सम्पादकीय

क्या वाकई हमारी सड़कें संगीत से सजीव हो उठेंगी?

Tara Tandi
7 Oct 2021 12:34 PM GMT
क्या वाकई हमारी सड़कें संगीत से सजीव हो उठेंगी?
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जिस देश में लोग साइलेंस जोन तो क्या अस्पतालों की भी परवाह नहीं करते और बेवजह

बिक्रम वोहरा| जिस देश में लोग साइलेंस जोन तो क्या अस्पतालों की भी परवाह नहीं करते और बेवजह, लगातार हॉर्न बजाते रहते हैं, उस देश के केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) का यह सुझाव कि कर्कश ध्वनि प्रदूषण को रोड बैंड में तब्दील कर दिया जाए पूरी तरह निरर्थक नजर आता है. उनका सुझाव है कि गाड़ियों के हॉर्न तबले, बांसुरी और सितार की तरह बजें. लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि ये कितना तकलीफदेह होगा? खासकर तब जब हमारे शहरों में सड़कों पर हर कोई 50 डेसीबल की सीमा लांघता है. मुंबई के एक चौराहे पर किए गए एक सर्वे से पता चला है कि वहां हर 5 सेकंड पर हॉर्न बजते रहते हैं.

सड़क परिवहन पर वियना कन्वेंशन के मुताबिक आप सिर्फ दो मौकों पर हॉर्न बजा सकते हैं- पहला, दुर्घटना से बचने के लिए, और दूसरा, किसी गाड़ी को ओवरटेक करने से पहले उस ड्राइवर को आगाह करने के लिए. कोई आश्चर्य नहीं कि हमने वियना कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, क्योंकि हम तो हर जगह हॉर्न बजाते हैं. ट्रैफिक जाम में आगे बढ़ने की कोई जगह ना हो फिर भी हम पूरे जोश और ताकत के साथ हॉर्न बजाते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि गाड़ी में हॉर्न लगा ही इसलिए है. हम न सिर्फ इधर-उधर झांकते रहते हैं बल्कि मस्ती में हॉर्न बजाते जाते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि ज्यादा शोर करने पर आगे खड़ी गाड़ी अचानक गायब हो जाएगी.

ध्वनि प्रदूषण से हृदय-रोग का खतरा बढ़ता है

मान लीजिये अगर गडकरी की यह पहल लागू हो भी गई, तो 15 बांसुरी, 10 तबले, 12 सितार और 9 शहनाईयों के साथ सड़क पर 600 से ज़्यादा गाड़ियां नाच रही होंगी. इससे सड़कों पर कर्णभेदी कोलाहल के साथ-साथ हॉर्न से हमारे देशवासियों के लगाव को देखते हुए कितनी नई तरह के प्रयोग सामने आएंगे उसकी आप कल्पना कर ही सकते हैं. वहां आप एक अस्पताल के पास से गुजरे और हॉर्न दबाकर जोरदार शंखनाद करते चले. अस्पताल के रोगियों के लिए इससे अच्छी बात क्या होगी: सुबह 5 बजे के अलार्म की तरह हॉर्न उन्हें नींद से जगा देगा. और क्या हुआ जो आप ICU में हैं- लीजिए, सरोद की आवाज सुन लीजिए.

अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के जर्नल में छपे शोध के मुताबिक ध्वनि प्रदूषण से हृदय-रोग का खतरा बढ़ता है. जैसे कि धमनियों की बीमारियां, हाई ब्लड प्रेशर और दिल का दौरा. बस इतनी सी चीज़ हमें हॉर्न बजाने से कैसे रोक सकती है? ये तो हमारा अधिकार है और हॉर्न तो हमारे लिए तनाव मुक्ति का यंत्र है! नहीं, यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है. हमारे अहंकार पर लगी चोट भी हॉर्न ही दूर करता है! हममें से ज्यादातर लोग सिर्फ आदेशों का पालन करते हुए, हाशिए पर खड़े, निराशा की ज़िन्दगी जी रहे हैं. ऐसे में हॉर्न हमारी ताकत बनता है. अपनी गाड़ी में बैठे हम खुद को महाबली समझने लगते हैं. अपनी खटारा कार का हॉर्न बजाकर हम महंगी बेंटले कार में बैठे साहेब को भी हड़का सकते हैं. अपनी मौजूदगी का एहसास करा सकते हैं. "अबे, मैं हूं यहां. चल हट आगे से!" हॉर्न हमारे आत्मसम्मान का प्रतीक है.

हॉर्न हमारे आत्मसम्मान का प्रतीक है

यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है. हमारे एक पड़ोसी ने अपनी कार में साइरन की आवाज वाला एक हॉर्न लगवा लिया था, उससे बेहद कर्कश आवाज निकलती थी. पहले तो वह जोर से 'वाऊं वाऊं' करती फिर उससे रोने और कराहने की आवाज निकलने लगती. हम सबने बच्चों के सोने का हवाला देकर कार मालिक से मिन्नत की कि वो इस हार्न को हटा दें. लेकिन आप जानते हैं उन्होंने क्या जवाब दिया? "अरे, हॉर्न से सबको पता चलता है कि मैं आ गया हूं." एक दिन किसी ने उनकी कार चुरा ली. निश्चित रूप से चोर उसे जंगल या नदी में छोड़ आया होगा. और हम सबने इसका जश्न मनाया.

देश में सड़क हादसों को रोकने के लिए सख्त कानून की जरूरत है

जहां लोगों में धैर्य की कमी हो, कतार में खड़े रहने की तमीज न हो, शिष्टाचार की कमी हो (एटीएम पर आप देख सकते हैं), दूसरों के प्रति संवेदनशीलता का अभाव हो (हम किसी एम्बुलेंस को भी आगे नहीं बढ़ने देते), साइड-व्यू मिरर में देखकर ड्राइव करना बेतुका लगता हो और कोई आगे निकल जाए तो पारा सातवें आसमान तक पहुंच जाता हो, तो ऐसी मानसिकता वाले देश में गडकरी जी के सुझाव से बदलाव कैसे आ सकता है? हो सकता है उन्होंने कल्पना की होगी कि सड़कों पर ए आर रहमान की धुन जैसा शांत और मधुर संगीत बजेगा. हम बांसुरी बजाते हुए, पियानो वादक को ओवरटेक कर, हारमोनियम बजाती हुई किसी गाड़ी को आराम से आगे जाने देंगे, जबकि मामूली सी टक्कर पर दो चालकों में झगड़े के बीच पीछे खड़ी एक कार जाकिर हुसैन की जुगलबंदी वाली तबले की धुन छेड़ रही होगी.

ऐसी निरर्थक बातों में समय गंवाने से अच्छा है कि मंत्री जी कुछ सख्त कानून लाएं जिससे सड़क हादसों में सालाना मौत का आंकड़ा 1,50,000 से नीचे आए. भारत में हर साल 4,50,000 सड़क हादसे होते हैं. जिनमें मौत का आंकड़ा पूरे विश्व में सड़क हादसे के दौरान हुई मृत्यु का 11 फीसदी होता है. हर दस मिनट पर यहां एक मोटरसाइकिल चालक की मौत हो जाती है. किसी सख्त कानून से अगर हम इन आकंड़ों को कम कर सकें तो यह भी किसी कर्णप्रिय संगीत से कम नहीं होगा.

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