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जनता से रिश्ता वेबडेस्क | विष्णु शंकर | अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) पर तालिबान (Taliban) का कब्ज़ा हो चुका है और दुनिया मान बैठी है कि दक्षिण एशिया (South Asia) के इस मुल्क में चल रहा युद्ध अब ख़त्म हो गया है. अमेरिका, ब्रिटेन, पश्चिमी यूरोप के देश, चीन, पाकिस्तान और तालिबान के हामी अरब मुल्क भी यही माने बैठे हैं. हो सकता है यह सच भी हो जाए, लेकिन उत्तर पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में एक छोटा सा सूबा है जो अभी तक कोई नहीं जीत सका है, न सोवियत संघ और न ही अपने पुराने और नए अवतार में तालिबान. इस सूबे का नाम है पंजशीर और यह चारों तरफ से ऊंची पहाड़ियों से ऐसा घिरा हुआ है कि बिना इजाज़त इसके भीतर घुस पाना बेहद मुश्किल है.
आज सोच समझकर बात करेंगे कि पंजशीर भला कैसे अभी भी अपना सिर ऊंचा किये खड़ा है. साल 2001 से 2021 तक जब काबुल में NATO समर्थित सरकार का राज था, पंजशीर पूरे अफ़ग़ानिस्तान में सबसे महफूज सूबा समझा जाता था. पंजशीर की मशहूरियत में अहमद शाह मसूद का बड़ा योगदान है. अहमद शाह मसूद वो शख्स है जिसने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के खिलाफ सबसे मज़बूत मुहिम चलाई, और जब तक वो ज़िंदा रहे तालिबान की नाक में दम कर के रखा. अहमद शाह का जन्म पंजशीर में 1953 में हुआ था. उन्होंने 1979 में खुद को 'मसूद' उपनाम दिया, जिसका मतलब होता है "क़िस्मत वाला."
अहमद शाह मसूद अफ़ग़ानिस्तान के सबसे असरदार मुजाहिद कमांडर थे
1979 में ही उन्होंने सोवियत संघ समर्थित काबुल की सरकार की ज़ोरदार मुख़ालफ़त की और अफ़ग़ानिस्तान के सबसे असरदार मुजाहिद कमांडर के रूप में नाम कमाया. सोवियत संघ ने अपनी हार के बाद 1989 में अफ़ग़ानिस्तान छोड़ दिया और इसके बाद मुल्क पर कब्ज़े के लिए गृहयुद्ध छिड़ गया. हालांकि इस जंग को तालिबान ने जीता लेकिन, अहमद शाह मसूद ने न सिर्फ पंजशीर पर अपनी पकड़ बनाए रखी बल्कि चीन और तजिकिस्तान की सीमा तक पूरे उत्तर पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान पर United Front, जिसे Northern Alliance के नाम से भी जाना जाता है, उसका परचम लहराते रहे. अहमद शाह मसूद ने उस समय पक्का इंतज़ाम किया कि तालिबान इस पूरे इलाके में न घुस पाएं.
हालांकि मसूद भी रूढ़िवादी इस्लाम के हामी थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने कब्ज़े वाले इलाके में डेमोक्रेसी को बढ़ावा दिया. मसूद खुद ये मानते थे कि महिलाओं को समाज में बराबर के मौके मिलने चाहिए. वो चाहते थे कि अफ़ग़ानिस्तान ऐसा मुल्क बने जहां क़बाइली और मज़हबी दीवारें न हों.
अब अहमद मसूद पंजशीर को संभालते हैं
अमेरिका में हुई 9/11 की ऐतिहासिक घटना से ठीक दो दिन पहले तालिबान और अल क़ाएदा ने उनकी हत्या करवा दी. अब अहमद शाह मसूद का बेटा यानि पंजशीर का छोटा शेर सूबे की मिलिशिया को संभालता है. उसका नाम भी अहमद मसूद है. शक्ल और चाल ढाल और आदतों के हिसाब से अहमद बिलकुल अपने पिता पर गया है. जिस तरह से अफ़ग़ानिस्तान की फ़ौज के कमांडरों ने तालिबान के सामने घुटने टेक दिए, उससे इस फ़ौज के निराश और दुखी सैनिकों ने अब पंजशीर की मिलिशिया के साथ मिल कर लड़ने का फैसला किया है. इस ज़िम्मेदारी में उनका साथ अफ़ग़ानिस्तान के प्रथम उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह भी दे रहे हैं. इन दोनों की मुलाक़ात की तस्वीरें सोशल मीडिया पर हर तरफ मौजूद हैं.
