सम्पादकीय

बंगाल को लेकर बीजेपी-तृणमूल संघर्ष के कारण क्या न्यायालय से मिलेगी देश को नई राजनीतिक दिशा

Rani Sahu
16 Sep 2021 1:02 PM GMT
बंगाल को लेकर बीजेपी-तृणमूल संघर्ष के कारण क्या न्यायालय से मिलेगी देश को नई राजनीतिक दिशा
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राजनीति में सत्तासीन होना और सत्ता पर निष्कंटक बने रहना दोनों अलग-अलग विषय हैं

ज्योतिर्मय रॉय। राजनीति में सत्तासीन होना और सत्ता पर निष्कंटक बने रहना दोनों अलग-अलग विषय हैं. राजनीति शास्त्र के महान ज्ञाता आचार्य चाणक्य ने किसी को अपने नियंत्रण में रखने के लिए 'साम, दाम, दंड, भेद', जैसे चार उपाय बताए थे. चाहे कोई राष्ट्र हो या कोई व्यक्ति, शक्ति मापने का पैमाना सदियों से यही रहा है. आचार्य चाणक्य के अनुसार, किसी कार्य को सफलतापूर्वक करने के लिए सर्वप्रथम शांति के साथ समझाकर, सम्मान देकर अपनी बातें मनवाने का प्रयास करना चाहिए. अगर न माने तो उसे मनाने के लिए मूल्य देकर अपनी बात को मनवाने की प्रयत्न करना चाहिए.

