में बिक्री बहुत बड़ी रकम की की, लेकिन उस पर उसने सिर्फ 6.3 प्रतिशत का मुनाफा दिखाया। बाकी आमदनी का उसने पुनर्निवेश कर दिया। इससे कंपनी को अपना बाजार फैलाने में मदद मिली। लेकिन क्या यह उचित टैक्स ना देने का तर्क हो सकता है? सरकारों को ऐसे मामलों का समाधान ढूंढना होगा। उन्हें प्रस्तावित प्रावधानों की खामियां दूर करनी होंगी। वरना, यही कहा जाएगा कि उन्होंने झूठी उम्मीद जगाई है।


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