सम्पादकीय

क्या गांधी परिवार के लखीमपुर ड्रामा से कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश चुनाव जीत जाएगी?

Rani Sahu
6 Oct 2021 7:35 AM GMT
क्या गांधी परिवार के लखीमपुर ड्रामा से कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश चुनाव जीत जाएगी?
x
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) में रविवार को हिंसक वारदात हुई.

अजय झा उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) में रविवार को हिंसक वारदात हुई. सोमवार को राज्य सरकार और आन्दोलनकारी किसान नेताओं के बीच समझौता भी हो गया. पर इस वारदात के बाद कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की नकारात्मक राजनीति अपने चरम सीमा पर जाती दिख रही है. सोमवार को कग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) घटना स्थल पर जाना चाहती थीं. लखनऊ मे ही उन्हें बता दिया गया था कि कानून-व्यवस्था के मद्देनजर उन्हें वहां जाने की अनुमति नहीं है. फिर भी वह पुलिस से आंखमिचौली खेलते हुए सीतापुर तक पहुंच ही गयीं. सोमवार को उन्हें हिरासत में लिया गया और मंगलवार को उनकी गिरफ़्तारी हुई.

सोमवार को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी लखनऊ पहुंच गए और जब उन्हें भी घटना स्थल पर जाने से रोका गया तो वह हवाईअड्डे पर ही धरना दे कर बैठ गए. और अब राहुल गांधी आज लखीमपुर खीरी जाना चाहते हैं, हालांकि राज्य सरकार ने उन्हें भी इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया है.
राहुल गांधी और प्रियंका गांधी नकारात्मक राजनीति करते हैं
कारण साफ़ है. कानून-व्यस्था को सुचारू रूप से चलाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है. अगर राज्य सरकार को ऐसा लगता है कि कांग्रेस के नेताओं के वहां जाने से कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है तो उसे अधिकार है कि वह किसी को भी, जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, जाने से रोके. प्रियंका गांधी और राहुल गांधी का ट्रैक रिकॉर्ड इस मामले में ख़राब है. दोनों नकारात्मक राजनीति करने के लिए जाने जाते है. प्रियंका गांधी वहां जाकर समझौता होने के बाद भी किसी ना किसी बहाने धरना दे कर बैठ जातीं, राहुल गांधी पीड़ित परिवार के साथ सेल्फी ले कर वही काम करते जो उन्होंने दिल्ली के एक रेप विक्टिम के घर जा कर किया था.
प्रियंका गांधी ने जुलाई 2019 में भी इसी तरह आग में घी डालने के इरादे से सोनभद्र जाने की कोशिश की थी जहां एक गांव में दो गुटों के बीच हिंसक लड़ाई में 9 लोगों की गोलीबारी में मृत्यु हो गयी थी. उन्हें बनारस और सोनभद्र के बीच रोका गया था और वह वहीं धरना दे कर बैठ गयी थीं. उन्हें उस गांव में तो नहीं जाने दिया गया, पर प्रशासन ने पीड़ित परिवार की पांच महिलाओं को प्रियंका गांधी के सम्मुख उपस्थित कर दिया. प्रियंका उनसे मिल कर, उनके साथ वीडियो और फोटो खिंचा कर वैसे ही खुश हो गयीं जैसे किसी जिद्दी बच्चे को खिलौना दे कर चुप कर दिया जाता है.
गांधी परिवार एक पॉलिटिकल टूरिस्ट की तरह व्यवहार करता है
पिछले वर्ष अक्टूबर में एक गैंग रेप विक्टिम के घर हाथरस दोनों भाई-बहन जाना चाहते थे. नोएडा के पास हाईवे पर उनके काफिले को रोक दिया गया जिसके बाद काफी बवाल हुआ. धक्कामुक्की में राहुल गांधी जमीन पर गिर पड़े और उन्होंने स्थानीय पुलिस पर आरोप लगाया कि उनपर लाठीचार्ज किया गया. थोड़ी दूर पैदल चलने की कोशिश की पर पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार करके वापस दिल्ली भेज दिया. दोनों राजी ख़ुशी लौट गए. मीडिया में भरपूर कवरेज मिली और उनका मिशन कामयाब रहा.
