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गोवा में कांग्रेस पार्टी को चुनाव जीता पाएगा?
अजय झा.
कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) कल गोवा (Goa) पहुंची, जहां फरवरी में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) होने वाला है. प्रियंका दक्षिण गोवा के केपेम (Quepem) में एक सभा में शामिल हुईं, जहां से वर्तमान उपमुख्यमंत्री चंद्रकांत कावलेकर (Chandrakant Kavlekar) 2017 में कांग्रेस पार्टी की टिकट पर चुनाव जीते थे. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे, पर 2019 में 9 अन्य कांग्रेस पार्टी के विधायकों के साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. पूर्व में बहुत सारे लोग प्रियंका गांधी में उनकी दादी इंदिरा गांधी की झलक देखते थे और प्रियंका अपनी दादी की नक़ल करने का कोई भी अवसर नहीं गंवाती हैं. लिजाहा केपेम में उन्होंने महिलाओं को संबोधित किया और उनके साथ नाचा भी. प्रियंका के गोवा दौरे में उनका केपेम जाना यह साफ़ दर्शाता है कि कांग्रेस पार्टी चंद्रकांत कावलेकर, जिन्हें स्थानीय लोग बाबू कावलेकर के नाम से जानते हैं, को हरा कर बदला लेना चाहती है.
बदला लेना बनता भी है. कावलेकर के पहले भी कांग्रेस के तीन विधायक बीजेपी में शामिल हो चुके थे, पर उन्हें विधानसभा से इस्तीफा दे कर दोबारा चुनाव लड़ना पड़ा था. पर कावलेकर कांग्रेस के दो तिहाई से भी अधिक विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हुए थे, लिहाजा दल बदल कानून उन सभी पर लागू नहीं हुआ और उन्हें फिर से चुनाव लड़ने की जरूरत नहीं पड़ी. कावलेकर ने कांग्रेस की रीढ़ की हड्डी तोड़ने का काम किया था. बीजेपी को पिछले दरवाज़े से ही सही, बहुमत जो जनता ने नही दी थी, कावलेकर ने प्रदान कर दी. जिसके एवज में उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया. पर क्या केपेम की महिलाओं को सम्बोधित करना और उनके साथ नाचना ही काफी होगा कावलेकर को हराने के लिए? कांग्रेस पार्टी के लिए सिर्फ केपेम में चुनाव जीतना ही प्रयाप्त नहीं होगा. अगर कांग्रेस पार्टी गोवा में चुनाव जीतना चाहती है तो उसे बीजेपी को हराने की योजना बनानी होगी.
उत्तर प्रदेश छोड़कर गोवा क्यों पहुंच गईं प्रियंका गांधी
2017 में कांग्रेस पार्टी 40 सदस्यों वाली विधानसभा में 17 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी, पर सरकार नहीं बना पाई क्योकि प्रियंका के बड़े भाई राहुल गांधी चार दिनों तक यही तय नहीं कर पाए कि किसे मुख्यमंत्री बनया जाए और बीजेपी ने सरकार बना ली. जो पूरे पांच साल तक चली. बीजेपी को गोवा में हराने के लिए कांग्रेस पार्टी को काफी मशक्कत करनी पड़ेगी. पर जिस तरह की तैयारी चल रही है, ऐसा लगने लगा है कि कई चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में जो दर्शाया गया है कि कांग्रेस पार्टी अधिकतम 6 या उससे भी कम सीट पाएगी, सही साबित होने वाला है.
प्रियंका गांधी के जिम्मे उत्तर प्रदेश है. और गोवा के सभी फैसले राहुल गांधी ही लेते रहे हैं. पर ऐसी क्या बात हो गयी कि उत्तर प्रदेश को छोड़ कर प्रियंका को गोवा जाना पड़ा? कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल गांधी गोवा जा कर अपनी इज्जत नहीं गंवाना चाहते हैं और ममता बनर्जी से आमना सामना करने से कतरा रहे हैं? ममता बनर्जी की तृणमूल कंग्रेस गोवा चुनाव लड़ने की जोर-शोर से तैयारी कर रही है और 13 दिसम्बर को दीदी एक बार फिर से गोवा जाने वाली हैं. बहरहाल कारण जो भी हो, प्रियंका गांधी गोवा गईं और चुनाव के पूर्व की तैयारी में भाग लेते हुए दिखीं. पर इसे दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि जिस दिन प्रियंका गोवा पधारीं, उसी दिन कांग्रेस पार्टी के कई नेता पार्टी छोड़ कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए.
