सम्पादकीय

क्या छोटे दल बिगाड़ देंगे तमिलनाडु का सियासी समीकरण? क्यों नाराज हैं 'छोटी क्षेत्रीय' पार्टियां

Gulabi
5 March 2021 1:27 PM GMT
क्या छोटे दल बिगाड़ देंगे तमिलनाडु का सियासी समीकरण? क्यों नाराज हैं छोटी क्षेत्रीय पार्टियां
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तमिलनाडु में विधानसभा चुनावों को अब कुछ ही दिन बचे हैं

तमिलनाडु में विधानसभा चुनावों को अब कुछ ही दिन बचे हैं, राजनीतिक पार्टियां अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए लग गई हैं. राज्य की सत्ता हासिल करने के लिए गठबंधन बनाए और तोड़े जा रहे हैं. तमिलनाडु की सियासत में हमेशा से दो ही पार्टियां राज करती आई हैं, पहली है AIDMK और दूसरी है DMK. इसमें ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIDMK) के साथ भारतीय जनता पार्टी (BJP) रहती है और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के साथ कांग्रेस. हालांकि राज्य में कई छोटी पार्टियां भी हैं जिनकी पकड़ सीमित क्षेत्र या फिर किसी एक समुदाय पर होती है. लेकिन इन पार्टियों के पास कई बार इतनी संख्या में विधायक और वोट शेयर होता है कि वह किसी कि भी सरकार बना और गिरा सकते हैं.

लेकिन तमिलनाडु में यह पार्टियां अब बड़ी पार्टियों से गठबंधन में सम्मान जनक सीटों के लिए संघर्ष कर रही हैं. 2016 के विधानसभा चुनाव में AIDMK तमिलनाडु में DMK को हराकर सत्ता पर काबिज हुई. इस चुनाव में AIDMK के साथ और देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कड़गम (DMDK) जैसे छोटे दल रहे. वहीं DMK के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) CPI(M),MDMK और VCK (Viduthalai Chiruthaigal Katchi) जैसी पार्टियां रहीं.

AIDMK के साथ सीटों के लिए बातचीत
इस वक्त तमिलनाडु में AIDMK की सरकार है और वहां के मुख्यमंत्री पलानीस्वामी हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में AIDMK के साथ केंद्र की सत्ता में काबिज बीजेपी भी लड़ रही है, वहीं इसके साथ DMDK और TMC(Moopanar) जैसी पार्टियां भी लड़ेंगी. DMDK और TMC(Moopanar) सत्तारूढ़ AIDMK के साथ सम्मान जनक सीटों के लिए बात चीत कर रही हैं. दरअसल 2016 के विधानसभा के चुनावों में AIDMK को 40.77 प्रतिशत वोट मिले थे, जिसके सहारे वह सरकार में आई. इस विधानसभा चुनाव में DMDK को 2.4 प्रतिशत ही वोट मिले थे. जबकि इसी के साथ की पार्टी MNK (Makkal Nala Kootani) को 26 लाख वोटों के साथ 6 प्रतिशत वोट मिले थे. इसीलिए इन छोटे दलों को लगता है कि राज्य की बड़ी पार्टियों को उन्हें अच्छी सीटें देनी चाहिए.

DMK के साथ की छोटी पार्टियों को भी मिला था वोट
2016 के विधानसभा चुनावों में DMK को 39.76 प्रतिशत वोट के साथ 97 सीटें मिलीं थीं, वहीं PMK (Paattali Makkal Katchi) जैसी छोटी पार्टी भी 20 सीट जीतने में कामयाब रही थी. पिछले विधानसभा चुनाव में DMK के साथ की छोटी पार्टियों को भी जनता का समर्थन मिला था. हालांकि वह सरकार बनाने में कामयाब भले ही न हो पाई हों लेकिन उनके उपस्थिति को कोई भी नकार नहीं सकता है. इसलिए इस बार के विधानसभा के चुनावों में यह छोटी पार्टियां भी अपने लिए ठीक-ठाक सीटें देने की बात कर रही हैं. हालांकि DMK ने गुरुवार को VCK को 6 सीटें देने का एलान कर दिया है. साथ ही DMK ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को तीन सीटें और मानीथानेया मक्काल काची को दो सीटें दी हैं. हालांकि अभी कांग्रेस और वामदलों के साथ सीटों को लेकर बातचीत चल रही है.

PMK के साथ 23 सीटों पर बात बनी
AIDMK को PMK की ताकत का अंदाजा 2016 के विधानसभा चुनाव में हो गया था. इसलिए इस बार के विधानसभा चुनावों में AIDMK ने अपने सहयोगी PMK को 23 सीटें देने का एलान किया है. हालांकि वह कौन-कौन सी सीटें होंगी इस पर बातचीत चल रही है. अन्य सहयोगी पार्टियां भी AIDMK की ओर ऐसी ही सम्मान जनक सीटों के लिए देख रही हैं. हालांकि अभी सिर्फ बातचीत ही हो रही है. यहां कि 234 विधानसभा सीटों पर किसके कितने उम्मीदवार उतारे जाएंगे ये कुछ दिनों में साफ हो जाएगा.

बड़ी पार्टियां छोटी पार्टियों को हल्के में ले रही हैं
तमिलनाडु की बड़ी पार्टियां जैसे AIDMK और DMK छोटी पार्टियों को अभी हल्के में ले रही हैं. उनके नेता आए दिन बयान देते रहते हैं कि अगर इन छोटी पार्टियों का गंठबंधन बड़ी पार्टियों से न हो तो यह एक भी सीट नहीं जीत सकती हैं. हो सकता है उनकी बात में दम हो लेकिन इन छोटी पार्टियों के पास इतना जनाधार जरूर होता ही कि ये किसी का भी खेल बिगाड़ दें. राजनीति में सबको साथ लेकर चलने में ही भलाई होती है. एक शोध के अनुसार तमिलनाडु में 25 प्रतिशत कोर वोटर हैं जो हमेशा एक ही जगह जाते हैं. छोटी पार्टियों का इनमें बड़ा हिस्सा होता है क्योंकि वो अपने धर्म, समुदाय और क्षेत्र का नेतृत्व कर रही होती हैं. एक पूरा इतिहास है जहां देखा जा सकता है कि कैसे छोटी पार्टियों ने बड़ी-बड़ी पार्टियों को जीता हुआ चुनाव भी हरा दिया है वो भी सिर्फ वोट काट कर. इसीलिए बड़ी पार्टियों को इस विधानसभा चुनाव में अपनी सहयोगी छोटी पार्टियों को नाराज नहीं करना चाहिए.
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