तब भी बात न बने, तो उसे इस मूर्खता के लिए दंडित करने की आवश्यकता है. लेकिन फिर भी बात न बने तो आखिरी रास्ता 'भेद', जिसे राजनीति का ब्रह्मास्त्र कह सकते हैं, का प्रयोग कर उनमें आपसी वैमनस्य पैदा करके फूट डालना चाहिए, अर्थात फूट डालो और शासन करो कि नीति. इसी नीति के आधार पर मुट्ठी भर अंग्रेजों ने भारत जैसे विशाल देश पर एक सदी से ज्यादा समय तक शासन किया.
विभाजन की राजनीति
सरकार चाहे किसी की भी हो, सत्ता में बने रहने के लिए विभाजन की राजनीति का सहारा लेना ही पड़ता है. इसके लिए जितना जनता के मन-लुभावन कल्याणकारी कार्य के साथ-साथ विकास कार्य करना आवश्यक है, उतना ही विपक्ष को विभाजित करके रखने में ही भलाई है. इसके लिए सत्तासीन सरकार, चाहे वह राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार, सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग करते रहते हैं. हालांकि कभी-कभी विरोधियों को नियंत्रित करने के लिए सरकारी एजेंसी का इस्तेमाल विपरीत राजनीतिक परिणाम का कारण भी बनता है.
पश्चिम बंगाल में तृणमूल पर राजनीतिक लाभ के लिए सरकारी तंत्र के दुरुपयोग का आरोप
पश्चिम बंगाल तृणमूल कांग्रेस की सरकार और केंद्र में बीजेपी कि सरकार में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का खेल न्यायालय तक पहुंचा गया है. एक तरफ जहां तृणमूल कांग्रेस ने आरोप लगाया है की केंद्र में बीजेपी सरकार अपने राजनीतिक हित के लिए ईडी और सीबीआई का गलत इस्तेमाल कर रही है, तो दूसरी तरफ बीजेपी का आरोप है कि पश्चिम बंगाल में ममता सरकार पुलिस और प्रशासन का दुरुपयोग कर रही है.
पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा निर्वाचन से पूर्व और बाद में जो राजनीतिक हिंसा हुई है, बंगाल के लोगों के साथ-साथ पूरे भारतवर्ष के लोगों ने इसे देखा. चुनाव के बाद की हिंसा को लेकर कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा के दौरान कथित हत्या और बलात्कार के मामलों को अदालत की निगरानी में सीबीआई जांच का आदेश देते हुए राज्य सरकार को गंभीर रूप से दोषी ठहराती है. उच्च न्यायालय ने, राज्य में हुई "संगीन, गंभीर और जघन्य" आपराधिक घटनाओं कि एफआईआर दर्ज को लेकर राज्य सरकार की "उदासीन" प्रतिक्रिया को देखकर आश्चर्य प्रकट किया.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा अपने आदेश पर गठित एक जांच समिति द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अंशों का हवाला देते हुए, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, 60 प्रतिशत मामलों में एफआईआर दर्ज नहीं की गई है. यह इस तथ्य के बावजूद है कि समय की कमी के कारण समिति ने कई शिकायतकर्ताओं और पीड़ितों का बयान दर्ज नहीं कर पायी.
बीजेपी पर सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियों के मनमाने इस्तेमाल का तृणमूल कांग्रेस का आरोप
तृणमूल कांग्रेस का आरोप है कि दिल्ली में बीजेपी के नेता सत्ता में बने रहने के लिए विपक्षी दलों पर दबाव पैदा करने के लिए ईडी और सीबीआई जैसी संस्थाओं का दुरुपयोग कर रहे हैं. बीजेपी को बंगाल के चुनावों में आशा के अनुरूप परिणाम नहीं मिलने पर और विपक्षी दलों के गठबंधन की संभावना को देखते हुए बीजेपी पूरे देश में विपक्ष को दबाने की कोशिश कर रही है.
पश्चिम बंगाल में 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के दिग्गज पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी को पछाड़ने के बाद ममता बनर्जी का लक्ष्य अब त्रिपुरा पर टिका है. पश्चिम बंगाल के मुकाबले राजनीतिक स्तर पर शांत रहने वाले त्रिपुरा में अशांति का माहौल बनता जा रहा है. त्रिपुरा में भी 'खेला होबे' की तर्ज पर घटनाएं देखने को मिल रही हैं.
सीपीएम और कांग्रेस कई कार्यकर्ता अपनी पार्टी छोड़कर तृणमूल खेमे में शामिल हो रहे हैं. त्रिपुरा में बीजेपी के विरुद्ध तृणमूल को विश्वसनीय विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, जिसके कारण बीजेपी कार्यकर्ता स्वभाव के विरुद्ध उग्र हो रहे हैं. शायद बीजेपी त्रिपुरा में तृणमूल को पश्चिम बंगाल के जैसा आइना दिखाने का प्रयास कर रही है. त्रिपुरा में बीजेपी ने पंचायत की 94 फीसदी सीटों पर निर्विरोध जीत दर्ज की है.
क्या राष्ट्रीय राजनीतिक समीकरण में 'पुनर्गठन' होने जा रहा है?