सिर्फ नाच कर क्या गोवा जीता जा सकता है?
कांग्रेस पार्टी के 13 विधायक अभी तक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री लुइज़िन्होन फलेरियो तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं, एक और विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री प्रतापसिंह राणे भी बीजेपी में शामिल होने वाले हैं. कांग्रेस पार्टी के कई अन्य नेताओं ने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया है और अब स्थानीय नेता भी पार्टी छोड़ कर जाने लगे हैं. ऐसे में कांग्रेस पार्टी से उम्मीद की जा रही थी कि वह किसी ठोस योजना के साथ गोवा में चुनाव की तैयारी करे. पर तैयारी के नाम पर प्रियंका गांधी का केपेम में महिलाओं के साथ ठुमका लगाना और नई दिल्ली में राहुल गांधी द्वारा गोवा फॉरवर्ड पार्टी के नेता विजय सरदेसाई के साथ इस अंदाज़ में फोटो खिंचवाना मानो कांग्रेस पार्टी ने गोवा में किला फतह कर ली हो ही अभी तक दिखा है.
आलाकमान के निर्णय से नाराज है गोवा कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी की गोवा इकाई गोवा फॉरवर्ड पार्टी के साथ गठबंधन की घोषणा से खुश नहीं है. इसके दो प्रमुख कारण हैं. 2017 के चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी में 17 विधायक थे, एनसीपी के एक विधायक का भी समर्थन हासिल था, सरकार बनाने के लिए मात्र तीन और विधायकों की जरूरत थी. विजय सरदेसाई की गोवा फॉरवर्ड पार्टी के तीन विधायक चुने गए थे और सरदेसाई ने समर्थन की हामी भर भी दी थी. पर जब तक राहुल गांधी मुख्यमंत्री पद के लिए अपना फैसला सुनाते सरदेसाई ने बीजेपी को समर्थन दे दिया, जिसे कांग्रेस पार्टी की स्थानीय इकाई ने विश्वासघात के रूप में देखा.
दूसरा कारण है कि गोवा फॉरवर्ड पार्टी नयी पार्टी है और उसमें इतना दमखम नहीं है कि वह कांग्रेस पार्टी को चुनाव जीतने में मदद दे पाए. वैसे भी 2017 के मुकाबले गोवा फॉरवर्ड पार्टी काफी कमजोर हो गयी है. 3 दिसम्बर को सिओलिम के विधायक जयेश सालगांवकर बीजेपी में शामिल हो गए और उसके पूर्व पिछले महीने पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष किरण कांडोलकर अपनी पत्नी और कई पदाधिकारियों के साथ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे. वर्तमान में गोवा फॉरवर्ड पार्टी की इतनी हैसियत नहीं है कि वह कांग्रेस पार्टी की कोई मदद कर पाए. उसका प्रभाव दो या तीन क्षेत्रों तक ही सिमित है. कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का कहना है कि गठबंधन का मतलब होता है जब दो दल एक दूसरे की मदद करें पर गोवा फॉरवर्ड पार्टी की इतनी ताकत नहीं है कि वह कांग्रेस को चुनाव जीतने में सहयोग दे पाए. इस फैसले से कांग्रेस के काफी नेता नाराज़ हैं और संभव है कि अगर इसे वापस नहीं लिया जाता तो चुनाव आते आते कुछ और नेता भी तृणमूल कांग्रेस या आम आदमी पार्टी का रुख कर लें.
गोवा में कांग्रेस पार्टी का किला लड़खड़ा रहा है. पहले पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के निर्णय ने इसे कमजोर कर दिया, फिर बीजेपी ने इसमें लगातार धक्का मारा, अब तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इसे जर्जर करने में लगे हैं और चुनाव आते आते कहीं कांग्रेस का किला पूरी तरह से ध्वस्त ही ना हो जाए. इसे बचाने के लिए फोटो खीचाना और ठुमका लगाना शायद पर्याप्त नहीं होगा.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. ऑर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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