सम्पादकीय

गोवा विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी के फैसले क्या राज्य में कांग्रेस को कमज़ोर कर देंगे

Rani Sahu
13 Jan 2022 9:14 AM GMT
गोवा विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी के फैसले क्या राज्य में कांग्रेस को कमज़ोर कर देंगे
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कांग्रेस (Congress) पार्टी बेताज बादशाह राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ननिहाल से वापस आते ही रायता फ़ैलाने में लग गए हैं

अजय झा कांग्रेस (Congress) पार्टी बेताज बादशाह राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ननिहाल से वापस आते ही रायता फ़ैलाने में लग गए हैं. रायता फैलाने का मतलब, जिन्हें नहीं पता, इसका मतलब होता है 'गड़बड़ करना या काम बिगाड़ना'. अब इसे रायता फैलाना नहीं तो और क्या कहेंगे कि इटली से लगभग एक पखवाड़ा बिताने के बाद लौटते ही उन्होंने अपने चिर परिचत अंदाज़ में एक ऐसा फैसला ले लिया जो कांग्रेस पार्टी के लिए गोवा विधानसभा चुनाव (Goa Assembly Elections) में नुकसानदायक साबित हो सकता है.

गोवा के एक नेता हैं माइकल लोबो, जिनकी महत्वकांछा एवेरेस्ट पर्वत से भी ऊंची है. बीजेपी में टिकट पर लगातार दो बार चुनाव जीते. अपने को उत्तर गोवा का सबसे बड़ा नेता मानते हैं. राजनीति में आगे बढ़ने के लिए ब्लैकमेल करने से परहेज नहीं करते. 2017 में जब दूसरी बार चुनाव जीत कर आए तो उनका मन मंत्री बनने के लिए मचलने लगा. बीजेपी की मजबूरी थी कि बहुमत के आभाव में उसे एक गठबंधन की सरकार बनानी पड़ी थी, जिसमे दो क्षेत्रीय दल और निर्दलीयों को भी मंत्रीमंडल में शामिल करना था, कांग्रेस छोड़ कर आए नेताओं को भी मंत्रिमंडल में स्थान देना था. इसलिए लोबो मंत्री नहीं बन पाए. विधायक के रूप में इस्तीफा देने के बात करने लगे, बीजेपी ने उन्हें विधानसभा उपाध्यक्ष का पद दे दिया.
कुछ समय बाद फिर से लोबो का दिल मंत्री बनने को लिए मचलने लगा और पार्टी छोड़ने की धमकी देने लगे. 2019 में उन्हें मजबूरीवश मंत्री बनाया गया. और अब पिछले कुछ महीनों से वह अपनी पत्नी के लिए टिकट की मांग पर अड़ गए थे. जब बीजेपी ने मना कर दिया तो खुले आम पार्टी छोड़ने की धमकी देते नज़र आने लगे. बीजेपी ने जब उन्हें साफ़ शब्दों में कह दिया कि पति-पत्नी दोनों को टिकट देना ना तो पार्टी की पॉलिसी है ना ही उनकी ऐसी कोई योजना है तो थकहार कर लोबो ने मंत्रिमंडल और बीजेपी से 10 जनवरी को इस्तीफा दे दिया.
स्थानीय नेताओं के विरोध के बावजूद लोबो दम्पति को कांग्रेस में शामिल किया गया
लोबो की लम्बे समय से कांग्रेस पार्टी के साथ बातचीत चल रही थी, पर बात बन नहीं रही थी. पार्टी के स्थानीय नेता उनके खिलाफ थे. 10 जनवरी को ही शाम में लोबो दम्पति कांग्रेस में शामिल होने वाले थे, पर विरोध के कारण यह कार्यक्रम नहीं हुआ. ऐसा लगने लगा था कि लोबो की स्थिति वही होने वाली है जैसे कि आसमान से टपके, खजूर पर अटके. बीजेपी से इस्तीफा दे दिया था और कांग्रेस पार्टी में उनके खिलाफ नाराजगी थी. लगने लगा था कि लोबो और उनकी पत्नी को निर्दलीय ही चुनाव लड़ना पड़ेगा. पर नहीं, ऐसा अब नहीं होने वाला है.
इटली से लौटने के बाद मगलवार यानि 11 जनवरी को राहुल गांधी ने कांग्रेस के दो बड़े नेताओं, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल और कांग्रेस के गोवा पर्यवेक्षक पी चिदंबरम से फोने पर बात की और शाम होने से पहले ही लोबो दम्पति को कांग्रेस में शामिल कर लिया गया. कार्यक्रम में कांग्रेस के गोवा प्रभारी दिनेश गुंडू राव और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष दिगंबर कामत जो गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री हैं शामिल हुए और लोबो दम्पति को पार्टी में शामिल किया गया. सबसे मजेदार बात यह है कि गोवा प्रदेश कांग्रेस का एक भी पदाधिकारी उस कार्यक्रम में नहीं दिखा.
गोवा कांग्रेस के खिलाफ राहुल गांधी कई बार फैसले ले चुके हैं
