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लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के जन्म दिन के बाद आरजेडी (RJD) एकसुर से एनडीए (NDA) में टूट का राग अलापने लगी है
पंकज कुमार। लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के जन्म दिन के बाद आरजेडी (RJD) एकसुर से एनडीए (NDA) में टूट का राग अलापने लगी है. आलम यह है कि आरजेडी के प्रवक्ता चुनौती देकर कह रहे हैं कि एनडीए को टूट से बचा सकते हो तो बचा लो. आखिरकार लालू प्रसाद से उनके पार्टी के नेताओं को ऐसा क्या मूलमंत्र मिला है जिसके दम पर आरजेडी एनडीए सरकार के गिरने का दावा बिहार में चीख-चीख कर करना शुरू कर दी है. आरजेडी के चीख चिल्लाहट के पीछे ठोस आधार सामने नहीं आया है, लेकिन लालू प्रसाद के राजनीतिक महारथ पर भरोसा कर आरजेडी अतिउत्साहित नजर आ रही है.
सूत्रों की मानें तो आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद बिहार पहुंचकर खेला करने वाले हैं और जेडीयू (JDU) के दस विधायक उनके संपर्क में हैं जो उनके कहने पर त्याग पत्र तक दे सकते हैं. आरजेडी के एक बड़े नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि लालू प्रसाद फिलहाल कांग्रेस में टूट रोकने के लिए ऐसा बयान अपनी पार्टी के मार्फत दिलवा रहे हैं, ताकी महागठबंधन एकजुट रहे और एनडीए में अंतर्विरोध जब चरम पर हो तो मौका भांपते ही प्रदेश की सत्ता की चाभी अपने हाथों में लिया जा सके.
आरजेडी के दावों का क्या है आधार?
आरजेडी के ही दूसरे नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि महागठबंधन जल्द सरकार बनाने में कामयाब नहीं हुआ तो कांग्रेस के 11 विधायक पाला बदल सकते हैं. इसलिए लालू प्रसाद के पटना आने का इंतज़ार हो रहा है और 123 के जादुई आंकड़े तक पहुंचना उनकी मौजूदगी में ही संभव हो सकेगा. हाल के दिनों में प्रेस में एनडीए की टूट को रोक सको तो रोक लेने की चुनौती देने वाले आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि एनडीए में छोटे दलों की उपेक्षा और जेडीयू और बीजेपी में तनातनी सरकार को गिरने से बचा नहीं सकती है, इसलिए महागठबंधन सरकार का बनना तय है.
एनडीए में अंतर्विरोध में कितना दम है?
एनडीए में दो छोटे घटक दलों द्वारा कहे गए वक्तव्यों के बाद अंतर्विरोध सामने आया है. जीतनराम मांझी अपने बयानों को लेकर इन दिनों खासे चर्चा में हैं. मांझी ने बीजेपी नेताओं का आतंकी कनेक्शन बता नीतीश कुमार से उनकी गिरफ्तारी तक की मांग कर डाली है. इतना ही नहीं जाति के आधार पर जनगणना को लेकर भी उनके सुर लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के समान ही सामने आ रहे हैं. इस बात को बल इस प्रकरण के बाद और मिलने लगा है जब लालू प्रसाद के जन्म दिन के मौके पर लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव जीतन राम मांझी से मिलने उनके आवास पर पहुंच गए और घंटों लंबी चर्चा कर बंद कमरे से बाहर निकले. इस दरमियान जीतन राम मांझी और लालू प्रसाद की फोन पर लंबी बातें भी हुईं. लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव ने बाहर निकलकर जो बयान दिया उससे राजनीतिक सरगर्मी तेज होना स्वाभाविक है . तेजप्रताप ने कहा कि मांझी के लिए उनकी पार्टी का दरवाजा खुला हुआ है और वो जब चाहें तब आरजेडी के साथ आ सकते हैं.
हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रवक्ता दानिश रिजवान कहते हैं कि बीजेपी के कुछ नेताओं के अनर्गल बयान की वजह से हमें उनके खिलाफ बोलने को मजबूर होना पड़ा. लेकिन हमारी पार्टी की प्रतिबद्धता नरेन्द्र मोदी जी और नीतीश कुमार जी के साथ है. इसलिए हम एनडीए में है और एनडीए में ही बने रहेंगे. दरअसल हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के सुप्रीमो जीतनराम मांझी पर बीजेपी के नेता संतोष रंजन राय समेत दो अन्य नेताओं ने बांका के मदरसे में हुए धमाके को लेकर तीखी टिप्पणी की थी जिसके बाद बीजेपी और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के बीच जुबानी जंग तेज हो गई थी. बिहार की राजनीति के जानकार संजय कुमार कहते हैं कि जीतन राम मांझी पाला बदलते रहे हैं लेकिन उनके बयान का मतलब जरूर निकाला जाना चाहिए क्योंकि सहनी और मांझी एनडीए में खुश नहीं हैं और उन्हें उनके मनमाफिक सरकार में हिस्सेदारी नहीं मिल पा रही है.
दरअसल मांझी अपनी पार्टी के लिए राज्यपाल कोटे से एक एमएलसी और एक मंत्री पद की चाहत रखते थे जो उन्हें नहीं मिला और इसके बाद उनकी नाराजगी बाहर आती रहती है और आरजेडी इसे भुनानें की फिराक में है. जीतनराम इन दिनों बीजेपी पर इतने आक्रामक हैं कि उन्होंने बीजेपी पर देश तोड़ने तक के आरोप मढ़ दिए हैं. मांझी ने कहा है कि दलित के बेटे को नक्सली और मुस्लिम मदरसों को आतंकी कहने से देश को बचाना मुश्किल होगा.
यही हाल कमोबेश वीआईपी पार्टी के नेता मुकेश सहनी का है जो पिछला विधानसभा हार चुके हैं और उन्हें एमएलसी कोटे से मंत्री बनाया गया है. ध्यान देने वाली बात यह है कि मुकेश सहनी को एमएलसी डेढ़ साल के लिए बनाया गया है जिसको लेकर उनका दर्द छलकता रहता है. मुकेश सहनी ने सीएम नीतीश कुमार से विकास फंड का दो करोड़ रुपया वापस मांगा है जो कोविड के नाम पर विधायकों और एमएलसी का रोका गया था. मुकेश सहनी का तर्क है कि वैक्सीन केन्द्र सरकार मुफ्त में दे रही है इसलिए राज्य सरकार को विधायक और एमलसी के फंड को रोकना नहीं चाहिए.
जेडीयू के एक नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि मुकेश सहनी के सारे विधायक बीजेपी से ताल्लुक रखते हैं जो मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़े हैं. ऐसे में सहनी उन्हें तोड़कर कोई अन्य दलों के साथ ले जाना चाहेंगे तो उनके लिए खयाली पुलाव पकाने जैसा होगा. ध्यान रहे मुकेश सहनी के भी चार विधायक हैं और सहनी खुद चुनाव हारने के बाद बीजेपी कोटे से एमएलसी बने हैं. लेकिन वहीं आरजेडी का एक धड़ा मानता है कि वीआईपी पार्टी से चुनाव जीतीं सवर्णा सिंह भले ही बीजेपी को छोड़कर कहीं नहीं जाएं, लेकिन अन्य दो यादव जाति के नेता महागठबंधन में शामिल होने को बेकरार हैं.
