सम्पादकीय

क्या घटेगी आबादी

Subhi
26 Nov 2021 2:04 AM GMT
क्या घटेगी आबादी
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नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की ताजा रिपोर्ट ने यह महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किया है कि भारत में टोटल फर्टिलिटी रेट यानी राष्ट्रीय प्रजनन दर 2.2 से कम होकर 2.0 तक पहुंच गई है।

नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-5) की ताजा रिपोर्ट ने यह महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किया है कि भारत में टोटल फर्टिलिटी रेट यानी राष्ट्रीय प्रजनन दर 2.2 से कम होकर 2.0 तक पहुंच गई है। प्रति महिला औसत प्रजनन दर 2.1 को रिप्लेसमेंट मार्क के रूप में जाना जाता है। यानी इस औसत पर जनसंख्या कमोबेश स्थिर रहती है। यह पहली बार हुआ है कि देश की राष्ट्रीय प्रजनन दर रिप्लेसमेंट मार्क से भी नीचे चली गई। ध्यान रहे, ऐसा संयोगवश या किसी नाटकीय घटनाक्रम के तहत नहीं हुआ है। औसत प्रजनन दर में कमी की प्रवृत्ति काफी समय से दिख रही थी। ऐसे में यह मानना गलत नहीं होगा कि क्रमिक रूप से आया यह बदलाव काफी हद तक टिकाऊ है। निकट भविष्य में इसके अचानक फिर ऊपर का रुख ले लेने जैसे कोई आसार नहीं हैं।

इसका मतलब यह हुआ कि देश की जनसंख्या को लेकर अपने नजरिये में भी हमें बदलाव लाने की जरूरत है। आजादी के बाद से ही जनसंख्या बढ़ोतरी को एक समस्या के रूप में देखने के हम आदी रहे हैं। आपातकाल के दौरान तो जबरन नसबंदी जैसे कार्यक्रम भी सरकार की ओर से चलाए गए। तत्कालीन सरकार की उस वजह से हुई बदनामी के चलते बाद की सरकारों ने वैसा कोई सख्त कार्यक्रम दोबारा नहीं शुरू किया, लेकिन अलग-अलग स्तर पर जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाने की कोशिशें चलती रहीं। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जरूर 'जनसंख्या विस्फोट' की जगह डेमोग्राफिक डिविडेंड का विमर्श चलाकर यह समझाने का प्रयास किया कि जनसंख्या हमारी समस्या नहीं है। इसका उपयुक्त इस्तेमाल हो तो यह हमारे लिए सबसे बड़ा वरदान साबित हो सकती है। मगर इस विमर्श का जमीन पर कोई खास असर नहीं देखा जा सका है।
कुछ हिंदुत्ववादी संगठन आज भी जनसंख्या वृद्धि को देश की एक बड़ी समस्या के रूप में देखते हैं और इसके लिए उन समुदायों को दोषी ठहराते हैं जिनमें जन्मदर अपेक्षाकृत ज्यादा है। इतना ही नहीं, बीजेपी शासित कुछ राज्यों ने हाल में भी जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कानून लाने की बात कही है। यूपी, असम, कर्नाटक, गुजरात आदि राज्यों में खुद मुख्यमंत्री या कैबिनेट सदस्य ऐसा कानून लाने का इरादा जता चुके हैं। बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा और अनिल अग्रवाल संसद में भी ऐसे एक निजी विधेयक का नोटिस दे चुके हैं। यह समझा जाना जरूरी है कि जनसंख्या को लेकर ऐसा विमर्श अब न केवल पुराना पड़ चुका है बल्कि बदले हालात में इससे प्रेरित कदम हानिकारक साबित होंगे। ताजा प्रवृत्ति जारी रही तो कुछ ही समय में हमारी आबादी घटने लगेगी और चुनौतियों का स्वरूप बिल्कुल बदल जाएगा। इसलिए जरूरी है कि लकीर का फकीर बन पुराना राग अलापते रहने के बजाय हम खुद को आने वाली नई चुनौतियों के लिए तैयार करें।

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