यह पहला अवसर नहीं है कि राहुल गांधी ने पार्टी के राज्य इकाई के नेताओं से बिना बात किए एकतरफा फैसला लिया हो. राहुल गांधी को बीजेपी का खौफ इस कदर सताता रहता है कि जिस किसी के साथ बीजेपी का नाम जुड़ा होता है और वह कांग्रेस की तरफ हसरत भरी नज़रों से देखता है तो राहुल गांधी उसका दोनों हाथ फैला कर स्वागत इस तरह करते हैं मानो उन्हें बीजेपी को हराने का कोई फार्मूला मिल गया हो.
गोवा के एक और महत्वाकांक्षी नेता हैं विजय सरदेसाई. गोवा फॉरवर्ड पार्टी के अध्यक्ष हैं. 2017 में सरदेसाई के धोखे के कारण ही गोवा में कांग्रेस की सरकार नहीं बनी थी. 40 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 17 विधायक चुन कर आए थे, एनसीपी के एकलौते विधायक का समर्थन था और सरदेसाई ने गोवा फॉरवर्ड पार्टी के तीन विधायकों के समर्थन की घोषणा तक कर दी थी. पर रातों रात उनका फैसला बदल गया. अपनी पार्टी के विरोध के बावजूद भी सरदेसाई ने बीजेपी को समर्थन दे दिया. कांग्रेस पार्टी ने उन पर बिकने का आरोप लगाया. सरदेसाई उपमुख्यमंत्री बन गए. पर 2019 आते-आते बीजेपी कांग्रेस के 13 विधायक और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी के दो विधायकों को तोड़ चुकी थी. पिछले दरवाज़े से ही सही, बीजेपी को विधानसभा में पूर्ण बहुमत हासिल हो चुका था. लिहाजा सरदेसाई की मंत्रीमंडल से छुट्टी हो गयी और वह उस समय से ही बीजेपी से बदला लेने की योजना बना रहे थे.
सरदेसाई की पहले तृणमूल कांग्रेस से बातचीत चली. तृणमूल कांग्रेस उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाने को तैयार थी, बशर्ते कि वह गोवा फॉरवर्ड पार्टी का तृणमूल कांग्रेस में विलय कर दें. सरदेसाई को यह मंजूर नहीं था, लिहाज बात आगे नहीं बढ़ी. फिर सरदेसाई ने कांग्रेस पार्टी से संपर्क साधा. गोवा कांग्रेस के नेता सरदेसाई की बेवफाई भूले नहीं थे. सरदेसाई के गठबंधन प्रस्ताव को ठुकरा दिया. पर 1 दिसम्बर को वह नयी दिल्ली में राहुल गांधी से मिलने पहुंचे. साथ में थे दिनेश गुंडू राव और दिगंबर कामत. साथ में फोटो खींची गई और कांग्रेस आलाकमान ने गोवा फॉरवर्ड पार्टी के साथ गठबंधन की घोषणा कर दी. गोवा कांग्रेस के नेताओं से राहुल गांधी ने बात करने की जरूरत भी नहीं समझी. गोवा कांग्रेस में आज भी सरदेसाई के नाम पर विरोध है. गोवा कांग्रेस का साफ़ साफ़ कहना है कि सरदेसाई के लिए वह दो सीट छोड़ देंगे पर गठबंधन के लिए वह तैयार नहीं हैं.
राहुल गांधी के फैसले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पर भारी पड़ेंगे
माइकल लोबो के नाम पर भी खासा विरोध था. गोवा कांग्रेस के नेताओं का कहना था कि वह कलंगुट विधानसभा क्षेत्र से लोबो को हराने में सक्षम हैं. उनका यह भी मानना था कि लोबो दम्पति के कांग्रेस में शामिल होने से ऐसे दो नेताओं का टिकट कट जाएगा जो वर्षों से पार्टी की सेवा कर रहे थे. पर राहुल गांधी की सोच ही अलग है. उन्हें लगा कि अगर बीजेपी का कोई मंत्री उनकी पार्टी में शामिल होता है तो उससे माहौल कांग्रेस के पक्ष में बन जाएगा. उल्टे सम्भावना यही बनती जा रही है कि कलंगुट और सिओलिम विधानसभा क्षेत्र के नेता और कार्यकर्ता लोबो दम्पति के लिये काम करने की जगह या तो घर पर बैठे रहेंगे या फिर किसी और पार्टी को पीछे से समर्थन देंगे, ताकि लोबो दम्पति की हार हो जाए, क्योंकि लोबो दम्पति की जीत से उनका भविष्य अंधकारमय हो जाएगा.
वैसे बता दें कि एकतरफा फैसला करना और उसे राज्य इकाई के ऊपर थोंप देना राहुल गांधी की पुरानी आदत है. पिछले साल पश्चिम बंगाल विधानसभा में भी बिना राज्य इकाई से बात किए राहुल गांधी ने वाम मोर्चा के साथ समझौता कर लिया था. पार्टी के बचे खुचे कार्यकर्ता इस फैसले से खुश नहीं थे, और कांग्रेस पार्टी पहली बार बंगाल के इतिहास में विधानसभा में एक भी सीट नहीं जीत पायी. गोवा में भी सरदेसाई और लोबो के मामले में राज्य इकाई की अनदेखी कांग्रेस पार्टी के लिए महंगी साबित हो सकता है. राहुल गांधी कांग्रेस के राजा हैं, किसी की क्या मजाल कि उनके लिए फैसले का विरोध कर सके, चाहे पार्टी का इससे नुकसान ही क्यों ना हो जाए?
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