आरजेडी की सत्ता में आने की क्या है योजना
आरजेडी की योजना के मुताबिक आरजेडी, कांग्रेस, लेफ्ट और एआईएमआईएम के विधायकों को एक साथ रखना फिलहाल जरूरी है. इन दलों के विधायकों का कुल जोड़ 118 होता है जो मैजिक फिगर से महज पांच विधायक दूर है आरजेडी इसीलिए महागठबंधन में टूट को हर हाल में रोकना चाहती है और लालू प्रसाद के जेल से बाहर निकलने के बाद उनके स्वस्थ होकर पटना आने का इंतजार कर रही है. यही वजह है आरजेडी के राष्ट्रीय महासचिव श्याम रजक का लालू प्रसाद से जन्म दिन के दिन मिलने के बाद आत्मविश्वास बढ़ा हुआ दिखाई पड़ रहा था. श्याम रजक ने कहा था कि लालू प्रसाद ने जनता के मुद्दे को उठाए रखने का मूल मंत्र उन्हें दिया है साथ ही कहा है कि सरकार अंतर्विरोध की वजह से टिकनें वाली नहीं है.
लालू प्रसाद के जन्मदिन के बाद राजनीतिक फिजा में आई तब्दीली को लेकर जेडीयू इसे भ्रामक प्रचार करार दे रही है. जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन सिंह कहते हैं, 'महागठबंधन की टूट को बचाए रखने के लिए एक रणनीति के तहत लालू प्रसाद ऐसा बयान दे रहे हैं क्योंकि उनके लिए अपनी पार्टी और घटक दल कांग्रेस की मजबूती कायम रखना गंभीर चुनौती है.
गौरतलब है कि कांग्रेस के कई विधायक जेडीयू में शामिल होने की बाट जोह रहे हैं, ये बातें पहले भी मीडिया में लगातार छपती रही हैं. इसलिए समझा जा रहा है कि लालू प्रसाद अपने कुनबे को एक साथ रखने के लिए एनडीए में फूट की बात को प्रचारित कर रहे हैं ताकी संख्याबल उनके साथ बना रहे. वैसे आरजेडी के एक सीनियर नेता जो विधानसभा के सदस्य भी हैं नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि मांझी और सहनी के दम पर सत्ता में आने की गलती आरजेडी नहीं करने वाली है, लेकिन लालू प्रसाद और कई नए पहलुओं पर विचार कर रहे हैं जो आरजेडी को सत्ता तक पहुंचाने में कारगर साबित होगी.
लालू के सहारे आरजेडी सत्ता में वापसी कर सकती है?
बीजेपी और जेडीयू का रिश्ता पिछले 23 सालों से बना रहा है. जेडीयू बीजेपी की इकलौती घटक दल है जो 16 एमपी जीतने के बाद भी केन्द्रीय मंत्रिमंडल से दूर है. सूत्रों के मुताबिक हाल में होने वाले कैबिनेट एक्सपेंशन में जेडीयू को सत्ता में भागीदारी दी जाएगी जो दोनों पार्टी के संबंधों को और प्रगाढ़ करेगा. खबरों के मुताबिक आरसीपी सिंह और ललन सिंह मंत्री बनेंगे ये तय माना जा रहा है. जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन सिंह कहते हैं कि दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व के बीच संबंध काफी पुराने और गहरे हैं. इसलिए सरकार पर संकट का प्रश्न तो कहीं से उठता ही नहीं है.
ज़ाहिर है बंगाल चुनाव में हार के बाद बीजेपी थोड़ा डिफेंसिव जरूर हुई है. इसलिए राष्ट्रीय फलक पर मजबूत दिखने के लिए 23 साल पुराने घटक दल से रिश्ते को मजबूत करना बीजेपी के लिए समय की जरूरत है. लालू प्रसाद राजनीति के जादूगर कहे जा सकते हैं लेकिन केन्द्र में सत्ता से महागठबंधन बेदखल है, इसलिए पार्टी में तोड़फोड़ करने के लिए जिस महारथ की बात पर आरजेडी भरोसा कर रही है वो पुख्ता आधार प्रतीत नहीं होता है. लालू प्रसाद भले ही आंकड़ों की बाजीगरी और एनडीए में असंतोष के दम पर सत्ता में वापसी की बात करें, लेकिन कांग्रेस जेडीयू के संपर्क में है और उसके टूट की संभावना से इन्कार करना मुनासिब नहीं होगा.
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