सम्पादकीय

ज्योतिरादित्य सिंधिया के समाधि पर जाने से महल के खिलाफ रानी लक्ष्मीबाई का मुद्दा समाप्त हो जाएगा?

Gulabi
28 Dec 2021 4:59 AM GMT
ज्योतिरादित्य सिंधिया के समाधि पर जाने से महल के खिलाफ रानी लक्ष्मीबाई का मुद्दा समाप्त हो जाएगा?
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ज्योतिरादित्य सिंधिया के समाधि पर जाने से महल के खिलाफ
ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के रानी लक्ष्मी बाई (Rani Lakshmibai) की समाधि पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देने से उनके विरोधी अब नए आरोप की तलाश करने के लिए मजबूर होंगे. महल विरोधी नेता आजादी के बाद से ही रानी लक्ष्मीबाई की कुर्बानी का दोष सिंधिया राजवंश पर डालते रहे हैं, जबकि 1857 की क्रांति के दस्तावेजों में इस बात का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है कि सिंधिया ने ग्वालियर का अपना महल अंग्रेजों की मदद करने के इरादे से छोड़ा था.
सिंधिया की सेना अंग्रेजो के खिलाफ रानी लक्ष्मी बाई के साथ युद्ध मैदान में थी. इसका जिक्र भी कुछ दस्तावेजों में मिलता है. वीर रस की कवि सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan) की एक कविता के बाद यह धारणा बनी कि सिंधिया ने रानी लक्ष्मीबाई की मदद ग्वालियर आने पर नहीं की, और वे राजधानी छोड़कर आगरा चले गए. 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी' सुभद्रा कुमारी चौहान की यह कविता सबसे ज्यादा चर्चित है.
इसी कविता में उन्होंने सिंधिया को अंग्रेजों का दोस्त बताया था. कविता का असर ऐसा रहा कि कोई सिंधिया, लक्ष्मी बाई को श्रद्धांजलि देने समाधि स्थल तक नहीं गया. महल और समाधि स्थल की दूरी लगातार बनी रही. अब इस दूरी को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खत्म कर सभी को चौंका दिया. सिंधिया के रानी लक्ष्मी बाई की समाधि पर जाने से विरोधियों की भाषा तो नहीं बदलेगी लेकिन उन नेताओं के मुंह पर ताले जरूर लग जाएंगे जिनकी राजनीति 1857 के घटनाक्रम को जिंदा रखने से चल रही है.
6 दशक से रानी बनी हैं सियासत का मुद्दा
ग्वालियर में रानी लक्ष्मीबाई की समाधि स्थल का निर्माण 1957 में किया गया था, यानि क्रांति के पूरे 100 साल बाद जब देश आजाद हो गया. पिछले 64 सालों में सिंधिया राज परिवार का कोई भी सदस्य महल से कुछ ही फासले पर स्थित रानी की समाधि पर पुष्प अर्पित करने नहीं पहुंचा. पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया रानी की समाधि पर पहुंचे. जाहिर है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया महल द्वारा रानी का साथ ना देने के आरोप का जवाब देने के लिए पूरी तरह से तैयार है. सिंधिया राजवंश देश के उन चुनिंदा राज परिवारों में है जो आजादी के बाद लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जरिए राजनीति में अपना खास मुकाम बनाए हुए हैं. इसकी मुख्य वजह राज परिवार की जनता के बीच छवि रही है सिंधिया परिवार को कभी भी अत्याचारी राजा के तौर पर नहीं देखा गया उनकी रियासत विकास के लिए पहचानी जाती थी.
राजनीति में हैं सिंधिया परिवार के अधिकांश सदस्य
मध्यप्रदेश में सिंधिया परिवार के लगभग सभी सदस्य सक्रिय राजनीति में हैं. इनमें राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया भी हैं, ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी विजया राजे सिंधिया संघ परिवार के साथ कांग्रेस विरोधी राजनीति करती रही हैं. माधवराव सिंधिया भी कांग्रेस में बाद में शामिल हुए. रानी लक्ष्मीबाई को लेकर लिखी गई सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता उसके बाद ही राजनीति के केंद्र में आई.