सोनभद्र हो या हाथरस, जब कोई वारदात होती है तब ही क्यों गांधी परिवार वहां जाना चाहते हैं. अगर उस समय उन्हें वहां नहीं जाने दिया गया तो क्या उसके बाद उन्होंने कभी उस गांव में जाने या पीड़ित परिवार से मिलने की सोची. नहीं, कारण स्पष्ट है कि किसी ऐसी घटना के बाद वहां मीडिया होती है, पर बाद में नहीं. गांधी परिवार के मीडिया कवरेज से मतलब है ना कि उन्हें किसी पीड़ित परिवार के साथ सुख-दुःख बांटने की तमन्ना होती है. और अब एक बार फिर से वही सोनभद्र और हाथरस वाला नाटक लखीमपुर खीरी में हो रहा है. क्या कभी गांधी परिवार ने सोचा भी है कि उनके आग में घी डालने की कोशिश से उन्हें मीडिया कवरेज तो मिल जाती है, पर क्या वह वाकई लोकप्रिय हो गए या फिर कांग्रेस पार्टी के उन इलाकों की जीत पक्की हो गयी है?
गर गांधी परिवा को पॉलिटिकल टूरिस्ट कहा जाता है तो उन्हें यह बात चुभ जाती है, पर हकीकत तो यही है कि वह सिर्फ तब ही कहीं ग्रामीण इलाके में जाने की सोचते हैं जब वहां किसी की हत्या हो गयी हो या किसी का रेप हो गया हो. वैसे भी इस परिवार का अब उत्तर प्रदेश में आना-जाना कम हो गया है और अगर गए भी तो लखनऊ या उत्तर प्रदेश के किसी बड़े शहर तक ही उनका जाना होता है, और वह भी सिर्फ चुनाव के समय ही. अगर इसे पॉलिटिकल टूरिस्ट नहीं कहते हैं तो फिर पॉलिटिकल टूरिस्ट और क्या होता है?
लखीमपुर खीरी घटना की जांच रिटायर हाईकोर्ट जज करेंगे
अगर मान भी लें कि उत्तर प्रदेश सरकार राहुल और प्रियंका को लखीमपुर खीरी जाने की अनुमति दे भी देती है तो क्या वह दोनों सिर्फ राजनीतिक रोटियां सेंकने के इरादे से केवल उन्ही चार मृतक किसानों के परिवार से ही मिलेंगे या फिर बीजेपी के उन चार सदस्यों के परिवार से भी मिलेंगे जिनकी तथाकथित किसानों ने उस हादसे के बाद हत्या कर दी. नहीं, क्योंकि उनसे मिलकर उन्हें कोई राजनीतिक फायदा नहीं होगा. आन्दोलनकारी किसानों की मौत दुर्घटना भी हो सकती है. दुर्घटना और हत्या में जमीन और आसमान का फर्क होता है. आरोप दोनों तरफ से लग रहा है और पुलिस ने किसानों और बीजेपी के स्थानीय नेताओं की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की है. इस दुर्घटना की जांच एक रिटायर हाई कोर्ट जज करेंगे, जैसा कि आन्दोलनकारी किसान नेता चाहते थे, और तब ही पता चलेगा कि गलती किसकी थी और उस कार में क्या वाकई में केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्र का बेटा भी था!
क्या कांग्रेस पार्टी की नकारात्मक राजनीति उसे यूपी में जीत दिला पाएगी?
यह कांग्रेस पार्टी की बचकानी हरकतें ही हैं जिसने किसान आन्दोलन को बदनाम कर दिया है. आन्दोलन के शुरू होते ही कांग्रेस पार्टी ऐसे खुश हो गयी मानी उसके हाथ बीजेपी को हराने का ब्रम्हास्त्र लग गया हो. और भी राजनीतिक दल किसानों के पक्षधर हैं पर जिस तरह कांग्रेस के नेता किसानों को उकसाने का काम करते रहे हैं उस तरह कोई नहीं करता. अब तो यह भी सवाल उठने लगा है कि कहीं इन हिंसक घटनाओं के पीछे कांग्रेस पार्टी की कोई साजिश तो नहीं है?
जहां तक लखीमपुर खीरी के घटना की बात है, इसका दोष उन किसान नेताओं के सर पर है जो सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना करते हुए गैरकानूनी तरीके से धरना देकर जबरदस्ती यातायात जाम करते रहे हैं. लखीमपुर में भी यही हुआ क्योंकि वह उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को उस सड़क से नहीं गुजरते देना चाहते थे. बहरहाल, किसान आन्दोलन और हिंसक घटनाओं से कांग्रेस को क्या लाभ मिलेगा, पीड़ित परिवार से उनके मिलने की अभिलाषा क्या रंग लाएगी, इन सवालों का जवाब कुछ ही महीनों बाद होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ही मिल जाएगा.


Next Story