कभी-कभी सत्तासीन सरकार अपनी सत्ता सुरक्षित और स्थिर रखने के लिए विरोधी दलों पर इतना दबाव पैदा कर देती है कि विवशता पूर्वक विपक्ष सत्ता के विरोध में एकजुट हो जाते हैं, जो सत्ता के स्थिरता के हित में नहीं है. 2021 के पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के बाद ममता बनर्जी के नेतृत्व में केंद्र कि बीजेपी सरकार के विरुद्ध विपक्षी दलों के महागठबंधन के 'पुनर्गठन' का समीकरण देखने को मिल रहा है. नंदीग्राम में बीजेपी के शुभेन्दु अधिकारी के हाथों तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी हार के बाद उपचुनाव में भवानीपुर की सीट से चुनाव लड़ रही हैं. ममता बनर्जी के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार खड़ा न करने का फैसला लिया है. सोनिया गांधी ने स्पष्ट किया, भवानीपुर में ममता के खिलाफ कांग्रेस का कोई उम्मीदवार नहीं उतारा जाएगा. सोनिया ने साफ कर दिया है कि वह बीजेपी के विरोध में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती हैं. जानकारों का मानना है, आने वाले दिनों में त्रिपुरा चुनाव में भी कांग्रेस की भूमिका तटस्थ रहेगी, जिसका सीधा लाभ तृणमूल कांग्रेस को मिलेगा.
ममता की मोदी विरोधी छवि
ममता बनर्जी की मोदी विरोधी छवि पर पूरा विपक्ष आस्था रखता है. क्योंकि बंगाल विधानसभा चुनाव में मोदी-अमित शाह की जोड़ी की समस्त राजनीतिक समीकरण को ममता बनर्जी ने अपने दम पर झुठला दिया था. बीजेपी के चाणक्य इस बात को पचा नहीं पा रहे हैं कि बंगाल चुनाव में उनकी हार हुई है. राजनीति में प्रतिपक्ष द्वारा किए गए आरोप को अपने पक्ष में कर लेना एक राजनीति कला है. इसमें कोई शक नहीं कि इस कला में ममता बनर्जी माहिर हैं. वह विपक्ष के किसी भी चुनौती को आपने पक्ष में करने की क्षमता रखती हैं. और अब ममता बनर्जी अपनी भाईपो (भतीजे) अभिषेक को इस कला में प्रशिक्षित कर रही हैं.
ईडी के द्वारा दिल्ली तलब किए जाने पर अभिषेक दिल्ली जाकर ईडी के समक्ष प्रस्तुत हुए. वह अच्छी तरह जानते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी को चुनौती देने के लिए दिल्ली एक आदर्श मंच है. ममता के आदर्श पर चलते हुए, अभिषेक ने इस प्लेटफॉर्म का भी बखूबी राजनीतिक इस्तेमाल किया है. ईडी के अधिकारियों के लगातार 9 घंटे सवालों के जवाब देने के बाद भी नेशनल मीडिया के समक्ष 'चुनौती' देते हुए अभिषेक ने कहा, "सबूत है तो लोगों के सामने लाओ." इससे पहले भी चुनाव के दौरान अभिषेक ने दहाड़ते हुए बोला था, "यदि क्षमता है तो मुझे गिरफ्तार करके दिखाएं." लोग भी यही चाहते हैं की सच सामने आए. अपराधियों को दंड मिलना ही चाहिए.
ईडी को अभिषेक पर लगाए गए आरोप साबित करने होंगे
अभिषेक के खिलाफ लगाए गए आरोप सही हैं या गलत, यह साबित करना ईडी के हाथों में है. अगर ईडी अभिषेक पर लगाए गए आरोपों को साबित नहीं कर पाए तो यह निश्चित रूप से राष्ट्रीय राजनीति, विशेषकर केंद्रीय राजनीति में अभिषेक का पहला बड़ा कदम होगा. केवल राजनीति के लिए किसी सरकारी तंत्र का इस्तेमाल करना और वर्षों तक कभी न खत्म होने वाली जांच प्रक्रिया, न्याय के नाम पर कलंक है. जनता यह बात भली भांति जानती है. इस प्रकार की लम्बी जांच प्रक्रिया से विपक्ष को एकजुट होने का मौका मिलता है. इस प्रकार की बहुचर्चित लंबी जांच प्रक्रिया से जनता में सरकार की तानाशाही छवि बनती है, जो सरकार के लिए हानिकारक है. क्योंकि हर तानाशाही का अंत होता है. इसलिए साल दर साल चलने वाले जांच को जल्दी पूरा कर लेना ही बेहतर होता है.
पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद की हिंसा को लेकर सत्तासीन तृणमूल सरकार के विरुद्ध बीजेपी द्वारा पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए न्यायालय की शरण में जाना गणतंत्र प्रक्रिया का एक सकारात्मक कदम है. आम जनता में न्यायालय के प्रति आस्था अभी भी अटूट है. केन्द्रीय सरकार को चाहिए जांच एजेंसियों द्वारा युद्ध स्तर पर एक समय सीमा के अंदर जांच को खत्म किया जाए और पीड़ितों को जल्दी से जल्दी न्याय मिल पाए. बंगाल में चल रहे बीजेपी-तृणमूल संघर्ष और केंद्र और राज्य सरकार द्वारा विभिन्न मुद्दों पर न्यायालय की शरण में जाना स्वागत योग्य है. स्वभावतः यह प्रश्न उठता है कि क्या न्यायालय से मिलेगी देश को नई राजनीतिक दिशा?


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