1980 के दशक में कांग्रेस सरकार ने ही सुभद्रा कुमारी चौहान की इस कविता को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल कराया. इसके बाद से ही विरोधी इसका उपयोग महल के खिलाफ करते आ रहे हैं. माधवराव सिंधिया के खिलाफ भी हमेशा यह मुद्दा उनकी राह रोकने के लिए काफी तीव्रता से उठाया जाता रहा. सिंधिया केवल एक इसी मुद्दे के कारण मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए.
बीजेपी में भी हैं रानी का मुद्दा उठाने वाले सिंधिया विरोधी
सिंधिया परिवार का प्रभाव ग्वालियर, चंबल के अलावा निमाड़, मालवा, अंचल में भी है. सिंधिया परिवार की सदस्य वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और भारतीय जनता पार्टी की कद्दावर नेता हैं. यशोधरा राजे सिंधिया शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में खेल मंत्री हैं. सिंधिया परिवार के सदस्य बीजेपी में होने के बाद भी ग्वालियर, चंबल संभाग के कतिपय नेता गाहे-बगाहे रानी लक्ष्मीबाई का मुद्दा उठाते रहते हैं. राज्य के पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया हर साल 18 जून को रानी लक्ष्मी बाई की समाधि पर मेले का आयोजन करते हैं. रानी लक्ष्मीबाई के मुद्दे को हवा देने में राज्य के क्षत्रिय और राजपूत नेताओं की भूमिका हमेशा ही सक्रिय तौर पर दिखाई दी है. सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद भी जयभान सिंह पवैया, रानी लक्ष्मीबाई का मुद्दा अपने तरीके से उठा रहे हैं.
शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल के सदस्य ग्वालियर आए और रानी लक्ष्मी बाई की समाधि पर नहीं गए तो पवैया ने तंज कसने में देरी नहीं की थी. शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल के सदस्य छत्री पर स्वर्गीय माधवराव सिंधिया को श्रद्धा सुमन अर्पित करने गए थे. यहां उल्लेखनीय है कि राज्य में चौथी बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के कारण ही बनी है. पिछले साल मार्च में सिंधिया ने अपने 28 समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ी थी. इसके कारण कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई थी और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिला था. बीजेपी की सरकार में सबसे ज्यादा मंत्री सिंधिया समर्थक हैं. हाल ही में निगम/ मंडल में भी उनके समर्थकों को जगह दी गई है.
इतिहास को बदलने की कोशिश में लगे ज्योतिरादित्य
ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी बदली हुई राजनीति में कुछ परंपरागत धारणाओं को भी बदलने की कोशिश में लगे हुए हैं. उन्होंने पहली कोशिश बीजेपी के कार्यकर्ताओं से तालमेल बिठाने कि की है. पार्टी की रीति नीति को आत्मसात किया है. केंद्र सरकार आजादी का अमृत महोत्सव मना रही है, इसमें भी क्रांतिकारियों को याद किया जा रहा है. कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं. ऐसे में सिंधिया, रानी लक्ष्मीबाई से दूरी रखते तो विरोधी इसे राजनीति मुद्दा बना सकते थे? सिंधिया ने समाधि स्थल पर जाकर विरोधियों के हाथ से मुद्दा छीन लिया है. रानी लक्ष्मी बाई की समाधि पर जाने के उनके कदम को मास्टर स्ट्रोक के तौर पर देखा जा रहा है. बीजेपी में जहां उनके विरोधी, विरोध छोड़ने को मजबूर होंगे, वहीं कांग्रेस इस मुद्दे को दमदारी से नहीं उठा पाएगी. पिछले दिनों कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने राघोगढ़ में 1857 के बहाने सिंधिया पर बड़ा हमला बोला था. सिंधिया के पूर्वजों को निशाने पर लिया था.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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