सम्पादकीय

आम आदमी पार्टी क्या अगले साल के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जगह ले सकेगी?

Mahima Marko
13 July 2021 6:45 AM GMT
आम आदमी पार्टी क्या अगले साल के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जगह ले सकेगी?
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सपने तो सभी देखते हैं, लेकिन सपने साकार करने के लिए जो मेहनत की जानी चाहिए

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | अजय झा सपने तो सभी देखते हैं, लेकिन सपने साकार करने के लिए जो मेहनत की जानी चाहिए अगर उसके लिए अंक दिया जाए तो आम आदमी पार्टी (AAP) 10 में से पूरे 10 अंकों की हक़दार है. हालांकि अपने गढ़ दिल्ली (Delhi) से बाहर इसे अभी तक सिर्फ पंजाब में ही कुछ हद तक सफलता हासिल हुई है, पर 'आप' का सपना 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले पार्टी को राष्ट्रीय दल के रूप में स्थापित करना है. और पार्टी उस दिशा में लगातार अग्रसर है.

'आप' सुप्रीमो अरविन्द केजरीवाल (AAP Chief Arvind Kejriwal) ने पिछले दिनों पंजाब और उत्तराखंड में ना सिर्फ आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की, बल्कि एक तरह से अपनी पार्टी के घोषणा पत्र की भी घोषणा कर दी. दोनों राज्यों में उन्होंने दिल्ली की तर्ज पर हर एक घर को 300 यूनिट बिजली (300 Unit Electricity) प्रति माह मुफ्त में देने की घोषणा भी कर दी है. अगर कहें कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के 6-7 महीने पहले ही 'आप' ने चुनावों का एजेंडा निर्धारित करना शुरू कर दिया है तो गलत नहीं होग

'आप' अब तक 15 राज्यों में चुनाव लड़ चुकी है

यह पहली बार नहीं है कि AAP दिल्ली से बाहर हाथ आजमाने जा रही है. 2012 में अपनी स्थापना के बाद से अब तक पार्टी 15 राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ चुकी है, पर दिल्ली से बाहर इसे उपजाऊ जमीन सिर्फ पंजाब में ही मिली. जहां दिल्ली की जनता ने 'आप' को लगातार 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में भरी मतों से और एक तरफा जीत दी, दिल्ली से पार्टी अभी तक लोकसभा चुनाओं में एक भी सीट जीतने में असफल रही है.

केवल पंजाब में ही मिली 'आप' को सफलता

पर पंजाब ने इसे निराश नहीं किया. 2014 के लोकसभा चुनाव में 4 सीटों पर विजय, 2017 के विधानसभा चुनाव में 20 सीटों पर जीत और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में एक सीट पर जीत, दर्शाता है कि पंजाब की राजनीति में 'आप' ने अपनी जगह बना ली है. परिणाम चाहे जो भी हो.

पर पंजाब जैसी दरियादिली किसी और राज्य की जनता ने अभी तक 'आप' के लिए नहीं दिखायी है.

2017 के गोवा विधानसभा चुनाव में पार्टी 70 में से 39 सीटों पर चुनाव लड़ी और सभी सीटों पर इसकी जमानत जब्त हो गयी. साल के अंत में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में 'आप' 182 में से 29 सीटों पर चुनाव लड़ी. वहीं वर्ष 2018 में छत्तीसगढ़ में 90 में से 85 सीटों पर, राजस्थान में 200 में से 142 सीटों पर, मध्य प्रदेश में 230 में से 208 सीटों पर, कर्णाटक में 124 में से 28 सीटों पर, मेघालय में 60 में से 8 सीटों पर, नागालैंड में 60 में से 3 सीटों पर और तेलंगाना में 119 में से 41 सीटों पर पार्टी चुनाव लड़ी पर सफलता 'आप' से कोसों दूर ही रही.

2019 में झारखण्ड के 81 में से 26, महाराष्ट्र में 288 में से 224, ओडिशा में 146 में से 15, हरियाणा में 90 में से 46 सीटों पर 'आप' ने अपने उम्मीदवार खड़े किए, पर नतीजा वही रहा- 'शून्य'. 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों सीटों पर, पंजाब की सभी 13 सीटों पर, गोवा की दोनों सीटों पर और चंडीगढ़ की एकलौती सीट पर पार्टी ने उम्मीदवार खड़ा किया. अन्य राज्यों में बिहार में 40 में से 3, हरियाणा की 10 में से 3 और उत्तर प्रदेश में 80 में से 4 सीटों पर 'आप' चुनाव लड़ी, पर सफलता पंजाब की सिर्फ एक सीट पर नसीब हुई.

