सम्पादकीय

क्या काला सागर पर नियंत्रण होते ही पुतिन युद्ध रोक देंगे? तीसरा विश्वयुद्ध नहीं होगा?

Gulabi Jagat
24 April 2022 8:24 AM GMT
क्या काला सागर पर नियंत्रण होते ही पुतिन युद्ध रोक देंगे? तीसरा विश्वयुद्ध नहीं होगा?
x
अमेरिका ने आशंका जताई थी कि यूक्रेन पर रूस अवैध कब्जा कर सकता है
अमेरिका ने आशंका जताई थी कि यूक्रेन पर रूस (Russia Ukraine War) अवैध कब्जा कर सकता है और वाकई 24 फरवरी, 2022 से रूस की सेना ने यूक्रेन में दाखिल होना शुरू कर दिया. यूक्रेन की राजधानी कीव समेत सभी प्रमुख शहरों पर ताबड़तोड़ बमबारी होने लगी. मिसाइलें दागी जाने लगीं. दोनों देशों के फाइटर प्लेन्स में डॉगफाइट शुरू हो गई. जमीन पर रूस की सेना आगे बढ़ने लगी, तोप गरजने लगे, गोली-बारी शुरू हो गई. आखिर 14 अप्रैल को एक रूसी युद्धपोत मोस्कवा (Moskva) के डूब जाने के बाद ये जंग पानी तक जा पहुंची. अब जबकि युद्ध के दो महीने हो चुके हैं. रूस और यूक्रेन के हजारों सैनिक मारे जा चुके हैं. यूक्रेन के हजारों नागरिक जान गंवा चुके हैं. यूक्रेन के करीब 40 लाख लोग देश छोड़कर भाग चुके हैं.
तब पूरी दुनिया के मन में एक ही प्रश्न है- क्या सेकेंड वर्ल्ड वॉर के 75 साल बाद एक और वर्ल्ड वॉर छिड़ चुका है? क्या रूस-यूक्रेन युद्ध का पड़ोसी देशों तक विस्तार होगा? क्या युद्ध का विस्तार होते ही दुनिया के हर देश को दो खेमों में बंट जाना होगा? मित्र राष्ट्र या धुरी राष्ट्र का साथ देना अवश्यंभावी हो जाएगा. यहां तक कि ये युद्ध न्यूक्लियर वॉर (Nuclear War) तक पहुंच सकता है? इन प्रश्नों के बीच रूस-यूक्रेन युद्ध में काला सागर की भूमिका का विश्लेषण आवश्यक है. क्योंकि यही वो केंद्र बिंदु है, जहां रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन समझौता नहीं करना चाहेंगे. यही वो केंद्र बिंदु भी है, जिसके लिए रूस की सेना ने पूरा सामर्थ्य भी झोंक रखा है.
क्या तृतीय विश्वयुद्ध होगा?
ऊपर दिए गए प्रश्नों में सबसे चटखदार प्रश्न है कि क्या तृतीय विश्वयुद्ध होगा? क्योंकि ये शब्द इस समय पूरी दुनिया के लिए कुतूहल का विषय बना हुआ है. इस समय विश्व में इसी प्रश्न को लेकर लोगों की सबसे ज्यादा दिलचस्पी है.
इसके जवाब में इंटरनेशनल रिलेशन के एक्सपर्ट जोशुआ शिफ्रिंसन (Joshua Shifrinson) का कहना है कि हम तृतीय विश्वयुद्ध के मुहाने पर तो जरूर खड़े हैं, लेकिन विश्वयुद्ध के अभी कुछ कदम पीछे हैं. बोस्टन यूनिवर्सिटी यानी BU को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि हमें ये याद रखना चाहिए कि प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध स्थानीय संघर्षों से फैला था. सर्बिया ने जब ऑस्ट्रो-हंगरियन एंपायर पर हमला किया तो इससे बाकी देश भी युद्ध की चपेट में आ गए. जिससे प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ा. दूसरा विश्वयुद्ध भी जर्मनी के पोलैंड पर आक्रमण और पोलैंड का साथ देने के लिए दूसरे देशों के युद्ध में शामिल होने से छिड़ा था. परंतु रूस-यूक्रेन युद्ध में अभी ऐसा कुछ नहीं दिख रहा.
