सम्पादकीय

क्या चुनाव आयोग निष्पक्षता के साथ आचार संहिता के उल्लंघन पर गंभीर होगा!

Rani Sahu
11 Feb 2022 5:32 PM GMT
क्या चुनाव आयोग निष्पक्षता के साथ आचार संहिता के उल्लंघन पर गंभीर होगा!
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गुजरात चुनाव 2017: कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने कुछ चैनलों को चुनाव से ठीक एक दिन पहले इंटरव्यू दिया

Faisal Anurag

गुजरात चुनाव 2017: कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने कुछ चैनलों को चुनाव से ठीक एक दिन पहले इंटरव्यू दिया. चुनाव आयोग ने तत्वरित कार्रवाई करते हुए इंटरव्यू दिखाने से चैनलों को रोक दिया. आम चुनाव 2019: चुनाव में विपक्ष के कई नेताओं को सिर्फ इसलिए चुनाव आयोग ने नोटिस देते हुए कहा उनके भाषण आचार संहिता के उल्लंघन हैं. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक भी नोटिस आयोग ने नहीं दिया. जबकि राष्ट्रवाद के बहाने वोटरों के लिए कई तरह की ऐसी बाते कही थीं, जो आचार संहिता के दौर में नहीं कही जानी चाहिए. तब के चुनाव आयुक्त अशोक लवासा का नाम इसी प्रकरण में चर्चित हुआ था कि वे आयोग के फैसले के खिलाफ थे, क्योंकि आयोग लगभग एकतरफा नोटिस जारी कर रहा था.
पांच राज्यों के चुनाव 2022 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक इंटरव्यू एएनआई लेता है और चैनलों पर उसका प्रसारण होता है. सवाल है कि क्या यह अचार संहिता का उल्लंघन नहीं है. प्रधानमंत्री इस साक्षात्कार में विपक्ष के दलों पर हमला करते हैं और वोटरों को ध्यान में रखकर एक विक्टिम कार्ड भी खेलते हैं. चुनाव आयोग इस साक्षात्कार पर एकदम चुप है. नागरिकों का एक समूह और विपक्ष लोकतंत्र के लिए संवैधानिक संस्थानों के पतन का सवाल उठाता रहा है. चुनाव आयोग के निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराने की प्रक्रिया को लेकर पिछले आठ सालों से सवाल उठ रहे हैं.
वैसे चुनाव वाले दिन भाषण देने और चैनलों के माध्यम से उसे प्रचारित करने की सुनियोजित प्रक्रिया भारतीय जनता पार्टी और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रवृति का हिस्सा है. लेकिन तमाम राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनलों से चुनाव की पूर्व संध्या पर प्रचार एक नया प्रयोग है. यह संयोग तो कतई नहीं जान पड़ता.
पिछले दिनों ही लोकसभा में स्टेट ऑफ द यूनियन और संवैधानिक संस्थानों को बचाने का सवाल उठा था. इन सवालों के जबाव से बचते हुए प्रधानमंत्री ने कांग्रेस और नेहरू को निशाना बनाया. अब इस साक्षात्कार में प्रधानमंत्री ने कहा कि आखिर वे किसे जबाव दें, जो संसद ही नहीं आते उन्हें क्या. यही नहीं प्रधानमंत्री ने गुजरात कार्ड खेला और कहा कि 2017 के चुनाव में गुजरात के दो गदहों का उल्लेख हुआ. उन्होंने कहा 'दो लड़कों का यह खेल हम पहले भी देख चुके हैं. उनका अहंकार इतना बढ़ गया था कि उन्होंने "गुजरात के दो गधे" जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था. लेकिन यूपी ने उन्हें सबक सिखा दिया. दूसरी बार इन दो लड़कों के साथ "बुआ जी" भी मिल गईं. फिर भी वे नाकाम रहे.' हमें अपमानित किया गया. जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब भी वे पांच करोड़ गुजरातियों के अपमान की चर्चा करते थे. इस बार फर्क यह है कि वे दो गुजरातियों की चर्चा कर रहे हैं.
यह तो स्पष्ट ही है कि प्रधानमंत्री के इस साक्षात्कार का निहितार्थ पांच राज्यों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की नाकामियों को और बुद्धिजीवियों ने इस इंटरव्यू को लेकर चुनाव आयोग पर सवाल उठाए हैं. स्वाति चतुर्वेदी ने मोदी के इस इंटरव्यू को मोदी मोनोलॉग बताते हुए सवाल उठाया है तो एक अन्य मशहूर पत्रकार निखिल वागले ने कहा है, यह चुनाव आचार संहिता के साथ खिलवाड़ है. वरिष्ठ पत्रकार उमाशंकर सिंह ने कहा है " प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इंटरव्यू में गुमराह शब्द का इस्तेमाल बीजेपी की हार के संदर्भ में किया कि जहां हारते हैं, वहां हम मंथन करते हैं कि सामने वाला 'गुमराह' करने में सफल क्यों हुआ. मतलब 2017 में पंजाब की जनता 'गुमराह' हुई ? ये भारत के वोटरों की समझ पर सवाल है और घोर अलोकतांत्रिक बयान है." रिटायर आइपीएस, सूर्य प्रताप सिंह ने ट्वीट किया है ' ये इंटरव्यू नहीं 'वर्चुअल रैली' है. प्रथम चरण का चुनाव प्रचार बंद होने के बाद भी वर्चुअल रैली हो रही है.चुनाव आयोग को प्रधानमंत्री मोदी ने औक़ात बता दी, हिम्मत है तो बोलकर दिखाए चुनाव आयोग.'
एक घंटा दस मिनट के साक्षात्कार में प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश और पंजाब के वोटरों को लुभाने का खास प्रयास करते हुए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं राहुल गांधी और अखिलेश यादव को निशाने पर लिया है. लखीमपुरखीरी विवाद पर भी पहली बार खुलकर बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट से एक जांच आयोग बनाने की बात कही है. लेकिन अपने मंत्रीमंडल के सदस्य का एक तरह से यह बचाव ही है. यही नहीं उन्होंने कृषि कानूनों की वापसी पर कहा कि यह देशहित में लिया गया फैसला है, लेकिन प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि कृषि कानून किसानों के हित में लाए गए थे.यूपी के पहले चरण में उन्हीं इलाकों में वोट पड़ रहे हैं जहां किसानों की बड़ी ताकत है और कृषि कानूनों की वापसी का बड़ा आंदोलन चला. तो क्या आचार संहिता एक चुनावी रिचुवल बनकर रहेगा या आयोग उसे सख्ती से पालन कराकर संवैधानिक संस्था की निष्पक्षता और स्वतंत्रता की रक्षा कर सकेगा. यह सवाल बेहद अहम है.
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