हारने के बाद भी 'आप' लड़ने को तैयार है

एक बारगी तो ऐसा लगने लगा कि आप हताश हो गयी है. विशेषज्ञों ने मुफ्त की राय भी दे डाली कि 'आप' दिल्ली में ही अपनी स्थिति मजबूत करती रहे तो बेहतर है, बल्कि इसके कि अन्य राज्यों में जमानत जब्त करवाती रहे. लगने लगा था कि शायद केजरीवाल और उनकी पार्टी विशेषज्ञों की बात से सहमत हो गयी, क्योंकि 2019 के बाद किसी और राज्य में पार्टी ने चुनाव नहीं लड़ा. पर अब आप एक बार फिर से कमर कस कर 2022 के चुनावी दंगल में ताल ठोकने को तैयार है.

साल की शुरुआत में जिन पांच राज्यों में चुनाव निर्धारित हैं, उसमें से मणिपुर को छोड़ कर अन्य सभी राज्यों- पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में पार्टी ने चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. मणिपुर के बारे में फ़िलहाल स्थिति स्पष्ट नहीं है. इसके बाद साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी चुनाव होना है, जिसमें आप ने चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है.

संभव है कि आप को फिर से निराशा ही हाथ लगे, केजरीवाल ने तो पंजाब और उत्तराखंड में मुफ्त की बिजली का अपना पत्ता खोल दिया है, पंजाब में किसी सिख को मुख्यमंत्री का दावेदार बनाने की भी घोषणा कर दी है. क्या वह सिख कांग्रेस के बागी नेता नवजोत सिंह सिद्धू होंगे, इस पर अभी सवालिया निशान है. गोवा में पार्टी काफी सक्रिय है और वहां इसके कार्यकर्ता भी हैं, पर गोवा की राजनीति मंदिर और चर्च से चलती है, जिसमें आप पीछे रह जाती है. सवाल यह भी है कि जिन राज्यों में पार्टी ने अगले साल चुनाव लड़ने की घोषणा की है, क्या इसके पास जीतने की क्षमता रखने वाले उम्मीदवार हैं भी. लेकिन अगर मुफ्त की बिजली का सिक्का चल गया तो फिर वह किसी और के लिए नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी के लिए एक चेतावनी बन सकती है.

देश में कांग्रेस की जगह ले सकती है 'आप'

विपक्षी दलों में से सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही एकलौती ऐसी पार्टी है जो देश के हर एक राज्य में चुनाव लड़ने की अभी भी क्षमता रखती है, बाकी सभी चाहे, वह तृणमूल कांग्रेस हो या फिर एनसीपी, सभी मूल तौर पर क्षेत्रीय दल ही हैं जिनका प्रभाव अपने क्षेत्र, अपने राज्यों तक ही सीमित है.

फिलहाल कांग्रेस पार्टी की दशा और दिशा ऐसी ही रही जैसी की अभी दिख रही है तो फिर देश के राजनीति में किसी मजबूत विपक्षी दल के लिए जगह खाली दिखाई देने लगेगी. शायद केजरीवाल की निगाहें उसी रिक्त स्थान पर कब्जा करने की हैं. अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस पार्टी के लिए यह किसी बुरी खबर से कम नहीं होगी. दिल्ली में आज भी कांग्रेस पार्टी उस दिन को रो रही है जब बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए 2013 में उसने आम आदमी पार्टी की सरकार को बहार से समर्थन देने का फैसला किया था.

केजरीवाल ने कांग्रेस से दबाव की बात कह के 49 दिनों में ही इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस पार्टी दिल्ली में ऐसी लुढ़की कि 2013 के बाद से दो बार लोकसभा और दो बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और कांग्रेस पार्टी अब तक एक भी सीट नहीं जीत पाई है. इसमें शक की गुंजाइश नहीं है कि केजरीवाल एक महत्वाकांक्षी नेता हैं और उनकी नज़र प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है. राजनीति में कुछ भी संभव हो सकता है और याद रहे कि हीरो से जीरो और जीरो से हीरो बनने में देर नहीं लगती. यह बात केजरीवाल को पता है, पर लगता नहीं है कि कांग्रेस पार्टी को इसकी सुध भी है.

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