दुनिया की दो महाशक्तियां, अमेरिका और चीन अभी इसमें सीधे तौर पर शामिल नहीं हुई हैं. दोनों ही देश युद्ध से पीछे हट रहे हैं और संयम बरतने का आग्रह करने की कोशिश कर रहे हैं. रूस-यूक्रेन की सीमा से सटे कुछ देशों के इस कन्फ्लिक्ट में शामिल होने की आशंका जरूर है, जिससे तृतीय विश्वयुद्ध छिड़ सकता है. लेकिन इस विस्फोटक स्थिति में सबसे राहत की बात ये ही है कि अमेरिका-चीन इस युद्ध में शामिल होने से बच रहे हैं. जो बताता है कि शायद तीसरा विश्वयुद्ध ना हो.
रूस-अमेरिका की जगह रूस और यूक्रेन में युद्ध क्यों शुरू हो गया?
चीन से कोरोना महामारी फैलने के बाद अमेरिका ने बहुत ही सख्त रुख अपनाया था. चीन को अमेरिका ने ग्लोबल विलेन बनाया, कोविड वायरस को चाइनीज वायरस कहा. दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि चीन के वुहान लैब से निकला वायरस अब तक इस धरती पर 60 लाख से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला चुका है. जिनमें अकेले अमेरिका में ही करीब 10 लाख लोग हैं. माना जा रहा था कि अमेरिका-चीन में युद्ध छिड़ने की ये तात्कालिक वजह बन सकती है. क्योंकि दक्षिण चीन सागर में चीन की दादागीरी से पहले से ही लड़ाई छिड़ी हुई है. यहां तक कि साल 2015 में ही चाइना कम्युनिस्ट पार्टी के आधिकारिक पीपुल्स डेली न्यूज ने भविष्यवाणी कर दी थी कि चीन और अमेरिका में युद्ध होना तय है. वजह ये है कि दक्षिण चीन सागर में चीन ने कृत्रिम द्वीप बना लिए हैं. इससे अमेरिका ही नहीं, भारत सहित पूरी दुनिया के व्यापार का रूट बाधित होता है. लेकिन इस विषय पर चीन और अमेरिका में युद्ध नहीं छिड़ा.
अमेरिका और रूस में भी युद्ध नहीं छिड़ा, जिनके बीच लंबे समय से संघर्ष चल रहा है. 2014 में अमेरिका ने रूस के बॉर्डर पर हलचल पैदा की. कहा जाता है कि तब अमेरिका की ही शह पर यूक्रेन में रूस समर्थक राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को सत्ता से बेदखल कर दिए गए. इसके बाद रूस ने क्रीमिया पर रातोंरात कब्जा कर लिया था. ये वो द्वीप है, जिसे 1954 में तब के सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता निकिता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को उपहार में भेंट कर दिया था. क्रीमिया की एक बार फिर बदली परिस्थितियों को अमेरिका मानने को तैयार नहीं हुआ और उसने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए. तबसे रूस तमाम प्रतिबंधों में दबता चला आ रहा है. ग्लोबल इकॉनोमी से कटने का नुकसान झेलता आ रहा है.
लेकिन पिछले साल जब यूक्रेन ने नाटो (NATO) की सदस्यता लेने की तेजी दिखाई तो रूस आक्रामक हो गया. पिछले साल दिसंबर में ही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसके विरुद्ध चेतावनी दी. उन्होंने कहा कि यूक्रेन अगर नाटो की सदस्यता लेगा तो यूक्रेन में नाटो अपना सैन्य बेस बनाएगा. इससे रूस की सुरक्षा को खतरा है और इसे वो बर्दाश्त नहीं कर सकते. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने इस चेतावनी को नजरअंदाज किया. उन्होंने नाटो की सदस्यता लेने से इनकार करने की जगह युद्ध में जाने का फैसला किया. यानी वॉर थ्योरी में एक बार फिर ट्विस्ट आया. एक लंबे तनाव के बाद युद्ध तो छिड़ा, लेकिन ये युद्ध चीन-अमेरिका-रूस के बीच नहीं छिड़ा. लेकिन वर्तमान युद्ध से ही समझना चाहिए कि विश्वयुद्ध का नतीजा कितना भयानक होगा. दो देशों के युद्ध ने ही रूस को भी भारी क्षति पहुंचाई है, यूक्रेन भी दशकों पीछे की स्थिति में पहुंच चुका है. जबकि दुनिया के जो देश इस युद्ध में शामिल नहीं हैं, वो भी महंगाई के तौर पर युद्ध का दंश झेलने को मजबूर हैं.
75 साल बाद तृतीय विश्वयुद्ध की आशंका क्यों जताई जा रही है?
