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उत्तरप्रदेश चुनाव में एक शब्द की काफी चर्चा है और वह है अपराधी
उत्तरप्रदेश चुनाव में एक शब्द की काफी चर्चा है और वह है अपराधी. पहले योगी और अब देश के गृहमंत्री अमित शाह ने भी जनता को बार-बार कहा है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार में उत्तप्रदेश में अपराध कम हुए हैं, अपराधी जेलखानों में हैं, और यदि किसी अन्य दल की सरकार बनी तो प्रदेश में फिर से अपराधियों का बोलबाला हो जाएगा.
सीधा सा मतलब है कि यह पूरी कवायद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक मजबूत मुख्यमंत्री दिखाने की है. इस छवि को वह तमाम विकास मानकों से आगे रखकर चुनावी वैतरणी पार करना चाहते हैं. दूसरे दल भी कमोबेश ऐसी ही मशक्कत कर रहे हैं, चुनावी चौसर जम चुकी है.
क्या उत्तप्रदेश में अपराध होने, अपराध नहीं होने या अपराधियों को अंदर—बाहर करने के इस विमर्श में राजनीतिक दलों ने खुदको आईने में देखा है कि जिन उम्मीदवारों को वह टिकट दे रहे हैं उनकी छवि कैसी है, उन पर कितने आपराधिक मुकदमे लदे हैं, वह कैसे लोगों को चुनकर विधानसभा में भेजने वाले हैं.
भला हो एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म का जो हर ऐसे वक्त में चुनावी उम्मीदवारों का विश्लेषण कर जनता के सामने लेकर आती है. उत्तरप्रदेश के पहले चरण का मतदान दस फरवरी को होना है. इसके पहले चरण का विश्लेषण बताता है कि राजनैतिक दलों ने किन्हें अपनी प्राथमिकता में रखा है.
याद रखें यह किसी एक दल की बात नहीं है, और यह भी याद रखें कि यह सारे तथ्य और किसी ने नहीं बल्कि राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों ने खुद ही चुनाव आयोग को दिए हैं.
एडीआर ने उन 58 चुनाव क्षेत्रों के 623 में से 615 उम्मीदवारों के शपथपत्रों का विश्लेषण किया है जहां कि आने वाली दस फरवरी को मतदान होना है. विश्लेषण में पाया गया है कि इनमें से 25% उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. इनमें से 20% मामले गंभीर अपराधों से संबंधित हैं.
समाजवादी पार्टी के 28 प्रत्याशियों में से 21 पर आपराधिक मामले हैं यानी 75% उम्मीदवार, आरएलडी के 29 में से 17 उम्मीदवार यानी 59%, भारतीय जनता पार्टी के 57 में से 29 यानी 51%, इंडियन नेशनल कांग्रेस के 58 में से 21 यानी 36%, बहुजन समाज पार्टी के 56 में से 19 यानी 34%, और आम आदमी पार्टी के 52 में से 8 यानी 15% उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
इन अपराधों को सार्वजनिक जीवन का एक अनचाहा हिस्सा मानकर छोड़ भी दें चूंकि कई बार झूठे मामलों का सामना भी करना पड़ता है, लेकिन गंभीर अपराधों पर तो यह तर्क नहीं ही चलाया जा सकता है. गंभीर अपराधों का विश्लेषण और भी चिंता में डालने वाला है.
समाजवादी पार्टी के 61%, बीजेपी के 39%, आरएलडी के 52%, कांग्रेस पार्टी के 19%, बीएसपी के 29% और आम आदमी पार्टी के 10% उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. अपराध भी ऐसे वैसे नहीं, 12 उम्मीदवारों ने महिलाओं के साथ अपराध किया है, इनमें एक अपराध बलात्कार का है.
क्या टिकट देने से पहले यह नहीं सोचा गया होगा कि इसका संदेश क्या जाने वाला है, या उन्हें कोर्ट के निर्णय आने तक का इंतजार भी नहीं हो सका. छह उम्मीदवारों ने खुद पर हत्या का आरोप होना बताया है, और तीस उम्मीदवार ऐसे हैं जिन्होंने यह शपथपत्र दिया है कि उन पर हत्या के प्रयास का मुकदमा चल रहा है.
केवल यही नहीं एडीआर ने उत्तरप्रदेश में 2004 से अब तक के सारे विधानसभा और लोकसभा चुनावों में उम्मीदवारों का विश्लेषण करके भी रिपोर्ट जारी की है. 21229 कुल उम्मीदवारों में से 1544 सांसद या विधायक चुने गए थे. कुल उम्मीदवारों में 18% पर आपराधिक जबकि 11% पर गंभीर आपराधिक मुकदमे चल रहे थे.
हैरानी की बात यह है कि जनता ने जिन लोगों को चुनकर संसद या विधानसभा में भेजा उनमें से 39% पर आपराधिक और 25% पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे.
जिन्होंने कभी कानून तोड़ा है, व्यवस्था को नहीं माना है और अगर वही विधानसभा और संसद में जाकर कानून बनाने का काम करेंगे, तो देश की कैसी तस्वीर तैयार करेंगे. ये वही राजनीतिक दल हैं जो देश की सुप्रीम कोर्ट की उस मंशा को साकार नही होने देते हैं जिसमें वह चाहती है कि राजनीति में ऐसे आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को टिकट नहीं दिया जाए.
क्या उत्तरप्रदेश में साफ—सुथरी वाले जननायकों का इतना अभाव हो गया है कि पहले चरण के उम्मीदवारों में 25% ऐसी पृष्ठभूमि से हैं. कोई एक दल तो होता जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मान रख लेता. राजनैतिक दलों ने तो नहीं रखा है अब जनता की ही बारी है कि वह इस नजर से भी अपने जननायकों को देखे और बेदाग उम्मीदवारों को ही लोकतंत्र के मंदिर में प्रवेश कराए.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
राकेश कुमार मालवीय वरिष्ठ पत्रकार
Gulabi
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