मसूद ने अमेरिकी अख़बार THE WASHINGTON POST में एक आर्टिकल लिख कर अमेरिका से गुज़ारिश की है कि वो तालिबान के खिलाफ तैयार हो रहे गुरिल्ला मूवमेंट को हथियार और सैनिक साज़ोसामान मुहैया कराएं. अहमद मसूद का कहना था कि " अगर तालिबान के नेता हम पर हमला बोलते हैं तो हम उनका कड़ा मुक़ाबला करेंगे. लेकिन हम ये भी जानते हैं कि हमारी फ़ौज और असलहा लम्बे समय तक उनका मुक़ाबला करने में नाकाफी रहेंगे. इसलिए पश्चिम के अपने दोस्तों से हमारी अपील है कि बिना देरी किये वो हमें ज़रूरी फौजी साज़ोसामान मुहैया करायें." "अमेरिका और उसके दोस्त मुल्क जंग का मैदान छोड़ चुके हैं, लेकिन अमेरिका अभी भी डेमोक्रेसी का अस्लाहघर बन सकता है."
पंजशीर सूबे के अलावा लगभग पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर अब तालिबान काबिज़ है
अहमद मसूद , अमरुल्लाह सालेह, पंजशीर मिलिशिया और उनके साथ आये अफ़ग़ान फौजी कितने ताक़तवर हैं, अभी यह कहना मुश्किल है. हालांकि मसूद की अपील के बाद तजिकिस्तान ने सोमवार को पंजशीर में गोला बारूद, हथियार और अन्य ज़रूरी सप्लाई मुहैया कराईं हैं. उज़बेक क़बाइली नेता अब्दुल रशीद दोस्तम की मिलिशिया के कई लड़ाके भी पंजशीर मिलिशिया का साथ दे सकते हैं.
अगर अहमद मसूद को तालिबान का मुक़ाबला करने में सफलता मिलनी शुरू होती है तो मौका देख कर शिया मुल्क ईरान भी उनकी मदद के लिए हाथ बढ़ा सकता है. लेकिन मसूद को सबसे ज़्यादा उम्मीद अमेरिका और NATO के सदस्य देशों से होगी. वही वास्तव में फैसला करेंगे कि पंजशीर मिलिशिया की मुहिम कितनी कामयाब रहती है.
पिछले हफ्ते ख़बर आयी थी कि बगलान सूबे के बानो, देह सालेह और पुले हेसर ज़िलों पर पंजशीर मिलिशिया के लड़ाकों ने कब्ज़ा कर लिया था. लेकिन, तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने सोमवार को ट्विटर पर दावा किया कि तालिबान के लड़ाकों ने फिर से इन ज़िलों पर कब्ज़ा कर लिया है. इसके साथ साथ तालिबान पंजशीर के क़रीब बदख्शां, ताखर और अंदराब सूबों में भी मज़बूती से डटे हुए हैं. तो पंजशीर सूबे के अलावा लगभग पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर अब तालिबान काबिज़ हैं. उसे पाकिस्तान और चीन का पूरा समर्थन भी मिल रहा है. पाकिस्तान ने तो हर तरह से तालिबान की खुलेआम मदद की है. खाड़ी के अरब देश भी तालिबान के हामी हैं. फिर उनके पास अभी अभी अफ़ग़ानिस्तान की सेना ने जो आधुनिक अमेरिकी हथियार और सैनिक साज़ोसामान छोड़े थे वह भी इस्तेमाल के लिए मौजूद है. ऐसे में ज़्यादातर लोग यही मानते हैं कि तालिबान पंजशीर के छोटे शेर पर भारी पड़ेगा, भले ही इसमें थोड़ा वक़्त लगे.