अमेरिकी मीडिया भले ही कह रही हो कि अमेरिका इस युद्ध को शांत करने की कोशिश में है, लेकिन ग्राउंड के हालात कुछ अलग हैं. अमेरिका और नाटो देशों ने यूक्रेन के लिए हथियारों का सप्लाई रूट खोल रखा है. यानी दुनिया के तीस नाटो देश सीधे-सीधे चाहते हैं कि युद्ध चलता रहे. अगर युद्ध चलता रहेगा तो रूस की ताकत कम होती जाएगी. एक थ्योरी ये भी है कि अमेरिका रूस को इतना कुचल देना चाहता है कि चीन के खिलाफ ऑपरेशन चलाने पर वो चीन के साथ ना आ सके, या फिर साथ आकर भी उसकी ताकत ना बढ़ा सके. लेकिन मौजूदा हालात को देखकर दुनिया के ज्यादातर स्कॉलर मानने लगे हैं कि तीसरे विश्वयुद्ध की तारीख दिन प्रतिदिन करीब आती जा रही है. और अब ये माना जाने लगा है कि हालात न्यूक्लियर वॉर तक भी पहुंच सकते हैं. यानी कुल मिलाकर एक ग्लोबल डिजास्टर का दृश्य बन रहा है. पुतिन अपने देश का वजूद मिटना स्वीकार नहीं कर सकते हैं, तो दूसरी ओर बाइडेन भी झुकने को तैयार नहीं हो सकते हैं. जो रूस को न्यूक्लियर वेपन के इस्तेमाल करने पर मजबूर कर सकता है.
क्या काला सागर में युद्ध रोकने की कुंजी छिपी है?
प्रश्न ये उठ रहा है कि आखिर ये युद्ध कहां पर जाकर रुकेगा? क्या रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अगर काला सागर पर अपना नियंत्रण जारी रखने में सफल हो जाते हैं तो ये युद्ध रुक जाएगा? अगर आप मैप पर देखें तो साफ पता चलेगा कि रूस की सेना क्रीमिया से लेकर डोनबास तक एक भौगोलिक गलियारा तैयार कर रही है. काला सागर में क्रीमिया द्वीप पर रूस ने 2014 में ही कब्जा कर लिया था. संकट ये है कि इस द्वीप पर पेयजल की सप्लाई खेरसॉन से होती है, जो यूक्रेन के कब्जे में है और वो जब-तब क्रीमिया की वॉटर सप्लाई बंद कर देता रहा है. युद्ध के दो महीने बाद खेरसॉन पर रूस का कब्जा दिखने लगा है. इससे ऊपर मारियुपोल शहर है, जिस पर रूस ने कब्जे का आधिकारिक ऐलान कर दिया है. उससे ऊपर डोनबास रीजन है, जिन्हें रूस ने स्वायत्त राष्ट्र की मान्यता दे दी है और जहां रूस समर्थक विद्रोही यूक्रेनी सेना को पीछे हटाने के लिए लड़ रहे हैं. ये गलियारा काला सागर से यूक्रेन को पूरी तरह से काट देगा. यानी यूक्रेन अगर नाटो में शामिल होता है, तब भी वो काला सागर तक नहीं पहुंच सकेगा.
काला सागर दुनिया का सबसे छोटा समुद्र है, जो यूरोप और एशिया के बीच में है. दक्षिण में क्रीमिया, पूर्व में जॉर्जिया और रूस, पश्चिम में बुल्गारिया और रोमानिया देश की सीमा लगती है. इसी काला सागर में रूस का सेवास्तोपोल का बंदरगाह (port of Sevastopol) भी है, जो रूस का सबसे महत्वपूर्ण मिलिट्री प्रतिष्ठान है. रूस के लिए ये नाटो देशों से बफर जोन की तरह काम करता है. इसी सागर से रूस यूक्रेन के खिलाफ महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ रहा है और इसी सागर में उसका वॉरशिप मोस्कवा (Moskva) भी डूबा है. कुल मिलाकर काला सागर रूस की जीयो इकॉनमिक स्ट्रेटेजी (geo economic strategy) का अहम अंग है. रूस के तेल-गैस पर निर्भर यूरोपीय देशों का ट्रेड लिंक है. जहां कोल्ड वॉर के युग में रूस अपना प्रभुत्व जमा चुका है और जमाए रखना चाहता है. अब नाटो में शामिल होने जा रहे यूक्रेन के मारियुपोल और खेरसॉन एरिया पर कब्जा जमाकर रूस फिर भी कुछ हद तक बफर जोन बनाए रखने में सफल हो सकता है. और इसी के साथ युद्ध खत्म भी हो सकता है.
TV 9 के सौजन्य से लेख
Next Story